मंगलवार, दिसंबर 18, 2012

दिल्ली ने बढ़ाई वुमन पॉवर लाइन से शहर की दूरियां



- जल्द ही जिले के ईव टीजिंग के इलाकों को मिलेगा रेड फ्लैग
- टेली कम्युनिकेशन गैप से बढ़ी वुमन पॉवर लाइन की दूरियां
- पॉवर लाइन के पास एक महीने में पहुंची जिले से मात्र 10 शिकायतें
 महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराधों में अव्वल जिले को प्रदेश सरकार की वुमन पॉवर लाइन 1090 का पूरा लाभ नहीं मिल पा रहा है। इसमें जिले की देश की राजधानी से करीबी आड़े आ रहीं हैं। लखनऊ में बने वुमन पॉवर लाइन के हैड ऑफिस में गौतमबुद्ध नगर की दिल्ली एनसीआर टेली कम्युनिकेशन सर्किल में होने से पहुंच कम है। इस हेल्प लाइन को शुरू हुए एक महीना हो चुका है,लेकिन जिले की महिलाओं की पॉवर लाइन पर मात्र चंद शिकायतें ही पहुंच पाई हैं। इस पॉवर लाइन की जद में आने से महिलाओं को मदद मिलेगी, इसमें शक नहीं,लेकिन कब उनकी कॉल सीधे इस पॉवर लाइन पर पहुंच पाएगी, इस संबंध में अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगी। हालांकि यूपी के आला पुलिस अधिकारियों ने इस मसले का निवारण एक महीने के अंदर होने की बात की है।
क्या है वुमन पॉवर लाइन: प्रदेश सरकार की तरफ से राज्य में महिलाओं के खिलाफ होने वाले छेडख़ानी, अश्लील कॉल और उत्पीडऩ जैसे अपराधों के लिए 15 नवंबर को वुमन पॉवर लाइन 1090 शुरू की गई। इसमें पूरे प्रदेश से शिकायत के लिए कॉल  जा सकती है। उसी तरह इससे प्रदेश में कहीं भी कॉल बैक की जा सकती है। शिकायतकर्ता महिला की पहचान हर हाल में गुप्त रहती है। यहां तैनात विशेष ट्रेनिंग पाई 45 महिला पुलिस कर्मी और 35 पुलिस कर्मी शिकायत पर कार्रवाई करती हैं। 
पॉवर लाइन का काम भी है पॉवरफुल: तीन फेज में काम कर रही इस पॉवर लाइन में पहले में अश्लील कॉल, दूसरे में साइबर क्राइम और तीसरे में शारीरिक शोषण संबंधी शिकायतें को हैंडल किया जाता है और सभी का डिजीटल रिकार्ड रहता है। इस वजह से सिम कार्ड बदलने और किसी दूसरी जगह जाने के बाद भी आरोपी बच नहीं सकता। अपराध में लगातार लिप्त रहने पर उसे पासपोर्ट, लाइसेंस और चरित्र प्रमाण पत्र मिलना भी दूभर हो जाता है। पूर्व जस्टिस की अगुवाई में बनाई लीगल सेल के साथ ही एक सेल ऐसी बनाई गई हैं जो शिकायतों का विश्लेषण करेगी। इसमें साइकाइट्रिक, साइकोलॉजिस्ट और लीगल एक्सपर्ट शामिल हैं। इसकी खासियत है आरोपी के परिवार से संपर्क भी करना। इससे होने वाली सामाजिक बदनामी की वजह से कई आरोपी लाइन पर आ जाते हैं।
पॉवर लाइन का खुलासा: इसमें आई शिकायतों का विश्लेषण से खुलासा हुआ है कि उत्पीडऩ का शिकार होने वालों में सबसे अधिक फीसद छात्राओं है, इसके बाद घरेलू और कामकाजी महिला वुमन है। छात्राओं की 3500, घरेलू महिलाओं की 3000 और कामकाजी महिलाओं की शिकायतें की संख्या दो हजार हैं।
जिले से दूर है पॉवर लाइन की डगर: 15 नवंबर से अब तक इस पॉवर लाइन पर पूरे प्रदेश के 75 जिले से 40 हजार शिकायतें पहुंची हैं। इसमें सात हजार डिजीटल शिकायतों में से 16 शिकायतों को रजिस्टर किया गया। इस की सक्रियता की वजह 740 अश्लील कॉल्स को खत्म किया गया। इस आंकड़े में जिले 10 शिकायतें ही पहुंच पाईं। बिजनौर जैसे इलाकों से  इस पॉवर लाइन पर फोन आए।बनारस, कानपुर, अकबरपुर सबसे अधिक शिकायतें पहुंची। वहीं देश की राजधानी के नजदीक होने से हाईटेक नोएडा इसमें पीछे रह गया। हालांकि गाजियाबाद इस मामले में नोएडा से थोड़ा से आगे है। दरअसल जिले के एनसीआर रीजन टेली कम्युनिकेशन सर्किल में होने से शिकायतें सीधे 1090 पर नहीं पहुंच पाती। पहले कॉल दिल्ली टेली कम्युनिकेशन सर्किल में जाती है और उसके बाद लखनऊ टेली सर्किल कम्युनिकेशन सर्किल में जाती है।
शहर के छेडख़ानी वाले इलाकों को रेड फ्लैग: इस सेल के इंचार्ज डीआईजी नवनीत सिकेरा का कहना है कि वह आने वाले महीने में गौतमबुद्धनगर और गाजियाबाद से पॉवर लाइन की सीधे पहुंच के लिए दिल्ली टेली कम्युनिकेशन सर्किल समस्या का समाधान कर लेंगे। कॉल के आंकड़े से पॉवर लाइन को इन जिलों में गूगल की मदद से ईव टिजिंग एरिया की पहचान में मदद मिलेगी। इसके बाद इन इलाकों को रेड फ्लैग मिलेगा और यहां पुलिस सादे कपड़ों में तैनात की जाएगी। उन्होंने बताया कि इस 1090 का रिस्पांस काफी अच्छा है। दूसरे राज्यों की महिलाओं के कॉल तक आ रहे हैं।
जरूरत है पॉवर लाइन की: जिले में महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराधों पर नजर डाली जाएं तो यहां वुमन पॉवर लाइन की सख्त जरूरत है।
बीते तीन वर्षों में महिला अपराध:
वर्ष         08    09   10  
हत्या        16   13    26
शील भंग    17   35    34  
अपहरण     35   52    63  
छेडख़ानी    49   44    31
उत्पीडऩ     56   87   116   
दहेज हत्या   20   20   19    
दुष्कर्म       18   19    30 
चेन छिनेती - 42   48    4   
वर्ष 2010 -12 में अपराधों पर एक नजर:
- 15 दिसंबर 2012 को ग्र्रेटर नोएडा में बीटा-टू जे ब्लॉक में पत्नी को अंदर बंद कर प्रोफेसर ने लगाई आग
-15 दिसंबर गाजियाबाद में बीटेक की छात्रा के साथ हॉस्टल के बाहर छेड़छाड़ और पिटाई
- 9 दिसंबर गाजियाबाद में को एलएलबी की छात्रा के फेसबुक प्रोफाइल पर अश्लील एसएमएस
- फरवरी 2012 मॉडल टॉउन पुलिस स्टेशन के पास फैशन डिजाइनर युवती को रेप के बाद सड़क पर फेंका
 - दिसंबर 2011 सेक्टर-18 में नौकरी के लिए आई महिला से दुष्कर्म
26 मार्च 10 कोटेक महेन्द्रा कर्मी नेहा ने टीएल विकास जैन के खिलाफ छेड़छाड़ और धमकी का आरोप
23 अप्रैल नेहरू इंटरनेशनल की छात्रा से सहपाठी ने की छेडख़ानी
21 जून यूक्रेन की महिला डॉक्टर अलीना ने पति पवन और परिवार के खिलाफ दर्ज कराया उत्पीडऩ का मामला
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बोल की लब सिले हैं अब तक...



 ''बोल की लब सिले हैं अब तक, अबला, नारी नहीं बेचारी और न ही है उपभोग की वस्तु, दुनिया को अब समझा दे कि तेरे दम से वो है, नहीं कहीं किसी से कम तू है, फिर क्यों तेरी मर्यादा का मर्दन यहां हरदम है, हुंकार अब भरनी होगी, रणचंडी अब बनना होगा, दुष्कर्म के असुरों का अब मर्दन करना ही होगा।ÓÓ ये चंद पंक्तियां उस पूरी नारी जाति के लिए है जो कहीं न कहीं, कभी न कभी केवल और केवल अपनी शारीरिक भिन्नता के कारण समाज में अत्याचार और दुष्कर्म का शिकार हो रही हैं। उन्हें सहानुभूति नहीं साहस की मशाल चाहिए। दिल्ली के गैंग रेप की घटना से आगाह हो जाना चाहिए है कि इस वक्त नारी को केवल और केवल उपभोग की तरह लिया जा रहा है। वह हांड-मांस का केवल पुतला भर नहीं है, सृष्टि का अस्तिव उसी से है। इन वजहों को पर नजर डालनी होगी जो समाज में नारी के खिलाफ इन अपराधों को बढ़ावा दे रहे हैं। शहर के प्रबुद्ध वर्ग इन अपराधों की पुनरावृत्ति में कानूनी के पेचीदीगियों को सबसे बड़ी वजह मानता है। वहीं अपराधियों में खौफ न होना भी एक कारण है।
देश ही नहीं जिला भी नहीं कम महिला अपराधों में: जिले में इस वर्ष दुष्कर्म के 19 और छेडख़ानी के 48 मामले आए हैं। वर्ष 2011 में 21 दुष्कर्म तो 73 छेडख़ानी के मामले हैं। उधर यूएन डेवलेपमेंट प्रोग्र्राम की लैगिंक असमानता की सूची के 169 देशों में भारत 119 वें पर है। नेशनल क्राइम रिकॉर्डस ब्यूरो के मुताबिक आईपीसी और एसएलएल के मुताबिक
दुष्कर्म और छेडख़ानी से बाधित होती है नारी स्वतंत्रता: दिल्ली रेप की घटना से केवल दिल्ली नहीं, बल्कि पूरे देश की महिलाओं और युवतियों के जेहन में एक सवाल कौंध रहा है, आखिर हर बार ऐसा क्यों। नोएडा के एक पब्लिक स्कूल की युवा शिक्षिका प्रतिमा का कहना हैं कि इस तरह की घटनाएं इस 21 वीं सदीं में भी महिलाओं की स्वतंत्रता में बाधक बनती है। उनका कहना है कि निम्न, मध्यम वर्गीय यहीं नहीं उच्च वर्गीय परिवारों में भी इस तरह की घटना से गलत संदेश गया है। उन्हें लड़कियों के देर शाम घर से बाहर न निकलने देने के लिए ये एक और तर्क मिल गया है। उधर छात्रा नीलम कहती हैं कि इस तरह के मामले में रेप पीडि़त को सहानुभूति नहीं साहस देना चाहिए, ताकि वह अपराधियों के खिलाफ डटकर खड़ी हो सकें। उनका कहना कि महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों के लिए कानून तो है, लेकिन इनका खौफ कहीं नहीं। वहीं महिलाओं की हत्या हो या उनके खिलाफ कोई और अपराध उसकी रिपोर्ट में संवेदनशीलता की कमी होती है, इस वजह से कई बार समाज में पीडि़त के अपराधी होने जैसा संदेश जाता है।
पुलिस और ज्यूडिशरी भी है इस मामले में कमजोर: सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ अधिवक्ता कमलेश जैन का कहना है कि स्त्रियों को सशक्त करने की दिशा में देश का कानूनी पक्ष बहुत ही सशक्त दिखाई पड़ता है, लेकिन व्यवहार में ऐसा नहीं है। केवल कानून बनाने से महिला सशक्तिकरण नहीं हो जाएगा। इसके लिए समाज और परिवार को पहल करनी होगी। इसके साथ ही पुलिस और ज्यूडिशरी को भी सक्रिय होना होगा। वर्ष 2010 में सीआरपीसी में अच्छा संशोधन हुआ, लेकिन इसे ढंग से लागू नहीं किया जा रहा है। इसमें रेप पीडि़त, अपराधी और गवाहों की वीडियो और आडियोग्र्राफी के साथ ही अपराधी के तुरंत मेडिकल टेस्ट का प्रावधान है। इसके साथ ही मामलों की सुनवाई फास्ट ट्रैक में होने का सुझाव है,लेकिन वास्तविकता में ऐसा नहीं होता। इससे अपराधियों में खौफ खत्म हो जाता है, इस तरह के मामलों के पुनरावृत्ति का यही वजह है।
लॉ एंड ऑर्डर है कमजोर: नोएडा सेक्टर -26 निवासी सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश वीएन खरे का कहना है कि लॉ एंड ऑर्डर कमजोर है। इस वजह से महिलाओं के खिलाफ रेप के मामले बढ़ रहे।  महिलाओं के लिए सम्मान नहीं रह गया है। इसमें न्याय व्यवस्था को तेजी से काम करना होगा। फास्ट ट्रैक कोर्ट और एक सप्ताह के अंदर ट्रायल को तव्वजो देनी चाहिए। वर्षों तक चलते मुकदमों में पीडि़त परेशान हो जाता, सबूत और गवाह बदल जाते हैं। 
ट्रायल है कमजोर: जिले के एसएसपी प्रवीण कुमार का मानना है कि आईपीसी की धारा 376 सशक्त है। इसमें रेप के अपराधी को उम्र कैद की सजा का प्रावधान है, लेकिन ऐसा कुछ ही मामलों में होता है। रेप के मामलों का फास्ट ट्रैक कोर्ट में सुनवाई रेयर ऑफïदि रेयरेस्ट के केस में होती है। वही केस के लंबा खींचने से अपराधियों का भय भी जाता रहता है। रेप के मामले में चार्ज शीट दाखिल होते ही फास्ट ट्रायल होना चाहिए।
मानव मूल्यों में आती गिरावट: समाजशास्त्री श्याम सिंह शशि का कहना है कि खाओ, पीओ और मस्त रहो की प्रवृति बढ़ रही है। मानव मूल्यों और संस्कारों का मोल कम हो रहा है, कानून की सख्ती नहीं है, इससे महिलाओं के खिलाफ अपराध बढ़ रहे हैं। उधर समाजसेवी ऊषा ठाकुर कहती हैं कि कामकाजी महिलाओं का कांस्पेट समाज अभी स्वीकार नहीं पाया है, इसलिए फ्रस्टेशन में महिला संबंधी अपराध बढ़ रहे हैं।
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