tag:blogger.com,1999:blog-1427707812731325418.post6002577083534181045..comments2023-10-23T11:16:27.342-07:00Comments on अपनी ज़मीं अपना आसमां: अन्नदाता ही जहां है मोहताजApni zami apana aasamhttp://www.blogger.com/profile/14364264322437285875noreply@blogger.comBlogger2125tag:blogger.com,1999:blog-1427707812731325418.post-80448911698259197652009-09-05T11:32:42.045-07:002009-09-05T11:32:42.045-07:00जब 15 फीसदी लोगों के लिए योजनायें बनेंगी तो नतीजा ...जब 15 फीसदी लोगों के लिए योजनायें बनेंगी तो नतीजा यही होगा.<br />खैर बात अछि कही लेकिन भावुकता का कोई अचार नहीं डाला जातासचिन श्रीवास्तवhttps://www.blogger.com/profile/13819395069549021914noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1427707812731325418.post-30036467700067612612009-09-01T13:34:06.410-07:002009-09-01T13:34:06.410-07:00आम हिन्दुस्तानी आज पाखंड के भीषण दलदल में जी रहा ह...आम हिन्दुस्तानी आज पाखंड के भीषण दलदल में जी रहा है. रचना जी आपने जितने भी मुद्दे उठाये है मसलन अन्नादत किसान , नारी की समाज में स्थिति और मर्दखोर समाज के अभिशाप अमूमन सभी मुद्दे जटिल कारको से जुड़े हुए है.आम आदमी के पाखंड ने उसकी कथनी और करनी में भरी फर्क ला दिया है.नैतिक मूल्यों का क्षरण और समाज का समय सापेक्ष नहीं बनना ( परिवर्तन का हिमायती)ही उसकी दोगली मानसिकता के लिए दोषी है. अल्व्यं तोफ्फ्लेर की पुस्तक फुतुरे शोक को यदि आम आदमी समझकर आत्मसात करे तब स्थिति पूरी तरह बदल जायेगी. साथ ही रचना जी आपकी शिकायते भी- किशोर दिवसे, पत्रकार , बिलासपुर, छत्तीसगढ़.Anonymousnoreply@blogger.com