गुरुवार, अक्तूबर 15, 2009

रचनात्मकता नियमों में बंधी है क्या



रचनात्मकता किसी समय और लेखनी के नियम नहीं मानती... वो तो जब -तब खुद ही कागज पर आकर शब्दों की शक्ल ले लेती है. मेरी इन दो पंक्तियों  के साथ भी ऐसा ही कुछ है..मेरे लाख चाहने के बाद भी मैं इन्हें छंद और लय में आगे बढ़ने मैं खुद को असमर्थ पा रही हूँ ...फिर भी आगे बढ़ने की कोशिश की है... 


किस मोड़ पर लाकर छोड़ा है। जीवन एक बिछोड़ा है।
पल-पल ऐसा तोड़ा है, हंसी को जैसे जोड़ा है।
अल्हड स्वपन सलोने मन के आने से भी है अब कतराते ..
आंसू दर्द से होड़ लगाते ..हम फिर भी है सह जाते