tag:blogger.com,1999:blog-14277078127313254182024-03-07T20:41:37.256-08:00अपनी ज़मीं अपना आसमांApni zami apana aasamhttp://www.blogger.com/profile/14364264322437285875noreply@blogger.comBlogger71125tag:blogger.com,1999:blog-1427707812731325418.post-12132475227709901872018-04-02T10:27:00.001-07:002018-04-02T10:27:30.525-07:00भावनात्मकता के मोड़ पर हम क्यों कमजोर ?<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<div class="MsoNormal" style="background: white; line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0cm; text-align: justify; text-justify: inter-ideograph;">
<span lang="HI" style="color: #222222; font-family: "Mangal","serif"; font-size: 9.0pt; mso-ascii-theme-font: major-bidi; mso-bidi-theme-font: major-bidi; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-hansi-theme-font: major-bidi;">अपनी कोख में जीवन के नए अंकुर को
पोषण देने वाली सृष्टिस्वरूपा है नारी। धैर्य के साथ अपने घर को सदा के लिए त्याग
जीवनसंगिनी बन एक नए परिवार की जिम्मेदारी संभाल लेती है वह</span><span style="color: #222222; font-family: "Mangal","serif"; font-size: 9.0pt; mso-ascii-theme-font: major-bidi; mso-bidi-theme-font: major-bidi; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-hansi-theme-font: major-bidi;">, <span lang="HI">इतना सशक्त होने
के बाद भी जाने क्यों एक पुरुष की बेवफाई के आगे वह इस कदर कमजोर हो जाती है कि
अपना अस्तिव समाप्त करने जैसा आत्मघाती कदम तक उठा लेती है। सुनंदा पुष्कर के
मामले में यहीं हुआ। वह हर तरह से एक सशक्त नारी थी। इस कदर वह भावनात्मक रूप से
कमजोर होकर जीवन से हार कैसे मान सकती थी। जिन भावनाओं से नारी संसार को खूबसूरत
बनाने का दम रखती है</span>, <span lang="HI">उन्हीं के आगे हार का ये सवाल अब भी
चुभता हैं कहीं। शायद पौराणिक काल से ही नारी अपनी इसी कमजोरी की वजह से दमन का
शिकार होने को मजबूर हुई। हर युग में कंधे से कंधा मिलाकर चलने वाली सहचर्या को
पुरुष ने उसकी भावना के स्तर पर क्षीण करने का हथियार शायद बहुत पहले ही पहचान
लिया था</span>, <span lang="HI">इसी वजह से वह उसे इस मोड़ पर ले आता है जहां वह
शराबी पति</span>, <span lang="HI">पिता भाई से मार खाने के बाद भी उनसे जुड़ी रहने
की विवशता से बंधी रहती है। भावनात्मकता की इस शक्ति को उसे अपने को हर स्थिति में
सशक्त रखने के लिए इस्तेमाल करने की क्षमता विकसित करनी ही होगी। अन्यथा द्रौपदी
का चीर हरण और निर्भया का बलात्कार हर युग की कहानी बनती रहेगी। ब्वॉयफ्रैंड के
फोन न करने से परेशान होकर ट्रेन के आगे कूद जाने वाली</span>, <span lang="HI">जहर
खाकर जान दे देने वाली प्रवृतियों से बाहर आकर</span>, <span lang="HI">कुछ सार्थक
कर दिखाने की इच्छा बलवती करना बेहद जरूरी है।</span> <o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify; text-justify: inter-ideograph;">
<br /></div>
<br /></div>
Apni zami apana aasamhttp://www.blogger.com/profile/14364264322437285875noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1427707812731325418.post-63763133765545371342018-03-17T03:52:00.000-07:002018-04-02T10:24:52.950-07:00हमें महिला दिवस क्यों मनाना चाहिए ?<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<a href="https://rachnaverma.blogspot.in/2018/03/blog-post.html">https://rachnaverma.blogspot.in/2018/03/blog-post.html</a><br />
<div class="MsoNormal">
<br /></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 12.0pt; line-height: 115%;">दुनिया में महिलाओं के प्रतिनिधित्व को आधी आबादी का नाम दिया गया है. आधी
आबादी है इसलिए महिला दिवस मनाना चाहिए और हमें अपने वजूद का अहसास कराना चाहिए.
हमें आधी आबादी बनाया किसने समाज ने दुनिया ने. हमें आधी आबादी के तमगे से नवाज़
कर जब पहले ही आधा-अधूरा करार दिया गया, तो क्या <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>महिला दिवस का दिन मुकर्रर कर ये औरतों को पीछे
धकेलने का एक पुरजोर कदम नहीं है </span><span lang="EN-US" style="font-size: 12.0pt; line-height: 115%; mso-ansi-language: EN-US;">?</span><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 12.0pt; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify; text-justify: inter-ideograph;">
<span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 12.0pt; line-height: 115%;">चंद ही दिन बीते हैं इस
साल के महिला दिवस को गए हुए, लेकिन ये महिला दिवस भी कई महिलाओं को एक कमतरी के
एहसास से भर गया. इस मसले को शुरू करने के लिए अनगिनत उदाहरण हैं हमारे पास, लेकिन
अपने को पूरी आबादी कहलाने का कोई ठोस समाधान आज तक हमें नहीं दिखा. एक उदाहरण तो
हालिया ही है. एक बड़ी कंपनी में महिला दिवस पर कांफ्रेस हॉल में सब एकत्र होते
हैं और एक बड़ा सा केक काट कर महिला दिवस का हो हल्ला मचता है. सभी महिला
कर्मचारियों को स्नैक्स का एक डिब्बा थमा के महिला सशक्तिकरण हो जाता है. लेकिन
उसी ऑफिस के महिला वॉशरूम की कर्मचारी को उस गैदरिंग में शामिल नहीं किया जाता और
न ही उसे स्नैक्स का डिब्बा दिया जाता है. वहां मौजूद अन्य महिला कर्मचारी न उस
महिला को गैदरिंग में शामिल होने के लिए कहती हैं और न ही केक खाने को</span><span lang="EN-US" style="font-size: 12.0pt; line-height: 115%; mso-ansi-language: EN-US;">, </span><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 12.0pt; line-height: 115%;">लेकिन वॉशरूम में फर्श
पर बिखरे पानी को साफ़ करने की नसीहत जरूर दे जाती हैं. </span><span lang="EN-US" style="font-size: 12.0pt; line-height: 115%; mso-ansi-language: EN-US;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify; text-justify: inter-ideograph;">
<span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 12.0pt; line-height: 115%;">लोकल बस की</span><span lang="EN-US" style="font-size: 12.0pt; line-height: 115%; mso-ansi-language: EN-US;"> “</span><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 12.0pt; line-height: 115%;">महिलाएं</span><span lang="EN-US" style="font-size: 12.0pt; line-height: 115%; mso-ansi-language: EN-US;"> ”
</span><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 12.0pt; line-height: 115%;">लिखी सीटें चीख-चीख कर
कहतीं हैं तुम कमजोर हो तुम महिला हो तुम्हें सीट चाहिए, लेकिन उसी सीट पर पुरुष
बैठे हो और कोई महिला भरी बस में दुधमुंहे बच्चे को लेकर परेशान खड़ी हो. उसे
इंसानियत के नाते सीट देनी चाहिए न कि महिला होने के नाते. यहीं महिला यात्रियों
पर भी लागू होता है. लेकिन विडंबना ये है कि आप उस महिला को सीट देने को कहें तो
तपाक से लीडर न बनने की नसीहत दे दी जाती है और बस से उतरने तक सब ऐसे घूरते हैं
जैसे आप कोई अजूबी सी चीज़ हैं. हां हैं न हम अजूबी चीज़ क्योंकि हम औरत हैं और हमें
केवल और केवल इंसान की तरह देखने की जहमत अभी तक नहीं उठाई गई हैं. </span><span lang="EN-US" style="font-size: 12.0pt; line-height: 115%; mso-ansi-language: EN-US;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify; text-justify: inter-ideograph;">
<span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 12.0pt; line-height: 115%;">दुनिया में ये फ़ासला
अभी तक पट नहीं पाया है. जिंदगी के कई मोड़ों पर ये खाई साफ़ दिखाई देती है. कोई
पुरूष 10 साल छोटी महिला से शादी कर ले तो कोई उस महिला की तारीफ़ों के पुल नहीं बांधता,</span><span lang="HI" style="font-size: 12.0pt; line-height: 115%; mso-ansi-language: EN-US;"> </span><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 12.0pt; line-height: 115%;">लेकिन पुरूष अपने से 10
साल बड़ी महिला से शादी कर ले तो जैसे वो एकाएक हीरो बन जाता है. गोया कि महिला पर
उसने कोई एहसान किया हो. शादी में ये क्यों जरूरी है कि हमेशा लड़की ही लड़के की
उम्र से कम होनी चाहिए. महिला किसी विवाहित पुरुष से शादी कर ले तो वह घर तोड़ने
वाली का ख़िताब पाती है और कोई पुरूष किसी विवाहित महिला से शादी कर ले तो शायद ही
दुनिया ने उसे कोई नाम दिया हो या लताड़ा हो. लड़की को ही शादी के बाद अपना घर
छोड़कर लड़के के घर जाना होगा. इसके कुछ अपवाद भी</span><span lang="HI" style="font-size: 12.0pt; line-height: 115%; mso-ansi-language: EN-US;"> </span><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 12.0pt; line-height: 115%;">है लेकिन बिरले ही है.</span><span lang="EN-US" style="font-size: 12.0pt; line-height: 115%; mso-ansi-language: EN-US;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify; text-justify: inter-ideograph;">
<span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 12.0pt; line-height: 115%;">बिंदी लगाकर और मांग भर
कर ही कोई महिला शादीशुदा क्यों कहलाती है, बिंदी न लगाने वाली विवाहित महिलाएं
क्या अपने पति से प्यार नहीं करती. कोई विधवा होने का बाद दूसरी शादी कर ले तो
समाज कितनी सहजता से इसे स्वीकार कर पाता है, लेकिन पुरुष के विधुर होते ही उसकी
शादी की पुरजोर कोशिशें की जाती हैं.</span><span lang="EN-US" style="font-size: 12.0pt; line-height: 115%; mso-ansi-language: EN-US;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify; text-justify: inter-ideograph;">
<span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 12.0pt; line-height: 115%;">किसी भी औरत का मां बनना
और न बनना उसका नितांत अपना फ़ैसला है, लेकिन मां न बनने से औरत को अधूरी कहने का
रिवाज़ क्यों कर ख़त्म नहीं होता. एक पुरुष अविवाहित रह सकता है, लेकिन एक महिला
जब अविवाहित रहना चाहे तो क्यों समाज़ ये बात आसानी से पचा पाता है.</span><span lang="HI" style="font-size: 12.0pt; line-height: 115%; mso-ansi-language: EN-US;"> </span><span lang="EN-US" style="font-size: 12.0pt; line-height: 115%; mso-ansi-language: EN-US;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify; text-justify: inter-ideograph;">
<span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 12.0pt; line-height: 115%;">किसी लड़के के छाती के
बाल शर्ट से झलक आएं तो उसका पौरूष झलकता है और गलती से किसी लड़की के कांख के बाल
या ब्रा का स्ट्रेप दिख जाए तो वो बेपरवाह और बेशर्म कहलाती है. क्यों हम आदमी की
तरह ही औरत के शरीर को सहजता से नहीं ले पाते. किसी महिला की अचानक मौत हो जाएं तो
सब अफेयर, प्रेगनेंट के कयासों के साथ उसके कैरेक्टर का ऑपरेशन करने लगते हैं.</span><span lang="EN-US" style="font-size: 12.0pt; line-height: 115%; mso-ansi-language: EN-US;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify; text-justify: inter-ideograph;">
<span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 12.0pt; line-height: 115%;">किसी अविवाहित लड़की के
गर्भवती होने पर उसके लिए ही समाज कुलटा, बदचलन जैसे उपनामों से उसे नवाज़ता है,
लेकिन उसे गर्भवती करने वाले पुरुष के लिए समाज को शायह ही अब तक कोई सटीक
अपमानजनक शब्द विशेष मिल पाया हो. किसी की बेइज्जती करनी है तो शुरू हो जाइए मां
बहन की गालियों से, क्यों आपसे बाप भाई की गाली से बेइज्जती नहीं करवाई जाती.</span><span lang="EN-US" style="font-size: 12.0pt; line-height: 115%; mso-ansi-language: EN-US;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify; text-justify: inter-ideograph;">
<span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 12.0pt; line-height: 115%;">औरत से इश्क किया जा सकता
है, लेकिन वो इश्क का इज़हार कर डाले तो बेहया हो जाती है, क्योंकि इश्क और सेक्स
लिखती औरतें सब को भा सकती हैं, लेकिन इश्क और सेक्स करती औरतें ख़ुद –बख़ुद बेहया
हो जाती हैं. इतना सब होने के बाद भी महिला दिवस का ढोल पीटना बेमानी और ख़ुद को
दिन में सपने दिखाने सरीखा हैं.</span><span lang="EN-US" style="font-size: 12.0pt; line-height: 115%; mso-ansi-language: EN-US;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify; text-justify: inter-ideograph;">
<br /></div>
</div>
Apni zami apana aasamhttp://www.blogger.com/profile/14364264322437285875noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1427707812731325418.post-16358805445044843622013-09-12T08:59:00.003-07:002018-04-02T10:34:59.979-07:0022 साल के दर्द की दवा तलाशती हूं....<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<b><br /></b>
<b>सरबजीत सिंह की बहन से ये बातचीत उनके 3 सितंबर 2012 में नोएडा आगमन पर हुई थी, लेकिन किसी कारण वश ये दैनिक जागरण में प्रकाशित नहीं हुई। आज पुरानी फाइल चेक करते समय इस पर नजर पड़ी तो लगा कि इसे शेयर किया जाना चाहिए। </b><br />
<br />
<br />
<div style="text-align: left;">
<br /></div>
- मीडिया से की अपील प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री की पाक यात्रा से पहले उठाए इस मुद्दे को<br />
- पहले ही सरबजीत का मामला गंभीरता से लिया जाता तो घर होता वह<br />
- भाई को वापस लाना ही लक्ष्य<br />
''सरहदों की हदें इस कदर पक्की हैं कि तेरे-मेरे दर्द का उससे वास्ता नहीं, मेरे घर का एक टुकड़ा सरहद के उस पार आज भी है, चंद मीलों के इस फासले को सदियों में तब्दील कर डाला सियासतों के चंद सिलसिलों नेÓÓ पाक में बंद सरबजीत सिंह की दीदी दलबीर कौर के दिल में यहीं सवाल बार-बार उठता हैं कि आखिर उसके छोटे भाई का दोष क्या था, जो उसे अपनों से दूर होकर जिंदगी काटनी पड़ रही हैं। भाई की रिहाई के लिए अभिनेता रजा मुराद की मुहिम के तहत वह उनसे मिलने नोएडा आई थी। भाई के पाक कैदी होने का उनके परिवार को जो सिला मिला वह उन्होंने बयां किया।<br />
नौ महीने तक पता नहीं था भाई का: दलबीर बताती हैं कि पंजाब के भिखीविंड में उनका किसान भाई सरबजीत सिंह खुशी से रह रहा था। 28 अगस्त 1990 को अचानक भाई गुम हो गया। दोस्तों, रिश्तेदारों में ढूंढा, लेकिन नौ महीने तक कुछ पता नहीं चला, अचानक घर में एक चिट्ठी आई। सरबजीत ने इसमें लाहौर कोर्ट में पहली पेशी का पूरा मजमून लिख डाला। पाक हुकूमत ने उसे सीधे साधे किसान से मनजीत कौर बम धमाके के आरोपी का तमगा दे डाला था, उसके बाद इतनी चिïिट्ठयां आई जिनकी गिनती भी नहीं की जा सकती।<br />
हुकूमत ने नहीं लिया गंभीरता से: उनके परिवार की इस दिक्कत को शुरूआती दौर में हिन्दोस्तान की सरकार से गंभीरता से नहीं लिया, वरना अब तक भाई रिहा हो गया होता। उसे एक आम नागरिक की तरह रिहा कराने के बदले उसकी रिहाई की मांग भी आंतकवादी मुद्दे को लेकर की जाती। ये कहना है दलबीर कौर का। वह बताती हैं कि तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव से लेकर गृहमंत्री से वह इस मामले को लेकर मिलती रहीं थी। इस मामले को हवा मीडिया में आने के बाद मिली वह मीडिया की शुक्रगुजार हैं। मीडिया से उनकी अपील है कि सितंबर में प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री की प्रस्तावित पाक यात्रा से पहले इस मुद्दे को उठाएं तो शायद वह इस वर्ष की दीपावली अपने भाई के साथ मना पाएं।<br />
पल-पल कमी महसूस होती है सरबजीत की: सरबजीत पिता के बाद परिवार में दूसरा मर्द था। जब वह गुम हुआ छोटी बेटी पूनम 23 दिन और बड़ी बेटी स्वपनदीप कौर दो ïवर्ष की थी। बेटियों के सिर बाप का प्यार का साया छीन गया। पैरेंट्स मीटिंग में भाभी सुखप्रीत अकेली जाती, बच्चे पिता के बारे में पूछते तो उसकी आंखों से आंसू झरते। घर की आर्थिक स्थिति भी खराब हो चली थी। पिता सुलखन भाई की फोटो को सोने से पहले सैल्यूट करते और कहते 'साब जी में सोने चला, तुमसे मिलना चाहता हूं, जल्दी आ जाओं कहीं तुम्हारे आने से पहले न चल दूं।Ó गांव के किसी भी समारोह में जाते भाई को याद कर रोते रहते। एक दिन इसी दुख में चल बसे।<br />
खुशी देकर गम दिया: वह बताती है जब मीडिया में हर तरफ उनके भाई की रिहाई की खबरें चल रही थी, परिवार में जश्न का माहौल था। अचानक जैसे घर में मातम छा गया, क्योंकि भाई की जगह सुरजीत की रिहाई हुई। हालांकि ये अच्छा हुआ कि किसी को तो उसके घर वापस आने को मिला।<br />
22 साल से राखी को इंतजार: वह कहती हैं कि विवाहित होने के नाते कई बार उन्हें भाई की रिहाई की इस मुहिम के लिए ससुरालवालों के खिलाफ भी जाना पड़ा, लेकिन उन्होंने अपने जीवन का लक्ष्य ही भाई को वापस लाना बना लिया है। 22 साल से उनकी राखी भाई की कलाई का इंतजार करती रहीं। वह बाघा बार्डर पर जाकर फौजियों को राखी बांधती रहीं, लेकिन जब भी वहां जाती दो सरहदों पर खिंची उस लाइन को घंटों देखा करती। सोचती ये न होती लाहौर और बाघा साथ मिलकर प्यार का गीत गाते।<br />
राहुल गांधी के लिए दुआ: वर्ष 2008 में राहुल गांधी ने सरबजीत के मामले को गंभीरता से लिया। इसके बाद सोनिया जी, गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे, विदेश मंत्री एसएम कृष्णा ने भी उनके मन में उम्मीद जगाई है। राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के बेटे अभिजीत मुखर्जी की पहल के लिए उनका परिवार अहसानमंद है। पाक में असमां जहांगीर, एनजीओ और आसिफ अली जरदारी की ईमानदार कोशिशों के साथ ही अपने देश के हर एक बाशिंदे से मिले सहयोग को सलाम करती है।<br />
---------------------<br />
रचना वर्मा <br />
<div>
<br /></div>
</div>
Apni zami apana aasamhttp://www.blogger.com/profile/14364264322437285875noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1427707812731325418.post-62303910030787913082013-09-06T02:13:00.004-07:002018-04-02T10:39:22.305-07:00 जीवन सरीखी है बांसुरी : पंडित हरिप्रसाद चौरसिया<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<h3 style="text-align: left;">
<br />पंडित हरिप्रसाद चौरसिया का ये साक्षात्कार संपादक जी ने महज ये कह कर छपवाने से इंकार कर दिया था कि इसका नोएडा से क्या मतलब. कौन पढ़ेगा पंडित हरिप्रसाद चौरसिया को नोएडा में. इसे मैंने अपने ब्लॉग में स्थान देना उचित समझा.<br /><br />- बांसुरी अजेय है और रहेगी<br />-हुनर की तुलना करना ठीक नहीं<br />- संगीत की एक है बोली</h3>
<h3 style="text-align: left;">
''मुझे अंग्रेजी अधिक नहीं आती, बच्चों हिंदी में बात करूंगा तो समझ जाएओ ना "<span style="font-weight: normal;">चेहरे पर विस्मित कर देने वाली कृष्ण सरीखी मुस्कान, अधरों से कुछ दूरी पर हाथों में बांसुरी... कुछ इस अंदाज में मशहूर बांसुरी वादक पंडित हरिप्रसाद चौरसिया सरला चोपड़ा डीएवी सेंटनेरी स्कूल के छात्रों से रूबरू हुए थे. इस दौरान उन्होंने बांसुरी और उसके भविष्य को लेकर विशेष बातचीत की।</span><br />चंद्रमा और बल्ब के प्रकाश की तुलना नहीं:<span style="font-weight: normal;"> बांसुरी वादन के शिखर पर पहुंचने वाले पंडित चौरसिया न बांसुरी वादन का भविष्य उज्जवल बताया। उन्होंने कहा कि आधुनिक वाद्य यंत्रों के बीच आज भी बांसुरी अजेय है, क्योंकि बल्ब का प्रकाश अलग है और चंद्रमा का अलग। बांसुरी भूत में थी, वर्तमान में है और भविष्य में भी रहेगी। ये वाद्य पूरे विश्व में अपनी पहचान बना चुका है। भले ही नई पीढ़ी बांस की बनी बांसुरी न बजाती हो, लेकिन कहीं स्टील तो कहीं अन्य वस्तुओं से बनी बांसुरी वह अपने संगीत में शामिल कर चुकी है।</span><br />जीवन सरीखी है बांसुरी:<span style="font-weight: normal;"> बांसुरी सबसे पुराना वाद्य यंत्र है। भगवान श्रीकृष्ण की सोच ने इसे लोक वाद्य बनाया और उन्ही की तरह ये हर जगह पहुंच गई। इसका निर्माण कारखाने में नहीं होता। एक तरह से बांसुरी मानव जीवन सरीखी है, इसकी उम्र और जीवन -मरण भी अनिश्चित है। इसके लिए जंगलों से चुन के बांस लेना पड़ता है, वह बांस सीधा और गांठ रहित होना आवश्यक होता है। इसके निर्माण के बाद मानव जीवन की तरह ही इसके चलने का कोई पता नहीं होता।</span><br />सामान्य और साधारण ही होता है अप्रितम:<span style="font-weight: normal;"> पंडित चौरसिया ने कहा कि जो भी सादगी से परिपूर्ण है, वह मधुर है, सुंदर, अप्रितम है, संगीत के साथ भी ये बात लागू होती है। ये जरूरी नहीं आगे आने वाले बांसुरी वादन की पीढ़ी उनकी बांसुरी वादन की विरासत को आगे बढ़ाए, इसलिए वह हुनर की तुलना को सही नहीं समझते। जिस तरह हर फूल की अपनी खूबसूरती होती है, उसी तरह हर एक के हुनर की अपनी खासियत होती है।</span><br />संगीत का एक है मजहब:<span style="font-weight: normal;"> बांसुरी पर ओम जय जगदीश भी बजता है और जिंगल बेल जिंगल बेल भी दोनों ही संगीत का रूप है भले ही भाषा अलग हो। संगीत कहीं का भी हो, उसके स्वर लय एक है। संगीत किसी देश या क्षेत्र विशेष का नहीं होता, बस हमारे विचारों का अंतर ही इसे देश काल की परिधि में बांधता है। ये बात फिल्मी संगीत पर भी लागू होती है, स्वर अच्छे लगे, लय, ताल ठीक हो, अच्छे से लिखा गीत हो तो फिल्मी संगीत भी अच्छा है। इतना ही कहंूगा कि जो जिसको भा जाएं वो अच्छा है।</span><br />संघर्ष में है जीवन का आनंद:<span style="font-weight: normal;"> पंडित चौरसिया बताते हैं कि उनके पिता उन्हें कुश्ती के दांव सीखा पहलवान बनाने के इच्छुक थे। पिता की इस इच्छा से उन्हें जीवन से संघर्ष करने की सीख मिली। जिस तरह कुश्ती में जीतने के लिए संघर्ष करना पड़ता है, उसी तरह जीवन के हर क्षेत्र हर विषय में संघर्ष हैं, क्योंकि संघर्ष में ही जीवन का आनंद है</span><br /><span style="font-weight: normal;">--------------------</span></h3>
</div>
Apni zami apana aasamhttp://www.blogger.com/profile/14364264322437285875noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1427707812731325418.post-49893603583505179302013-06-27T04:41:00.000-07:002018-04-02T10:36:59.820-07:00साल रहा अपनी ही जमीं में जमींदोज होने का दर्द<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<b>केदारनाथ अापदा पर लिखी गई मेरी रिपोर्ट जिसे दैनिक जागरण ने प्रकाशित करना जरूरी</b><br />
<b> नहीं समझा था.</b><br />
<br />
<b>- राहत सामग्र्री को भी तरसे आपदाग्र्रस्त इलाकों के बाशिंदे</b><br />
<b>- घर-बार सब ले गया पानी का बहाव, अब जिंदगी के बहाव की चिंता रही साल </b><br />
<b>- भूखे-प्यासे बच्चों की जिंदगी बचाने के लिए नमक भी मुश्किल से नसीब </b><br />
... अपनी ही जमीं में जमींदोज हो जाना और पल-पल जिन्दगी की टूटती सांसों को थामने की जद्दोजेहद लगे रहना, कुछ ऐसे ही असहनीय और अकल्पनीय दर्द को प्राकृतिक आपदाग्र्रस्त उत्तराखंड के स्थानीय बाशिंदे रोज झेल रहे हैं। आपदा में फंसे तीर्थयात्रियों और पर्यटकों को वहां से बाहर निकलने के लिए शासन-प्रशासन सब एक जुट है, लेकिन यहां की मिïट्टी में रचे-बसे लोगों को उनके पैरो तले जमीन और छत दिलाने की कोशिश का कहीं निंशा तक नहीं दिखता। ये केवल चमोली के गांव नारायणबगड़ की ही हकीकत नहीं बल्कि आपदाग्र्रस्त देवभूमि के जर्रे-जर्रे का यही हाल है। आपदा के मारे इन लोगों के पास अपनी ही मिïट्टी में दम साधने के सिवा कोई चारा नहीं बचा है।<br />
एक था नारायणबगड़: कर्णप्रयाग से ग्वालदम को जाने वाला मुख्य मार्ग चमोली के नारायणबगड़ गांव की पहचान था। अंग्र्रेजों का बनाए 150 वर्ष पहले बनाए नारायणबगड़ पुल का ऐतिहासिक महत्व का गवाह था। इस इलाके में 150 लोग अपनी गुजर -बसर ढाबो और छोटे-मोटे व्यवसाय कर चला लेते थे, लेकिन 15 जून के बाद यहां का मंजर पूरी तरह बदल गया है। 40-50 लोगों के रोजी-रोटी का सहारा छिन गया, घर-द्वार सब आपदा ने लील लिया। इन स्थानीय लोगों का यहां रहना इनकी मजबूरी ही नहीं बल्कि अपनी जन्मभूमि से जुड़ाव भी है। इन लोगों को एयर लिफ्ट करके यहां से बाहर जाने की आस नहीं, लेकिन हेलीकॉप्टर की राहत सामग्र्री का इंतजार जरूर है। इस पर भी पर्यटकों और यात्रियों को आपदाग्र्रस्त इलाके से बाहर निकालने चिंता में इन स्थानीय बाशिंदों की अनदेखी हो रही है। दवाईयां तो दूर रसद भी यहां नहीं पहुंच पा रही है।<br />
आंखों में बेघर होने का दर्द और सिर पर 15 भूखे पेट पालने की चिंता: ढाबा चलाकर विरेन्द्र सिंह कठैत और उनकी पत्नी पार्वती 15 लोगों को परिवार पालते थे।<br />
ये दंपत्ति अपने चार बच्चों के साथ ही स्वर्गीय बड़े भाई के तीन बच्चों के साथ ही बहन के चार बच्चों का भी पेट पाल रहे थे। अब न इनके पास ढाबा रहा और न घर। पार्वती की आंखों में आंसू रूकने का नाम नहीं ले रहे, आगे बच्चों के भविष्य क्या होगा यही सोच कर वह गश खाकर गिर जाती हैं। विरेन्द्र सिंह ने बताया कि सड़क किनारे ढाबे के ढहने के बाद उन्होंने जैसे -तैसे प्राथमिक स्कूल में शरण ली। उनके गांव के कुछ लोगों की मदद से उन्हें थोड़े चावल मिले है उन्हें पानी में नमक मिलाकर वह बच्चों को दे रहे है। हर सुबह उन्हें यह चिंता रहती हैं कि बच्चों को कहीं कुछ हो न जाएं। प्रशासन या अन्य किसी बाहरी सहायता उन्हें नहीं मिली है।<br />
घर की चाबी की गुच्छा है संपत्ति के नाम पर: आंगनवाड़ी कार्यकर्ता जानकी अपनी बेटी और बूढ़े पिता के साथ सड़क पर है, पानी के रेले में ढहते किराए के आशियाने की याद कर वह फफक पड़ती है। तलाकशुदा इस महिला का कहना है कि उन्हें समझ नहीं आ रहा हैं कि वह कहां जाएंगी, न आमदनी का सहारा रहा और न घर का ठिकाना। उनके पास संपत्ति के नाम पर तीन चाबियों वाला गुच्छा भर ही रह गया। आंखों की कोर में बार-बार आती नमी को पोछते हुए इतना ही कहती हैं कि शासन यहां से लोगों के बाहर निकलाने और उनकी कुशलता के लिए तो प्रयास कर रहे हैं, लेकिन वह तो यहीं के रहने वाले है वह कहां जाएं। किसी भी प्रकार की सहायता न मिलने से उनके लोग भूख और प्यास से बेहाल है।<br />
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<b>गिरीश तिवारी की केदारनाथ से दी गई जानकारी के बाद मेरे द्वारा लिखी गया हाल-ए- केदारनाथ</b></div>
Apni zami apana aasamhttp://www.blogger.com/profile/14364264322437285875noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1427707812731325418.post-15081426726541676492013-06-21T07:02:00.004-07:002013-06-23T09:33:51.680-07:00मासूम आंखों में समाया प्रकृति का भयावह रूप<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<b>- समझ आया आपदा में भोजन का महत्व</b><br />
<b>- प्रकृति के लिए न बने कठोर</b><br />
<b>- डूबते मकान और सड़के देख डर बैठ गया मन में</b><br />
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छह जून को हम 14 छात्रों का दल इनमी ट्रैंकिंग दल के साथ दिल्ली से ऋषिकेश के लिए निकला। सात जून सुबह ऋषिकेश बेस कैंप पहुंचे। कल्पना भी नहीं की थी वापसी में उस बेस कैंप का नामोनिशां तक नहीं रहेगा। सात जून से 20 जून घर पहुंचने तक मेरी आंखों में पानी में डूबती सड़कों और मकानों का मंजर खौफ जगाता रहा। प्रकृति के इस भयावह रूप के दर्शन मैंने अपने पांच साल की ट्रैकिंग में कभी नहीं किए थे। घर सही सलामत वापस लौट कर मुझे इतना समझ आ गया कि हमें पर्यावरण के प्रति कठोर नहीं होना चाहिए, पेड़ काटने पर लगाम लगानी चाहिए, अपनी नदियों को प्रदूषण से बचाना चाहिए। इस वाकये के बाद मैं और मेरे दोस्त पर्यावरण संरक्षण के लिए जागरूकता फैलाने में अपना पूरा योगदान देंगे। टिहरी जैसे डैम बनाने से पहले 10 बार सोचना चाहिए।<br />
सात जून को ऋषिकेश बेस कैंप से हम केदारनाथ से भी आगे दियारा टॉप के लिए निकले कम से कम जमीन से 11,000 फीट ऊपर दियारा चारगाह में चार दिन बिताने के बाद हम वापस लौट रहे थे, अंदाजा भी नहीं था कि नीचे इतनी तबाही मची हुई है, 15 जून को बारिश हो रही थी, हमारे साथ गए इंस्ट्रक्टर फोन पर मौसम का हाल पूछ- पूछ कर हमारे दल को आगे लेकर बढ़ रहे थे। रास्ते में पानी के साथ बहते बड़े-बड़े मकान, पानी पर तैरते कार, ट्रक और बचाने की गुहार लगाते लोग, पानी में डूबती जाती लंबी-लंबी सड़के देख हम सभी काफी डर गए। 16 जून की सुबह हम उत्तरकाशी पहुंचे, लेकिन पता चला की जिस ऋषिकेश के जिस बैस कैंप में हम ठहरे थे, वह बह गया। हमारे दल के लिए वह सबसे बड़ा सदमा था। छह लड़कों और आठ लड़कियों के हमारे दल में कई बच्चे होम सिकनेस का शिकार हो गए। दो लड़कियां की हालत ज्यादा बिगड़ गई। अलग-अलग तरह के भयावह ख्याल आ रहे थे, घर नहीं पहुंच पाएं तो बस के चलते-चलते रोड धस गई तो, हम सब आपस में ऐसी ही बातें कर रहे थे। उत्तरकाशी के राधिका होटल में हमारा दल रूका था और 10 दिनों में भेलपूरी और ब्रेड बटर ही हमारा भोजन था। हमारे इंस्ट्रकटर पानी और भोजन बरबाद न करने को कह रहे थे और हम सबको पहली बार पता चला कि भोजन का महत्व क्या है। हम सारे होटल की छत पर खड़े होकर प्रकृति की विनाशकारी शक्ति का आकलन अपने- अपने अंदाज में कर रहे थे। हमारे सामने बिल्डिंग जमीनदोंज हो रही थी, लोग अफरा-तफरी में भाग रहे थे। इस बीच हमारे इंस्ट्रक्टर्स को हमारे अभिभावकों के लगातार फोन आ रहे थे, वह हमारे बारे में काफी चिंतित थे। हमारे इंस्ट्रक्टर्स हमसे तैयार रहने को कह रहे थे। 19 जून को बारिश की रफ्तार कम हुई और हम बस के जरिए ऋषिकेश पहुंचे और यहां से दिल्ली के लिए निकले। 20 जून की रात दो बजे हम दिल्ली पहुंचे। लगभग 18 घंटे की इस यात्रा में हम यहीं मना रहे थे कि घर पहुंच जाएं। दिल्ली पहुंचते ही सभी के मां -पापा गले लग कर हमें प्यार कर रहे थे, कई बच्चों की मम्मियां रो रही थी। मैं हमेशा ट्रैकिंग से आकर अपने रूम में चला जाता था, लेकिन इस बार ऐसा पता नहीं क्या था कि मां को गले लगाकर कुछ मिनट तक सोचता रहा।<br />
प्रस्तुति : 14 वर्षीय करन नाग, सेक्टर-36 नोएडा<br />
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<span style="font-size: large;">बचपन में एक बार मेरी बुआ ने मुझे 'हिरोईनÓ कहा तो मैं ऐसी बिदकी जैसे कि किसी ने मुझे विषैला डंक मार दिया हो, उस छोटे से पहाड़ी कस्बे अल्मोड़ा की आबो हवा में पली एक लड़की के लिए 'हिरोईनÓ का अर्थ शायद उतना ही भद्दा और अभद्र था जैसे कोई गाली। ये उस वक्त की बात है जब शायद मैं 20 वर्ष के उस सुहाने से दौर से गुजर रही थी, जब मन सपनों के आकाश में उड़ान भरा करता था और कल्पना के सागर में गोते लगाया करता था। उस दौर और आज के दौर में हिरोईन का अर्थ मेरे लिए कितना व्यापक हो गया ये मुझे आज एक चैनल पर हिरोईन मूवी के देखते समय हुआ। पत्रकारिता के इस पेशे में रहते हुए उम्र का तीसवे पड़ाव पर मुझे भी अपनी स्थिति उस हिरोईन जैसी ही लगी। हालांकि हिरोईन जैसी सफलता का आकाश तो मैंने नहीं छुआ, लेकिन एक छोटे से कस्बे से आकर दिल्ली -एनसीआर के पत्रकारिता जगत में एक छोटा सी जगह बना ली। पत्रकारिता का जगत फिल्मी दुनिया से ज्यादा अलग नहीं है, बस अंतर इतना ही है कि यहां पर्दे पर अभिनय नहीं होता, वास्तविक अभिनय जरूर होता है, वहीं नैतिक मूल्यों से परे कि प्रतिस्पर्धा। मीडिया हॉउस में विशेषकर प्रिंट मीडिया में सजावटी तौर पर महिलाओं और युवतियों का प्रतिनिधित्व है। यहां भी काबिलियत को कम चिकने चमकते चेहरों पर करियर का ग्र्राफ टिका करता है। शायद यौवन की दहलीज पर पत्रकारिता में कदम रखने के बाद भी मैं ये समझ नहीं पाई थी, क्योंकि ईमानदारी से पत्रकारिता और रिपोर्टिंग का जुनून मेरे सिर पर सवार था, पर उम्र के 36 वें पड़ाव पर मेरा हाल भी हिरोईन फिल्म के किरदार मेघा अरोड़ा की तरह असुरक्षा की भावना से भरा रहता है। लगने लगा है 11 वर्ष इस पेशे में खून पसीना लगा दिया, लेकिन अब भी खाली हाथ और ऐसा एकाकीपन जो शायद कभी खत्म ही न हो। कभी-कभी इस पेशे में आ रही युवा फैशनपरस्त लड़कियों से भी स्वंय को असुरक्षित महसूस करने का भाव। उसमें मेरे अपने पेशे के प्रति मेरा समर्पण भी मुंह चिढ़ाने लगता है। </span></div>
Apni zami apana aasamhttp://www.blogger.com/profile/14364264322437285875noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1427707812731325418.post-17470546964870736612013-04-28T08:26:00.003-07:002013-04-28T08:26:53.566-07:00नारी सशक्तिकरण: हौसले से बदल डाली तकदीर की तस्वीरें<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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- महिला हस्तशिल्पियों ने बयां की नारी सशक्तिकरण की कहानी<br />
- हाथ के हुनर को बनाया आत्मनिर्भरता का हथियार<br />
- विषम परिस्थितियों में नहीं मानी हार<br />
रचना वर्मा,नोएडा: ख्वाबों की ताबीरों के लिए हिम्मत और हौसलों का हासिल ही सब कुछ है, क्या हुआ जो तालीम का मौका नहीं मिला, क्या हुआ जो शहरों में रहने का सिलसिला नहीं मिला,अपने हुनर से किस्मत का रूख मोड़ ख्वाबों को धरातल पर ला खड़ा किया। देश के विभिन्न राज्यों से सेक्टर-21 ए स्टेडियम में गांधी शिल्प बाजार में आई प्रत्येक महिला हस्त शिल्पी की अपनी कहानी है, लेकिन सुदूर गांवों में रहने वाली इन महिलाओं ने अपनी कला से नारी सशक्तीकरण को देश में सच कर दिखाया है। यहां लगी 150 स्टॉल में 25 फीसद इन महिलाओं की हैं। अपने परिवार में ही नहीं बल्कि गांव में इनकी सफलता अन्य महिलाओं को भी प्रेरणा दे रही है।<br />
हुनर से संभाला तलाक के बाद परिवार: अलीगढ़ के अमीनिशा की 32 वर्षीय शाहना के जिंदादिल मिजाज को देख शायद ही कोई इस महिला के दर्द का अनुमान लगा पाएं। 11 वर्ष पहले पति ने तीन बच्चों के साथ उन्हें अकेला छोड़ दिया, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और अपने हाथ के हुनर को ही मुफलिसी और मुसीबत से निकलने का हथियार बना डाला। 10 वीं पास अमीना एपलिक और पैच वर्क के काम से अपना अलग मुकाम बनाया। वह बताती हैं कि जिंदगी में सफल होने के लिए हिम्मत और हौसला होना चाहिए। उनकी स्टॉल पर पैच वर्क का सामान लेने आने वाले भी उनकी खुशमिजाजी के कायल हुए बिना नहीं रहते।<br />
घर-घर जाकर बेचा कांथा: 15 वर्ष पहले जब पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले के उत्तराकोना गांव की पदमा घर-घर जाकर कांथा (कपड़े पर कढ़ाई) के कपड़े बेचा करती थी, तो उन्होंने सोचा भी नहीं था कि उनका ये काम उन्हें ही नहीं उनके परिवार को अलग पहचान दिलाएगा। वह बताती हैं कि शादी के बाद उन्होंने परिवार की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए ये काम सीखा। कई बार लोग कपड़े पर काम करने को नहीं देते थे, लेकिन उन्होंने भी ठान ली कि पीछे नहीं हटना। मौजूदा समय में उनके कांथा वर्क की मुम्बई तक मांग है। उनके अंडर 150 लड़कियां रोजगार पा रही है। महीने में 10 से 20 हजार की कमाई हो ही जाती है।<br />
ससुराल में जमाई धाक: कोलकता की 35 वर्षीय सीमा बनर्जी को शीप लेदर के काम में महारत हासिल है। शादी से पहले वह ये काम किया करती थी, लेकिन उसके बाद भी उन्होंने अपने इस शौक को इस कदर बढ़ाया कि उनके सुसराल वाले उनके कायल हो गए। शीप लेदर के पर्स और अन्य सामान बनाकर वह आस्ट्रेलिया, कनाडा, यूएस में भी अपने काम को पहचान दिला चुकी है। उनके इस व्यवसाय से उनके पति भी जुड़ गई हैं।<br />
पत्थर को तराश कर बनाती है क्रिस्टल: तमिलनाडु के त्रिचनापल्ली की मंजुला और सुलोचना कठोर पत्थरों को क्रिस्टल की खूबसूरत मालाओं में तब्दील करती है। तांबे के तार में भी इन क्रिस्टल को पिरोना का काम करती है। दोनों बताती है कि इससे परिवार की आय भी बढ़ती है और उनके खुद के खर्चे का इंतजाम भी हो जाता है।<br />
राज्य स्तरीय अवार्ड तक बनाई पहचान: आठ साल की उम्र में कांथा स्टिच का काम पकड़ा और उसे इस मुकाम तक रजिया ने लाकर छोड़ा, जहां कोलकता ही नहीं बल्कि पूरे देश में उनका कांथा मशहूर होने लगा। ऐसे रूढि़वादी परिवार में जहां औरत के सिर से पल्लू हटने को भी बड़ी गलती माना जाता है, सिर पर पल्लू रखकर ही उन्होंने सफलता की इबारत लिख डाली।<br />
जूट के बैग से पल रहा परिवार का पेट: बिमला ने शादी के बाद पति की गरीबी का रोना नहीं रोया, बल्कि उनके जूट के बैग बनाने के कारोबार में रम गई। पति जूट के बैग बनाते है और वह उनकी कटिंग करती है। उनकी स्टॉल में सजे जूट के बैग उनकी कलात्मकता को बताते हैं। वह कहती हैं कि उन्हें संतुष्टि है कि उनका परिवार चल रहा है।<br />
अपनी कमाई से आत्मनिर्भरता का अहसास:सेक्टर-31 निवासी 33 वर्षीय अक्षिता अग्र्रवाल के चेहरे पर उनके आत्मनिर्भरता का अहसास साफ झलकता है। शादी के बाद आकांक्षा ने अपनी कमाई करने के लिए पुराने कपड़े से मल्टी परपज पाउच के हुनर को निखारा। आज उन्होंने अपने इस काम से पांच जरूरतमंद लड़कियों को रोजगार दिया है।<br />
अविवाहित रहकर संभाली परिवार की जिम्मेदारी: असम की 50 वर्षीय मीना अविवाहित है। उन्हें असम सिल्क के काम में प्रवीणता है। गोवाहटी में अपने परिवार की वह सर्वेसर्वा है। उन्होंने अपने काम से परिवार की जिम्मेदारियों को बखूबी अंजाम दिया है।<br />
हर एक का संघर्ष सफलता की कहानी: इटोंजा की 40 वर्षीय रूबीना ने पति के कैंसर से भी हार नहीं मानी और कुशलता के साथ चिकन के कारोबार संभाला। गुजरात की गीता, सीता ने भी जरी के काम को परिवार के पालन का जरिया बना डाला। अरूणाचल की टोका रूपा ने कागज के फूलों, आंन्ध्रा के गांव निम्मलकुंटा की ममता ने बकरी के चमड़े पर कलमकारी हस्तकला के रंग बिखेरे, बिहार की अंजू केसर और परिवार की जरूरतों को पूरा किया।<br />
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रचना वर्मा<br />
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Apni zami apana aasamhttp://www.blogger.com/profile/14364264322437285875noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1427707812731325418.post-75820832201847282122013-04-28T08:21:00.002-07:002013-04-28T08:21:19.946-07:00इस उजली तस्वीर में है स्याह भी बहुत कुछ<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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- 1952 के बाद जिले को नहीं मिली महिला विधायक<br />
- पीएनडीटी एक्ट के तहत मात्र दो अल्ट्रासाउंड केंद्रों पर कार्रवाई<br />
- बालिकाओं की संख्या में भी जिला पिछड़ा<br />
- आधी आबादी साक्षरता में भी रह गई पीछे<br />
संवाददाता,नोएडा: नारी सशक्तीकरण की एक उजली तस्वीर है आज का दौर, लेकिन इस तस्वीर में अभी भी ऐसे कई स्याह पहलू जिन्हें उजला किए बिना आधी आबादी को अपने अस्तिव की जंग जीतना मुश्किल लगता है। फिर चाहे वह शिक्षा देने के मामले में लड़कियों के साथ होता भेदभाव हो या फिर कन्या भ्रूण हत्या का भयावह सत्य।<br />
लिंगानुपात में प्रदेश में चौथा संवेदनशील जिला गौतमबुद्ध नगर: भ्रूण हत्या में यूपी के 10 जिलों में गौतमबुद्धनगर चौथे स्थान पर है। यहां प्रति हजार लड़कों पर वर्ष 2011 में 852 लड़कियां है। एक हजार पुरुषों पर स्त्रियां 10 वर्ष पहले यह संख्या 841 थी। वहीं 0-6 वर्ष के आयु वर्ग में भी जिला बदनाम है। यहां एक हजार लड़कों पर मात्र 845 बच्चियां है। साल 2011 की जनगणना में पश्चिमी यूपी का लिंगानुपात 908 से नीचे हैं। गौतम बुद्ध नगर यूपी के 71 जिलों में दूसरी बार लिंगानुपात में सबसे फिसड्डी रहा। लिंगानुपात का ये भारी अंतर कहता है, कहीं कुछ गड़बड़ तो जरूर है। पश्चिमी यूपी आने वाले समय में बेटियों को तरसेगा।<br />
पीसीपीएनडीटी एक्ट का जिले में हाल: जन्म से पूर्व लिंग परीक्षण प्री कंस्पेशन एंड प्रीनेटल डाइगनोस्टिक एक्ट(पीसीपीएनडीटी) के तहत अपराध है, लेकिन पूरे प्रदेश में इस एक्ट का प्रभावी प्रयोग नहीं हो पाया है। यूपी में इसके तहत वर्ष 2002 से 2013 तक 57 कोर्ट केस रजिस्टर हुए। इसमें से केवल आठ का निपटारा हुआ, लेकिन सजा किसी को नहीं हुई। जिले में इस एक्ट के तहत वर्ष 2005 में सेक्टर-12 और 22 के अल्ट्रासाउंड केंद्रों का रजिस्ट्रेशन रद्द किया गया। ये केस अदालत में लंबित है।<br />
जिले के अनाथ आश्रमों लड़कियों हैं अधिक: जिले के अनाथ आश्रम सबूत है कि लड़कियों को लेकर समाज की मानसिकता में अधिक बदलाव नहीं आया है। यहां रहने वाले बच्चों में लड़कियों की संख्या अधिक है। सेक्टर-12 स्थित साईं कृपा आश्रम के 42 बच्चों में केवल 14 ही लड़के हैं। सेक्टर-19 ग्र्रेस होम के 106 बच्चों में 60 फीसद लड़कियां हैं। सीडब्ल्यूसी के बालगृह में भी वर्ष 2011 में दो से चार महीने की तीन नवजात बच्चियां आईं।<br />
पीएनडीटी एक्ट पर भारी सामाजिक भ्रांतियां : सुप्रीम कोर्ट में कन्या भ्रूण हत्या को लेकर पब्लिक इंटरस्ट में लिटिगेशन डालने वाली एडवोकेट कमलेश जैन कहती हैं कि हमारे समाज में बेटियों को लेकर इतने मिथ है कि मां बेटी को पैदा करने से पहले 10 बार सोचती है। पुत्र के पिता को मुखाग्नि देने से ही मोक्ष मिलता है, खानदान का नाम उसी से चलता है इस तरह के कई मिथ है। इस सदी में कंचकों को तरसती पीढ़ी अभी भी नहीं समझती की बेटियां सृष्टि के लिए कितनी जरूरी है। बेटा होने पर परिवार में मां का रूतबा बढऩे की परंपरा अभी भी कायम है। वह बताती है कि पीएनडीटी एक्ट को पीसीपीएनडीटी कर दिया गया, लेकिन अभी भी यह आइपीसी के बराबर प्रभावी नहीं हैं। ट्रायल के दौरान चिकित्सक को सस्पेंड नहीं किया जाता। सजा और जुर्माना भी कोई खास नहीं है अधिकतम तीन साल की सजा और जुर्माने के तौर पर कम से कम एक हजार से अधिकतम 50 हजार से कम ही जुर्माना होता है। अल्ट्रा साउंड केंद्र का पंजीकरण रद्द करने की कार्रवाई होती है,लेकिन उसमें काफी समय लगता है। इसके साथ ही जांच में जाने वाले चिकित्सकों को कोई सुरक्षा नहीं मिलती, इसलिए सेक्स डाइगनोज कराने वालों के हौसले बुलंद है। ़<br />
राजनीतिक परिदृश्य में भी आधी आबादी हाशिए पर: जिले के राजनीतिक परिदृश्य में भी महिलाएं हाशिए पर है। फरवरी 2012 में हुए विधान सभा चुनावों में दादरी, जेवर और नोएडा विधान सभा सीट पर किसी भी राजनीतिक पार्टी ने महिलाओं को टिकट नहीं दिया। 62 नामांकनों में चार महिला प्रत्याशी मैदान में उतरी थी। जिले में 1952 में धूममानिकपुर से चुनी गई विधायक सत्यवती के बाद कोई महिला विधायक नहीं बनी। जिले से संसद के गलियारों तक भी कोई महिला नहीं पहुंच पाई। <br />
औसत साक्षरता में पिछड़ी आधी आबादी: जिले में 10 वर्षों के अंतराल में विकास के काफी बड़े दौर तय किए,लेकिन एक चीज जो पीछे थी और पीछे ही रह गई। ये है 10 वर्षों में पुरूष और महिला के औसतन साक्षरता प्रतिशत। वर्ष 2001 में पुरुषों का साक्षरता फीसद 81.26 था तो महिलाओं का 57.70 और 2012 में पुरूष की साक्षरता दर बढ़कर 90.23 फीसद पहुंची, तो महिलाएं 72.78 पर आकर रूक गई।<br />
लड़कियों की शिक्षा में भी बदहाली: प्रदेश में 10 वीं के बाद स्कूल छोडऩे वाली छात्राओं की बढ़ती संख्या भी इसका प्रमाण है। 2010 में 15 लाख 48 हजार 405 छात्राओं ने 10 वीं में पंजीकरण करवाया, लेकिन मात्र 14 लाख 23 हजार 425 छात्राओं ने परीक्षा दी। इसमें 10 लाख 94 हजार 967 छात्राएं उत्तीर्ण हुई, लेकिन इनमें से 11 वीं कक्षा में नौ लाख 67 हजार 713 छात्राओं ने पंजीकरण कराया। माध्यमिक शिक्षा अभियान में सामने आया कि इनमें से एक लाख 27 हजार 254 छात्राओं ने 10 वीं के बाद पढ़ाई छोड़ दी। 11 वीं में पंजीकरण न करवाने का यह आंकड़ा भयावह है, यहीं हाल जिले में आठवीं के बाद स्कूल छोडऩे वाली लड़कियों का भी है। इससे जिले और प्रदेश में लड़कियों की शिक्षा पर भी सवालिया निशान लगता है। <br />
असुरक्षा लड़कियों की शिक्षा में बाधक: जिलें में यूपी बोर्ड के सेकेंडरी और हायर सेकेंडरी के कुल 124 स्कूल हैं। इनमें दो सरकारी, 45 एडेड और 77 अनअडेड स्कूल है। इन स्कूलों में कम ही छात्राएं पहुंच पाती है। इसके पीछे एक बड़ा कारण है, इन स्कूलों का दूर-दराज होना। इससे गांव देहातों में रहने वाले अभिभावक लड़कियों को स्कूल नहीं भेजते। सरकार द्वारा लड़कियों को शिक्षा तक खींचने की 'कन्या विद्या धन और पढ़े बेटी -बढ़े बेटीÓ जैसी अच्छी योजनाओं पर ही असुरक्षा भारी पड़ती है। <br />
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रचना वर्मा<br />
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Apni zami apana aasamhttp://www.blogger.com/profile/14364264322437285875noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1427707812731325418.post-77500334057623962272013-04-28T08:18:00.001-07:002013-04-28T08:18:31.062-07:00आधे फलक के चांद-सितारे नहीं मेरे हिस्से का पूरा आसमां चाहिए<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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- कुश्ती में मुकाम और लड़कियों के लिए प्रेरणा<br />
- पेट्रोल पंप पर लड़कों की तरह काम करने पर है गर्व<br />
- महिलाओं को समर्पित एक महिला<br />
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रचना वर्मा,नोएडा:<br />
कॉमन इंट्रो ''मुझे मेरे हिस्से का पूरा आसमां चाहिए, आधे फलक के चांद-सितारों से नहीं सजेगी मेरी दुनिया, मुझे दुनिया में आधी नहीं पूरी आबादी का हक चाहिए, बेचारी अबला नहीं और न ही आंखों में पानी, अब मुझे बदलनी है खुद की कहानी, जिन्दगानी के स्याह अंधेरों में रोशनी की लौ जलाने की कोशिश जारी है, भरोसा है मुझे, विश्वास है कायम कि एक दिन वो नई सुबह जरूर आएगी जब नारी अबला नहीं सबला बन दुनिया के फलक पर अलग मुकाम पाएंगी।ÓÓ इस जज्बे के साथ आठ मार्च को अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस पर ये अपने अस्तिव का उत्सव मनाएंगी। दुष्कर्म, दहेज हत्या, कन्या भ्रूण हत्या और अपने ही घरों में दोयम और निरीह करार दी जाने वाली नारी शक्ति इतने अत्याचारों, भेदभाव के बाद भी अपने अस्तित्व का पुरजोर अहसास करा रही है, हर क्षेत्र में अपने सार्थक प्रयासों से वह कह रही है हम किसी से कम नहीं। ये सच भी है, क्योंकि इस वर्ष महिला दिवस की थीम द जेंडर एजेंडा गेनिंग मोमेंटम भी यही गुनगुना रही हैं। <br />
बबीता ने दी सादुल्लापुर की लड़कियों को प्रेरणा: गांव के माहौल में जहां लड़कियों को स्कूल भेजने में भी लोग सौ बार सोचते हैं, उसी गांव की बबीता नागर ने पुरूष वर्चस्व के क्षेत्र कुश्ती दंगल में अपना अलग मुकाम बना डाला। लगभग 12 हजार की आबादी वाले इस गांव में उन्हीं की बदौलत कई लड़कियों के सपने साकार होने को है। ग्र्रामीण बच्चियों को केवल स्कूल ही नहीं बल्कि खेल के मैदानों में भी भविष्य बनाने के लिए भेज रहे हैं। किसान परिवार से ताल्लुक रखने गांव की बबिता नागर के बुलंद इरादों का यह परिणाम है। मौजूदा समय में बबिता दिल्ली में सब इंस्पेक्टर पद पर तैनात हैं। राष्ट्रीय स्तर की रेसलर बबीता बताती हैं कि जब उन्होंने रेसलर बनने का सोचा तो उन्ही के ताऊजी मनीराम पहलवान ने उनके पिता प्रभुसिंह से कहा कि लड़कियों का क्षेत्र नहीं है, लड़की बिगड़ जाएगी, लेकिन पिता और मां शीला देवी के स्पोर्ट से उन्होंने अपने इस शौक को सुनहरे भविष्य में बदल डाला। वह कहती हैं कि पीठ पीछे गांव वाले उन्हें पागल कहा करते थे, लेकिन अब हाल यह है कि गांव के हर घर में उनकी मिसाल दी जाती है, हर बड़े समारोह में उनकी उपस्थिति अनिवार्य मानी जाती है। प्रत्येक ग्र्रामीण अपनी बेटी को बबीता बनते देखना चाहता है। गांव की लड़कियां कुश्ती में पारंगत करने के लिए गांव में लड़कियों के लिए प्रशिक्षण केंद्र खोलने की तैयारी में हैं।<br />
पसंद है लड़कों की तरह पेट्रोल पंप पर काम करना: सेक्टर-41 स्थित लेफ्टिनेंट विजयंत मोटर्स पेट्रोल पंप पर पेट्रोल भरने का काम करने वाली 19 वर्षीय शालू को अपना ये काम काफी पसंद है। उन्हें बड़ा अच्छा लगता है कि वह भी लड़कों की तरह आठ घंटे लगातार भारी नोजल पकड़कर पेट्रोल भरती हैं। वह बताती हैं कि पेट्रोल पंप पर ग्र्राहकों की गाडिय़ों में लड़कों को पेट्रोल भरते देख सोचा करती थी, क्या वह भी इन लड़कों की तरह ये काम कर सकती हैं। घर की माली हालत अच्छी नहीं थी और वह परिवार की आर्थिक मदद करना चाहती थी, 10 वीं पास शालू ने पेट्रोल पंप पर काम करने की ठान ली। वह बताती हैं कि अब उनके पड़ोस के लोग भी अपनी बेटियों को पेट्रोल पंप पर काम करने के लिए मना नहीं करते।<br />
औरतों को सपर्पित एक औरत: समाजसेवी ऊषा ठाकुर का नाम उन शोषित और पीडि़त महिलाओं के लिए किसी मसीहा सरीखा है, जिन्हें उन्होंने नई जिंदगी दी है। निठारी कांड को उजागर करने का श्रेय इसी महिला को जाता है। वर्ष 2009 में उन्होंने 40 अंधी लड़कियों को माफिया से छुड़ाया। दहेज हत्या, घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओं, दुष्कर्म पीडि़ताओं की मदद को इस उम्र में भी वह तत्पर रहती है। वह कहती हैं कि उन्हें उनके काम करने पर कई बार धमकियां भी मिली, लेकिन शोषित और पीडि़तों के दर्द के आगे उनका ये परेशानी कुछ भी नहीं है। वह बताती हैं कि इन दिनों वह जिले से गुम हुए बच्चों पर काम कर रही हैं, गुम होने वाले 462 बच्चों में अधिक संख्या लड़कियों की है। <br />
पक्के इरादों से सपने हुए साकार: दादी कहती हैं, लड़के झाड़ू नहीं लगाते, वह बर्तन भी नहीं मांजते, वह बाहर खेल सकते हैं, मुझे दादी बादाम नहीं देती, लेकिन सोनू भैय्या को रोज बादाम देती हैं,लेकिन क्यों ...25 वर्षीय प्रियंका आज भी जब अपनी डायरी में लिखे इन पुराने लम्हों को याद करती हैं, तो उसकी आंखों में आंसू छलक आते हैं। अपनी मेहनत के बल पर वह दिल्ली की एक मशहूर मैगजीन में काम कर रही है। वह बताती है कि संपन्न परिवार में पैदा होने के बाद भी एक लड़की होने का खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ा। पत्रकारिता का कोर्स करने के लिए अपनों से ही लड़ाई लडऩी पड़ी, लेकिन संतोष इस बात का है कि पक्के इरादों ने उनके सपने साकार कर दिए।<br />
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रचना वर्मा<br />
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Apni zami apana aasamhttp://www.blogger.com/profile/14364264322437285875noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1427707812731325418.post-19765302760468910422013-04-20T09:03:00.003-07:002015-10-26T04:16:28.702-07:00बलात्कार कानून की नहीं मानसिक सोच की लड़ाई<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
ये इंसान ही है जो सृष्टि पर सबसे सर्वोत्तम माना जाता है। इस उत्कृष्टता की पराकाष्ठा अब इस स्तर पर उतर आई है कि मासूम बच्चियां हवस का शिकार हो दम तोडऩे लगी हैं। मासूमों के साथ होने वाले ये दर्दनाक और वीभत्स हादसे कुछ कहते हैं... सजग हो जा ऐ इंसान की मातृशक्ति पर चलने वाली इस सृष्टि पर ये कहर अब और नहीं। मासूमों के देह से होता ये खिलवाड़ उस कुत्सित मानसिकता का भौंडा स्वरूप है जहां पुरुष की मानसिकता स्त्री को केवल यौन संतुष्टि का साधन समझती है। जब-तक नारी जाति का अस्तित्व उसके शरीर को लेकर तोला और मापा जाएगा, तब -तक हमारी बच्चियां हमारे खुद के घरों में भी महफूज नहीं होंगी। किसी भी कानून या प्रदर्शन से ये हादसे तब-तक नहीं रूक सकते, जब-तक स्त्री को केवल और केवल वासना और उपभोग का पर्याय मानने की सोच नहीं बदलेगी। उसे केवल और केवल इंसान की तरह से देखने और समझने का नजरिया नहीं विकसित होगा। केवल शारीरिक भिन्नता से एक स्त्री इस दुनिया में किसी भी दिल और दिमाग रखने वाले इंसान की प्रताडऩा का शिकार कैसे हो सकती है। गर्भ धारण कर जीवन के नए अंकुर में जान फूंक कर उसे मानव का आकार देने वाली यही है, फिर आखिर क्यों उसी की कोख से जन्मा मानव रूपी पुरुष उसे हीन या मांस का एक लोथड़ा भर मान बैठता है। क्यों उसकी सोच उसे शारीरिक संबंध बनाकर पा लेने की सोच पर आकर खत्म हो जाती है। देश में ही नहीं पूरे विश्व में क्योंकर कोई स्त्री दामिनी, निर्भया का दर्द अनगिनत बार सहने को मजबूर हो। प्रत्येक घर में पत्नी के इतर मां, भाभी, बहन और बेटी जैसे पवित्र रिश्ते हैं और क्या ये रिश्ते घर की चारदीवारी पर ही सिमट जाते हैं। मौजूदा दौर में दिल यही सब मानने को मजबूर होता है,क्योंकि जिस भी घर में मां और बेटी है शायद ही उस घर का पुरुष किसी पराई स्त्री को गलत नजर से दिखने की कल्पना भी कर पाएं। कोई भी धर्म या समाज किसी भी पुरुष को ये सोच रखने की इजाजत नहीं देता, कानूनों के बल पर नहीं बल्कि ये लड़ाई सोच और मानसिक स्तर पर लड़कर जीतने की है। सरकार, राजनेताओं और राजनीतिक दलों पर आरोप लगाने से पहले समाज को स्वंय भी अपने अंदर झांककर देखना जरूरी है, हमारी सोच इस दिशा तक गिर गई है कि वासना शांत करने के लिए मासूम बच्चियों की तरफ नजर उठाने से भी इंसानी दिल को धिक्कारना गंवारा नहीं समझती। अब कोई गुडिय़ा रूसवा न हो और सिसकियों में अपना दर्द संभाले, इससे पहले ही संस्कारों के बीज हमको और आपको अपने घरों से बोने होंगे और समाज में इस पौधों को वृक्ष बनाकर छांव के लिए तैयार करना होगा। </div>
Apni zami apana aasamhttp://www.blogger.com/profile/14364264322437285875noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1427707812731325418.post-57155849948216796582013-03-15T04:42:00.002-07:002013-03-15T04:42:19.592-07:00मेरी कूची कहेगी तेरी कहानी प्रकृति रानी<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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- निर्भयापुर की कलाकार चित्रों से दे रही पर्यावरण संरक्षण का संदेश<br />
- सुनामी को भी उकेरा तस्वीरों में<br />
- प्रकृति से प्यार और लोक कला के संरक्षण की मिसाल<br />
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: ''मेरी कूची के रंग कह देंगे, तेरी कहानी है ओ प्रकृति रानी, तेरे ही रूप से सारा जहान है, तस्वीर में रंगों की रवानी तुझसे है, मानव का जीवन भी तुमसे है, वृक्षों को लगाना है, बस मानव को ये समझाना है....ÓÓ मन के इन उद्गारों को 40 वर्षीय मोयना चित्रकार चित्रों में ही बहुत संजीदगी से उतारती हैं। वह ज्यादा पढ़ी-लिखी नहीं है, लेकिन पटचित्र के माध्यम से वह पर्यावरण संरक्षण और विदेशों में भी भारतीय संस्कृति के बीज बो रही हैं। सेक्टर-21 ए स्टेडियम में गांधी शिल्प बाजार में आईं ये लोक कलाकार अपनी कलाकृतियों से समाजिक मुद्दों पर जागरूकता ला रही है। <br />
सुनामी का दर्द ही नहीं सीता की व्यथा भी: उनकी कलाकृतियों में सुनामी का दर्द है तो तस्वीरों से बयां होती रामायण में सीता के रूप में नारी जाति की व्यथा भी उभर आती है। उनकी रामायण के चित्रों वाली किताब न्यूयार्क बेस्ट सेलर्स में हैं। अपनी कला के लिए राज्य स्तरीय पुरस्कार प्राप्त मोयना नारी सशक्तीकरण का भी जीवंत उदाहरण है। अपनी कला के जरिए वह परिवार का पालन-पोषण ही नहीं कर रही, बल्कि अपनी आत्मनिर्भरता से पश्चिम बंगाल के छोटे से गांव निर्भयपुर ग्र्रामीण महिलाओं के लिए मिसाल बनी हुई है।<br />
नारी है प्रकृति का स्वरूप: पांच ïवर्ष की नन्ही उम्र में ही मोयना को प्रकृति का संसार भाने लगा था। मामी को प्राकृतिक रंगों से पटचित्र बनाते देख कर उनका भी पटचित्र कला की तरफ सहज रूझान हो गया। उनका कहना है कि नारी प्रकृति का ही स्वरूप है, उसे समझना हो तो प्रकृति से बेहतर कोई नहीं। उन्होंने बताया कि पटचित्र कला पूरी तरह से प्रकृति से जुड़ी हुई है। प्राकृतिक रंगों से तैयार हुई पट चित्र की कलाकृतियों में प्रकृति की तस्वीर ही बयां होती है।<br />
रंगों का संसार है प्रकृति में: मोयना बताती है कि रंगों को तैयार करने से लेकर हाथ से बनाए हुए कपड़े पर तस्वीर उकेरने तक का काम पटचित्र कला में प्राकृतिक तरीके से किया जाता है। इससे प्रकृति को किसी तरह का नुकसान नहीं पहुंचता। इस कला में प्रयोग होने वाला पीला रंग हल्दी से, ईट से लाल रंग, अपराजिता के फूल से नीला और समुद्र के शंख से सफेद रंग तैयार होता है। यहीं नही हाथ से बनाया कपड़ा जिस पर चित्र बनाए जाते हैं, उसे चिपकाने के लिए बेल का गोंद प्रयोग में लाया जाता है। जब इतना सबकुछ प्रकृति से मिलता है, तो उसकी तस्वीर और उसे बचाना भी हमारा कर्तव्य है। वह कहती हैं कि एक तस्वीर बनाने में कम से कम तीन दिन लगते हैं। उनका कहना है कि तस्वीर 50 रुपये की हो या 30 हजार की उसमें दिया संदेश लोगों तक पहुंचना चाहिए।<br />
सीधे उतर आती है तस्वीर: कागज पर रेखाचित्र उकरेने की जगह मोयना अपने विचारों को सीधे अपने चित्रों में जगह देती है। 'ओ जन गन सोबाई मिलेÓ उनके द्वारा पेड़ों लगाने का संदेश देने वाला गीत है, इस गीत को ही उन्होंने अपने चित्रों में उकेर डाला है। इसमें पेड़ों से जड़ी-बूटी मिलने का संदेश है, तो पेड़ बिना सूने मरूस्थल का भी चित्रण है। वह कहती हैं कि इस तस्वीर के माध्यम से वह पूरे देश को पेड़ लगाने का संदेश देना चाहती है। इसके साथ ही देवी-देवताओं के अलावा उनके चित्रों में लोक कथाएं भी स्थान पाती हैं।<br />
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Apni zami apana aasamhttp://www.blogger.com/profile/14364264322437285875noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1427707812731325418.post-68986839940611686882013-03-03T04:24:00.005-08:002016-04-06T06:35:24.979-07:00कोई सुन ले मेरी सिसकियां...<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<b><br /></b>
<b><br /></b>
<b>- यमुना में घुलता जा रहा है जहर</b><br />
<b>- जीवनदायिनी नदियों में आस्था के नाम पर जहर घोलना भी है देवों का अपमान</b><br />
<b>- कहीं देर न हो जाए और यमुना गुम जाए</b><br />
<b> 'कोई सुन ले मेरी सिसकियां कि आस्था के सैलाब में मेरा दर्द भी कराहता है। अब न बहाओ आस्था के नाम पर मेरे सीने में जहर, कि दफन हो जाउंगी एक दिन, न नजर आउंगी एक दिन और तुम ही कहोगे ये तो नाला है, इसमें कहां आस्था आराम पाएगी।Ó विजयदशमी पर इस वर्ष भी यमुना के आंचल में पूजन सामग्र्री के नाम पर टनों प्लास्टिक के बैग, मेटल, हानिकारक सामग्र्री से बनी सजावट सामग्र्री बहाई गई। जीवन दायिनी यमुना नदी का स्वरूप दिन प्रतिदिन बिगड़ता ही जा रहा है। यमुना के ठहरे हुए पानी के ऊपर जमी गंदगी और पानी में खतरनाक रसायनों के कारण बना झाग चेतावनी देता दिखाई पड़ रहा है कि इसे जल्द नहीं थामा गया तो यमुना को पहचानना तो दूर खोजना भी मुश्किल होगा। </b><br />
<b>हिंदू संस्कृति हैं प्रकृति का आदर: हिंदू संस्कृति का नाम ही प्रकृति का आदर है। जल जंगल जमीन और हमारी नदियां इस पावन संस्कृति की पहचान है। गंगा को जमीन पर लाने के लिए भागीरथ ने तप किया और धरती को गंगा नसीब हुई, उसी की संगी साथी बनी यमुना, कृष्णा, कावेरी इन नदियों पर आस्था के नाम पर प्रदूषण इतना बढ़ चुका हैं कि ये कलप रही है। ऐसा न हो कि ये नदियां धरती के नक्शे से गायब हो जाएं, इस युग में शायद ही कोई भागीरथ बन पाएं और कठिन तप कर पानी की धारा जमीन पर खींच लाएं। </b><br />
<b>वेदों और अनुष्ठानों का जाने असली अर्थ: हमारे जिन पूर्वजों ने श्राद्ध और नवरात्र जैसे धार्मिक अनुष्ठानों का रास्ता बताया, उन्होंने प्रकृति का स्वरूप कभी नहीं बिगाड़ा। उन्होंने नदियों को गंदा नहीं किया, पेड़ों को नहीं काटा। उसके बदले उन प्राकृतिक संसाधानों ने उनका आदर किया। पानी के शुद्धिकरण के लिए उन्हें जलशोधक यंत्र नहीं विकसित करने पड़े। उन्होंने वेदों और अनुष्ठानों का असली मर्म समझा था, उसका व्यावहारिक प्रयोग जाना था न कि केवल देखा-देखी में धर्म को माना था। केवल एक दिन यानी 24 अक्टूबर की यमुना का स्वरूप यदि को धर्म का कोई असली मर्मज्ञ देख ले तो शायद उसकी आंखों में अश्रु बिंदु छलक आएंगे। कालिंदी कुंज में बहती यमुना पर पॉलीथीन बैग और तरह-तरह के कचरे के ढेर हैं। पर्यावरण विज्ञानी की भविष्यïवाणी कहती हैं कि नदियों के जीवन को बचाने के लिए सार्थक प्रयास करने की जरूरत है। वरना आने वाली पीढ़ी नदियों के अस्तिव को केवल किताबों में जान पाएगी।</b><br />
<b>परंपरा में शामिल हुआ आधुनिकता का खेल और नदियों में हुआ प्रदूषण का मेल: विकास के क्रम में मानव गंगा मां और यमुना मां और उनके शरण रहने वाले जलचरों की तकलीफ बढ़ाता जा रहा है। विकास और आधुनिकता के मेल में पूजा और पूजन सामग्र्रियां ऐसी हाईटेक हुईं कि फूल पत्तियों, मिट्टी की पूजा सामग्र्रियों की जगह प्लास्टिक की थैलियों, हानिकारक रंगों, धातु के कणों और अन्य खतरनाक वस्तुओं ने ली। </b><br />
<b>विसर्जन, समर्पण से पहले सोच लो एक बार नदियां कराहती हैं: हर वर्ष गणपति, नवरात्र पर देव प्रतिमाओं के साथ लाखों टन प्लास्टिक और खतरनाक कचरा विसर्जन सोचते हैं कि देव प्रसन्न हो गए, लेकिन जब-तक इन पूजनीय नदियों को दूषित करते रहेंगे, कोई देवता खुश नहीं होगा, वह कुपित होगा, ऐसा हो भी रहा है, बाढ़, सूखा और न जाने क्या-क्या देवों के इस अप्रत्यक्ष कोप को समझना होगा। पॉलीथीन में पैक पूजन सामग्र्री डालने से पहले सोचना भी जरूरी है कि करोड़ों इंसानों की ये छोटी सी आस्था नदियों के अस्तित्व पर संकट ला रही है। जब नदियां ही नहीं होगी तो कहां तपर्ण अर्पण, समर्पण होगा। </b><br />
<b>नदियों के लिए बने जवाबदेह: जामिया मिलिया इस्लामिया सिविल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर गौहर महमूद का बताते हैं कि यमुना में बॉयलिजिकल ऑक्सीजन डिमांड(बीओडी) 10 होनी चाहिए, लेकिन ये इस निर्धारित मानक को कब के तोड़ चुकी है। इस नदी में बीओडी 180 से 190 तक जा पहुंचा है। रीति-रिवाज और परंपराएं भी जरूरी है, लेकिन नदी की स्वच्छता को ध्यान में रखकर। अनुष्ठानों के नाम पर प्लास्टर ऑफ पेरिस, खतरनाक रंग, पॉलीबैग नदीं में न बहाएं। यमुना पॉल्यूशन ऑथिरिटी जैसी सरकारी संस्थाएं लोगों को प्रशिक्षण दें। नदियों के किनारे जगह-जगह ट्रेनिंग ग्र्राउंड बनवाएं। नदी किनारे होने वाले इन अनुष्ठानों पर टैक्स लगाए। ये छोटे-छोटे प्रयास भी बड़ा फर्क ला सकते हैं</b><br />
<b>-------------------</b><br />
<b>रचना वर्मा </b></div>
Apni zami apana aasamhttp://www.blogger.com/profile/14364264322437285875noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1427707812731325418.post-20981347128944439662013-02-13T00:01:00.001-08:002018-04-02T10:49:46.376-07:00 मासूमियत का दौर स्याह अंधेरों में गुम न हो जाए<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<div style="margin-bottom: .0001pt; margin: 0cm;">
<b><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , serif; font-size: 13.5pt;">मासूमियत का दौर स्याह
अंधेरों में गुम न हो जाएं</span></b><b><span style="font-size: 13.5pt;"><br />
- </span></b><b><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , serif; font-size: 13.5pt;">बच्चों को यौन शोषण और हिंसा बचाव के लिए चुप्पी तोड़े</span></b><b><span style="font-size: 13.5pt;"><br />
- </span></b><b><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , serif; font-size: 13.5pt;">दिल्ली एनसीआर के बच्चे हो रहे यौन शोषण का शिकार</span></b><span class="apple-converted-space"><b><span style="font-size: 13.5pt;"> </span></b></span><b><span style="font-size: 13.5pt;"><br />
- </span></b><b><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , serif; font-size: 13.5pt;">लड़कियों और लड़कों में यौन शोषण का बराबर है स्तर</span></b><span class="apple-converted-space"><b><span style="font-size: 13.5pt;"> </span></b></span><b><span style="font-size: 13.5pt;"><br />
<!--[if !supportLineBreakNewLine]--><br />
<!--[endif]--></span></b><span style="font-size: 13.5pt;"><o:p></o:p></span></div>
<div style="margin-bottom: .0001pt; margin: 0cm;">
<span lang="HI" style="font-family: "mangal" , serif; font-size: 13.5pt;">बचपन का मासूम दौर कच्ची मि</span><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , serif; font-size: 13.5pt;">ट्टी सरीखा होता है</span><span style="font-size: 13.5pt;">, </span><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , serif; font-size: 13.5pt;">इस कच्ची मि</span><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , serif; font-size: 13.5pt;">ट्टी में जरा सी ठेस लग
जाएं तो ताउम्र उसकी टीस सालती रहती है। बचपन में यौन हिंसा और शोषण के शिकार हुए
बच्चों के लिए ये दर्द उनकी जिंदगी में नासूर की तरह चुभता है। </span><span style="font-size: 13.5pt;">40 </span><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , serif; font-size: 13.5pt;">वर्ष की मनु की आंखों में
किशोरवय का वह दौर आज भी आंसू और दहशत ला देता है</span><span style="font-size: 13.5pt;">, </span><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , serif; font-size: 13.5pt;">उस घिनौने स्पर्श का अहसास उन्हें चैन नहीं लेने
देता। मनु जैसे जाने कितने ही बच्चे होते हैं जो बचपन में यौन हिंसा का शिकार होते
हैं और ताउम्र उसका दर्द झेलने को मजबूर। दिल्ली -एनसीआर में काम कर रहे एक एनजीओ
और चाइल्ड लाइन के</span><span style="font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , serif; font-size: 13.5pt;">आंकड़े
चौकाने वाले है। इस क्षेत्र में आर्थिक रूप से कमजोर और शोषित वर्ग में बच्चों का
यौन शोषण बड़ी समस्या है। मासूमियत का ये दौर यौन हिंसा और शोषण से जिंदगी का
स्याह दौर न बने इस दिशा में जागरूकता बेहद जरूरी है।</span><span style="font-size: 13.5pt;"><o:p></o:p></span></div>
<div style="margin-bottom: .0001pt; margin: 0cm;">
<b><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , serif; font-size: 13.5pt;">हमने-तुमने भी कहीं न कहीं
झेला है वह अनचाहा स्पर्श:</span></b><span class="apple-converted-space"><b><span style="font-size: 13.5pt;"> </span></b></span><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , serif; font-size: 13.5pt;">शर्म हया
और समाज का डर समाज को जीने लायक बनाता है</span><span style="font-size: 13.5pt;">, </span><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , serif; font-size: 13.5pt;">लेकिन कुछ मामलों में यहीं चीजें इंसान की जिंदगी में कड़वा जहर घोल
डालती है। उच्च वर्गीय सेक्टर- </span><span style="font-size: 13.5pt;">15
</span><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , serif; font-size: 13.5pt;">निवासी </span><span style="font-size: 13.5pt;">40 </span><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , serif; font-size: 13.5pt;">वर्षीय मनु
और </span><span style="font-size: 13.5pt;">42 </span><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , serif; font-size: 13.5pt;">वर्षीय
मीना के लिए अधेड़ उम्र में पहुंच कर भी उनके बचपन में हुए यौन शोषण का दौर भयानक
स्वप्न बन लौट-लौट आता है। मनु बताती हैं कि उन्हें ट्यूशन पढ़ाने आने वाला ट्यूटर
उन्हें गलत तरीके से छूता था। उनके परिवार में उस ट्यूटर का इतना आदर था कि वह कुछ
कह नहीं पाई। आज भी उनके घर में वह उसी आदर से आता जाता है। मीना के चाचा बचपन में
उससे ओरल सेक्स करते रहें और वह मर-मर के जीती रही। उनका कहना है कि दिल्ली
सामूहिक दुष्कर्म कांड के बाद उनमें हिम्मत बंधी और उन्होंने इस बात को अपनी सहेली
से साझा किया। वह आज </span><span style="font-size: 13.5pt;">33 </span><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , serif; font-size: 13.5pt;">वर्ष के
है</span><span style="font-size: 13.5pt;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , serif; font-size: 13.5pt;">लेकिन
पढ़ाई के लिए रिश्तेदार के यहां रहते हुए यौन शोषण का दौर याद कर उनकी रूह कांप
उठती है। ये लोग ही क्यों ऐसे कई लोग है</span><span style="font-size: 13.5pt;">, </span><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , serif; font-size: 13.5pt;">जो बचपन में ये सब झेलते है और जवानी से लेकर बुढ़ापे तक इस सदमे को
सहते हैं।</span><span style="font-size: 13.5pt;"><o:p></o:p></span></div>
<div style="margin-bottom: .0001pt; margin: 0cm;">
<b><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , serif; font-size: 13.5pt;">रूला डालेगी इन बच्चों की
दास्तां :</span></b><span style="font-size: 13.5pt;"><o:p></o:p></span></div>
<div style="margin-bottom: .0001pt; margin: 0cm;">
<span lang="HI" style="font-family: "mangal" , serif; font-size: 13.5pt;">चुप्पी तोड़ो एनजीओ के
दिल्ली -एनसीआर के स्लम इलाकों और गांवों में बाल यौन शोषण और हिंसा के खिलाफ चलाए
गए अभियान के तहत बच्चों के मुंह से कई चौकाने वाले तथ्य सामने आए। नोएडा में
सेक्टर-</span><span style="font-size: 13.5pt;">41 </span><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , serif; font-size: 13.5pt;">और </span><span style="font-size: 13.5pt;">135 </span><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , serif; font-size: 13.5pt;">के इलाकों में आर्थिक रूप
से कमजोर और शोषित वर्ग के बच्चों ने आपबीती सुनकर कोई भी संवेदनशील इंसान आहत हुए
बिना नहीं रहेगा। पहचान गुप्त रखने के लिए बच्चों के नाम बदल दिए गए हैं। </span><span style="font-size: 13.5pt;">11 </span><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , serif; font-size: 13.5pt;">वर्ष के राम की आपबीती </span><span style="font-size: 13.5pt;">' </span><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , serif; font-size: 13.5pt;">वह मुझे बेल्ट से मारता था
और पेंट उतारने को कहता और उसके बाद गंदी हरकत करता</span><span style="font-size: 13.5pt;">, </span><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , serif; font-size: 13.5pt;">मुझे काफी तकलीफ होती थी।</span><span style="font-size: 13.5pt;">Ó<o:p></o:p></span></div>
<div style="margin-bottom: .0001pt; margin: 0cm;">
<span lang="HI" style="font-family: "mangal" , serif; font-size: 13.5pt;">नौ वर्ष की सीता ने बताया
कि वह घर में नहीं रहना चाहती। एनजीओ के सदस्यों के प्यार से पूछने पर उसने बताया
कि उसका शराबी पिता यौन शोषण करता है। </span><span style="font-size: 13.5pt;">11 </span><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , serif; font-size: 13.5pt;">वर्ष की रेशमा ने बताया कि उसके घर में उसके भाई का दोस्त रहने आया
था। रात में छत पर सोते वक्त उसने रेशमा के मुंह में कपड़ा ठूंसा और उसके साथ
दुष्कर्म किया। सुबह वह चला गया</span><span style="font-size: 13.5pt;">,
</span><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , serif; font-size: 13.5pt;">लेकिन डर के मारे रेशमा ने किसी से कुछ नहीं कहा। </span><span style="font-size: 13.5pt;">10 </span><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , serif; font-size: 13.5pt;">वर्ष की गौरी के पड़ोस में
रहने वाले अंकल उसके छत पर अकेले होने पर फांद कर वहां आ गए और उसे गंदी हरकतें
करने लगे। गौरी ने बताया कि इससे वह खुद से ही शर्मिंदा हो गई। मासूमियत के खिलाफ
हैवानियत का खेल की बानगी भर है। चुप्पी तोड़ो के संस्थापक संजय सिंह का बताते हैं
कि बच्चों को सेफ और अनसेफ टच समझाने</span><span style="font-size: 13.5pt;">, </span><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , serif; font-size: 13.5pt;">लैंगिक संवेदनशीलता और बाल यौन शोषण के लिए फिल्म दिखाने के साथ ही
उन्हें चुप न रहो मां से कहने के लिए प्रेरित किया गया। बच्चों को प्रश्नावली के
जरिए चाइल्ड लाइन सहित अन्य कई बाते जानने को दी गईं। उन्होंने बताया कि सर्वे से
पता चला कि </span><span style="font-size: 13.5pt;">92 </span><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , serif; font-size: 13.5pt;">फीसद
स्कूली छात्र सेफ और अनसेफ के बारे में समझते हैं। चाइल्ड हेल्प लाइन नंबर </span><span style="font-size: 13.5pt;">1098 </span><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , serif; font-size: 13.5pt;">की रिकॉल
वैल्यू </span><span style="font-size: 13.5pt;">99 </span><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , serif; font-size: 13.5pt;">फीसद
आंकी गई। उधर साईं कृपा अनाथालय की संचालिका अंजना राजगोपाल बताती है कि उनके
अनाथआश्रम में एक लड़की का ऐसा ही केस है। उसका पिता ही उसके साथ दुराचार करता था।
इससे वह घर से भाग आई थी। उन्होंने उसका केस लड़ा और बाद में उसे उसकी मां के पास
भेजा।</span><span style="font-size: 13.5pt;"><o:p></o:p></span></div>
<div style="margin-bottom: .0001pt; margin: 0cm;">
<b><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , serif; font-size: 13.5pt;">बाल यौन शोषण पर के कुछ
तथ्य :</span></b><span class="apple-converted-space"><b><span style="font-size: 13.5pt;"> </span></b></span><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , serif; font-size: 13.5pt;">यूनिसेफ और दिल्ली के एनजीओ
सेव दि चिल्ड्रन के सहयोग से महिला और बाल विकास मंत्रालय द्वारा </span><span style="font-size: 13.5pt;">2007 </span><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , serif; font-size: 13.5pt;">की स्टडी</span><span style="font-size: 13.5pt;"><o:p></o:p></span></div>
<div style="margin-bottom: .0001pt; margin: 0cm;">
<span style="font-size: 13.5pt;">- </span><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , serif; font-size: 13.5pt;">देश में सामान्यत: बाल यौन शोषण (सीएसए) से पीडि़त प्रतिशत </span><span style="font-size: 13.5pt;">53<o:p></o:p></span></div>
<div style="margin-bottom: .0001pt; margin: 0cm;">
<span style="font-size: 13.5pt;">-</span><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , serif; font-size: 13.5pt;">बच्चों के यौन शोषण में </span><span style="font-size: 13.5pt;">50 </span><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , serif; font-size: 13.5pt;">फीसद विश्वासपात्र और परिचित ही होते हैं।</span><span style="font-size: 13.5pt;"><o:p></o:p></span></div>
<div style="margin-bottom: .0001pt; margin: 0cm;">
<span style="font-size: 13.5pt;">-</span><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , serif; font-size: 13.5pt;">लड़कों और लड़कियों में बाल शोषण का स्तर बराबर है।</span><span style="font-size: 13.5pt;"><o:p></o:p></span></div>
<div style="margin-bottom: .0001pt; margin: 0cm;">
<span style="font-size: 13.5pt;">-</span><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , serif; font-size: 13.5pt;">नेपाल</span><span style="font-size: 13.5pt;">, </span><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , serif; font-size: 13.5pt;">बिहार</span><span style="font-size: 13.5pt;">, </span><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , serif; font-size: 13.5pt;">बंगाल</span><span style="font-size: 13.5pt;">, </span><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , serif; font-size: 13.5pt;">ओडिसा</span><span style="font-size: 13.5pt;">, </span><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , serif; font-size: 13.5pt;">आंध्र प्रदेश और
उत्तर-पूर्वी भारत से दिल्ली -एनसीआर में विस्थापित (माइग्र्रेट) में सीएसए का
फीसद </span><span style="font-size: 13.5pt;">40.1 </span><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , serif; font-size: 13.5pt;">से </span><span style="font-size: 13.5pt;">67.44 </span><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , serif; font-size: 13.5pt;">तक है।
इन राज्यों में बच्चों पर यौन हमलों का प्रतिशत भी अन्य राज्यों से अधिक है।</span><span style="font-size: 13.5pt;"><o:p></o:p></span></div>
<div style="margin-bottom: .0001pt; margin: 0cm;">
<span style="font-size: 13.5pt;">- </span><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , serif; font-size: 13.5pt;">दिल्ली में </span><span style="font-size: 13.5pt;">65.64
</span><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , serif; font-size: 13.5pt;">फीसद लड़के यौन हिंसा और शोषण के शिकार। दिल्ली बाल शोषण में अव्वल
है।</span><span style="font-size: 13.5pt;"><o:p></o:p></span></div>
<div style="margin-bottom: .0001pt; margin: 0cm;">
<span style="font-size: 13.5pt;">- 53.22 </span><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , serif; font-size: 13.5pt;">फीसद बच्चे कई तरह के बाल शोषण झेलते हैं।</span><span style="font-size: 13.5pt;"><o:p></o:p></span></div>
<div style="margin-bottom: .0001pt; margin: 0cm;">
<span style="font-size: 13.5pt;">- 21.90 </span><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , serif; font-size: 13.5pt;">फीसद बच्चे गंभीर </span><span style="font-size: 13.5pt;">50.76 </span><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , serif; font-size: 13.5pt;">अन्य तरह के यौन शोषण का
सामना करते हैं</span><span style="font-size: 13.5pt;"><o:p></o:p></span></div>
<div style="margin-bottom: .0001pt; margin: 0cm;">
<span style="font-size: 13.5pt;">- 5.69 </span><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , serif; font-size: 13.5pt;">फीसद बच्चों पर यौन हमले होते हैं।</span><span style="font-size: 13.5pt;"><o:p></o:p></span></div>
<div style="margin-bottom: .0001pt; margin: 0cm;">
<span style="font-size: 13.5pt;">- </span><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , serif; font-size: 13.5pt;">कामकाजी</span><span style="font-size: 13.5pt;">, </span><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , serif; font-size: 13.5pt;">स्ट्रीट
चिल्ड्रेन और इंस्टीट्यूशनल केयर में यौन शोषण का का सामना करते हैं।</span><span style="font-size: 13.5pt;"><o:p></o:p></span></div>
<div style="margin-bottom: .0001pt; margin: 0cm;">
<b><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , serif; font-size: 13.5pt;">मासूमियत रहे सुरक्षित</span></b><b><span style="font-size: 13.5pt;">, </span></b><b><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , serif; font-size: 13.5pt;">जवाबदेही</span></b><b><span style="font-size: 13.5pt;">, </span></b><b><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , serif; font-size: 13.5pt;">सर्तकता
जरूरी :</span></b><span style="font-size: 13.5pt;"><o:p></o:p></span></div>
<div style="margin-bottom: .0001pt; margin: 0cm;">
<span style="font-size: 13.5pt;">- </span><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , serif; font-size: 13.5pt;">बच्चे को लोगों के गलत हाव-भाव</span><span style="font-size: 13.5pt;">, </span><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , serif; font-size: 13.5pt;">गलत इशारों और व्यवहार के बारे में बताएं</span><span style="font-size: 13.5pt;">, </span><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , serif; font-size: 13.5pt;">ताकि ऐसा होने पर वह तुरंत
बता सकें। घर का और परिचित का फोन नंबर बच्चे को याद कराएं</span><span style="font-size: 13.5pt;">, </span><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , serif; font-size: 13.5pt;">ताकि वह दूसरे को बता कर
तुरंत घर संपर्क कर सकें।</span><span style="font-size: 13.5pt;"><o:p></o:p></span></div>
<div style="margin-bottom: .0001pt; margin: 0cm;">
<span style="font-size: 13.5pt;">- </span><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , serif; font-size: 13.5pt;">कोशिश करें कि बच्चे को संकोची न बनाएं। उसकी शिक्षकों से समय-समय पर
जानकारी लेते रहें।</span><span style="font-size: 13.5pt;"><o:p></o:p></span></div>
<div style="margin-bottom: .0001pt; margin: 0cm;">
<span style="font-size: 13.5pt;">- </span><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , serif; font-size: 13.5pt;">बच्चे के लगातार गुमसुम रहने और असामान्य व्यवहार को नजरअंदाज न
करें। इस तरह की अनहोनी होने पर बच्चों को सहज करने के पूरे प्रयास करें हो सकें
तो काउंसलर के पास ले जाएं।</span><span style="font-size: 13.5pt;"><o:p></o:p></span></div>
<div style="margin-bottom: .0001pt; margin: 0cm;">
<span style="font-size: 13.5pt;">-</span><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , serif; font-size: 13.5pt;">बच्चों को यौन शिक्षा देने की खासी जरूरत है</span><span style="font-size: 13.5pt;">, </span><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , serif; font-size: 13.5pt;">लेकिन उसमें इतना सलीका और
सरलता होनी चाहिए</span><span style="font-size: 13.5pt;">, </span><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , serif; font-size: 13.5pt;">जिससे वह
इसे आसानी से समझ सकें और भ्रमित न हो। बच्चों को खेल में ही ऐसी जानकारी दी जाएं
तो उन्हें इस संवेदनशील विषय को समझने में आसानी होगी।</span><span style="font-size: 13.5pt;"><o:p></o:p></span></div>
<div style="margin-bottom: .0001pt; margin: 0cm;">
<span style="font-size: 13.5pt;">- </span><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , serif; font-size: 13.5pt;">महिला और बाल विकास मंत्रालय ने बाल अपराधों के
खिलाफ ड्राफ्ट और बाल अधिकारों के प्रोटेक्शन के लिए नेशनल और स्टेट कमीशन के गठन
को लेकर अच्छे कदम उठाए</span><span style="font-size: 13.5pt;">, </span><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , serif; font-size: 13.5pt;">लेकिन
इसे प्रभावी बनाने के लिए सरकार के साथ सिविल सोसायटी</span><span style="font-size: 13.5pt;">, </span><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , serif; font-size: 13.5pt;">कम्युनिटी सभी को एक मंच पर
आकर कार्य करना होगा।</span><span style="font-size: 13.5pt;"><o:p></o:p></span></div>
<div style="margin-bottom: .0001pt; margin: 0cm;">
<b><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , serif; font-size: 13.5pt;">बच्चों के खिलाफ यौन हिंसा
सचेत होना जरूरी :</span></b><span style="font-size: 13.5pt;"><o:p></o:p></span></div>
<div style="margin-bottom: .0001pt; margin: 0cm;">
<span lang="HI" style="font-family: "mangal" , serif; font-size: 13.5pt;">बीते वर्ष </span><span style="font-size: 13.5pt;">11 </span><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , serif; font-size: 13.5pt;">साल की खुशबू का एक हैवान
ने यौन शोषण करने के साथ ही उसे अमानवीय शारीरिक यातनाएं दी</span><span style="font-size: 13.5pt;">, </span><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , serif; font-size: 13.5pt;">उसका सदमा से वह अब भी उबर
नहीं पाईं।</span><span style="font-size: 13.5pt;"><o:p></o:p></span></div>
<div style="margin-bottom: .0001pt; margin: 0cm;">
<span style="font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , serif; font-size: 13.5pt;">सितंबर </span><span style="font-size: 13.5pt;">2012 </span><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , serif; font-size: 13.5pt;">में गाजियाबाद के स्कूल की</span><span style="font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , serif; font-size: 13.5pt;">एक छह
वर्षीय बच्ची बस चालक और क्लीनर की यौन हिंसा की शिकार हुई।</span><span style="font-size: 13.5pt;"><o:p></o:p></span></div>
<div style="margin-bottom: .0001pt; margin: 0cm;">
<span lang="HI" style="font-family: "mangal" , serif; font-size: 13.5pt;">वर्ष </span><span style="font-size: 13.5pt;">2012 </span><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , serif; font-size: 13.5pt;">में
दिल्ली में तीन साल के एक मासूम बच्चे के साथ कैब चालक ने दुष्कर्म किया।</span><span style="font-size: 13.5pt;"><o:p></o:p></span></div>
<div style="margin-bottom: .0001pt; margin: 0cm;">
<span style="font-size: 13.5pt;">------------------------<o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<br /></div>
</div>
Apni zami apana aasamhttp://www.blogger.com/profile/14364264322437285875noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1427707812731325418.post-80065670469874590912013-02-11T07:14:00.000-08:002018-04-02T10:53:07.162-07:00मासूमों के साथ ये कैसा खिलवाड़<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<br />
<br />
- बचपन को स्याह बनाने वालों के खिलाफ मिलकर चलाएं मुहिम<br />
- स्कूल के साथ अभिभावक भी रहें सचेत और जागरूक<br />
- बचपन की अल्हड़ हंसी कायम रहे, इसके लिए बच्चे को भी दे जानकारी<br />
रचना वर्मा,नोएडा: ''मेरी मासूमियत से तुम क्यों खेलते हो, मेरे बचपन का अल्हड़पन स्याह अंधेरों में क्योंकर धकेलते हो, बचपन के इस मासूम दौर से क्या तुम नहीं गुजरे, जो अब उस पर ही बुरी नीयत रखते हो, बचपन का ये अल्हड़पन समाज में मौजूद कुछ हैवानों की वजह से ताउम्र का सदमा झेलने को बेबस हो जाता है। स्कूली बसों में बच्चों के साथ यौनाचार के मामले सोचने पर मजबूर करते हैं कि घर से बाहर ये नन्ही सी जानें कितनी महफूज है। शुक्रवार को गाजियाबाद में स्कूल बस के चालक और क्लीनर की करतूत से महज 6 साल की नन्हीं बच्ची का बचपन खौफ बन गया वहीं दिल्ली में तीन साल के एक मासूम बच्चे का बचपन स्कूल कैब के चालक की हैवानियत की भेंट चढ़ गया। सुरक्षित रहे आपके और हमारे बच्चे इस दिशा में आपको और हमको मिलकर सार्थक प्रयास करने होंगे। <br />
सुरक्षा का माहौल खुद ही पैदा करना होगा: घर परिवार के अंदर भी बच्चों के साथ यौनाचार के मामले नए नहीं है, घर से बाहर बच्चों के साथ इस तरह के हादसों से इंकार नहीं किया जा सकता। यूनिसेफ और दिल्ली के एनजीओ सेव दि चिल्ड्रन के सहयोग से महिला और बाल विकास मंत्रालय द्वारा करवाई गई स्टडी इसका प्रमाण है। स्टडी बताती है कि केवल लड़कियां ही नहीं लड़के भी चाइल्ड एब्यूज के बराबर पीडि़त होते हैं। बच्चों के सेक्सुएल एब्यूजर्स में 50 फीसद विश्वासपात्र और परिचित ही होते हैं। अधिकांश बच्चे इस बात की शिकायत नहीं कर पाते हैं। 53.22 फीसद बच्चे कई तरह के सेक्सुएल एब्यूज झेलते हैं। इनमें 21.90 फीसद बच्चे गंभीर 50.76 अन्य तरह के सेक्सुएल एब्यूज के शिकार बनते हैं। 5.69 फीसद बच्चों पर सेक्सुएल हमले होते हैं। आंध्र प्रदेश, असम, बिहार और दिल्ली में बच्चों को सेक्सुएल एब्यूज के मामलों का प्रतिशत सबसे अधिक और इन प्रदेशों में बच्चों पर सेक्सुएल हमले का प्रतिशत भी अन्य राज्यों से अधिक है। इनमें कामकाजी, स्ट्रीट चिल्ड्रेन के और इंस्टीट्यूशनल केयर में सेक्सुएल एब्यूज का सामना करते हैं। मंत्रालय ने बाल अपराधों के खिलाफ ड्राफ्ट और बाल अधिकारों के प्रोटेक्शन के लिए नेशनल और स्टेट कमीशन के गठन को लेकर अच्छे कदम उठाए, लेकिन इसे प्रभावी बनाने के लिए सरकार के साथ सिविल सोसायटी, कम्युनिटी सबको एक मंच पर आकर काम करना होगा। <br />
सुरक्षित तो कोई जगह नहीं, जवाबदेही,सर्तकता जरूरी :बच्चों के साथ यौनाचार के बढ़ते मामलों को देखा जाए तो कोई भी जगह सुरक्षित नहीं है, चाहे फिर सड़क हो या बस, लेकिन जागरूकता से मासूमों के साथ हो रही इस खिलवाड़ को रोका जा सकता है। स्कूल बसों में बच्चों के साथ बस में बैठे अंतिम बच्चे के उतरने तक स्कूल के शिक्षक या जवाबदेह स्टाफ का होना जरूरी है। उधर सड़कों पर दौडऩे वाली स्कूली वैन में बच्चों के साथ ऐसा कोई जवाबदेह शख्स हो ये कम ही होता है। ऐसे में स्कूल की जिम्मेदारी बनती है कि परखे हुए पुरूष या महिला स्टाफ को ही स्कूल बस ड्यूटी में शामिल करें। वैन में बच्चों को स्कूल भेजने वाले अभिभावकों को भी वैन चालकों के आचार, व्यवहार और विचार का गहन अध्ययन और जांच- पड़ताल के बाद ही इसे लगाना चाहिए। <br />
वरिष्ठ छात्रों को शामिल करें मॉनिटरिंग में: समरविल स्कूल की प्रधानाचार्य एन अरूल राज कहती हैं कि उनका पूरा प्रयास रहता है कि स्कूल बस के प्रत्येक छात्र की सुरक्षा सुनिश्चित करें। इसके लिए एक शिक्षक हमेशा ड्यूटी पर रहता है, इसमें कोशिश होती है कि महिला शिक्षिका ही हो। उन्होंने स्कूल के सीनियर छात्रों को भी ऐसा प्रशिक्षण दे रखा है कि वह बस में अलर्ट रहें और अपना और जूनियर का ध्यान रखें। नेहरू इंटरनेशनल स्कूल की प्रधानाचार्य अलीना दयाल कहती हैं कि हमारे यहां स्कूल बस में शिक्षक शुरू से लेकर अंत तक रहती है। उनका मानना है कि स्कूलों को बाहर से बस हायर ही नहीं करनी चाहिए,जरूरत पडऩे पर हायर करनी भी पड़े तो कंडक्टर और ड्राइवर का पूरा वेरिफिकेशन करें। स्कूल के साथ ही अभिभावक भी सुनिश्चित करें कि उनका बच्चा अकेला न उतरे, विशेषकर छोटे बच्चे। ऐसा होने पर तुरंत स्कूल को सूचित करें। इसके साथ ही ड्राइवर और क्लीनर के हाव-भाव पर संदेह होने पर भी स्कूल में बताएं।<br />
सकते और डर के साए में अभिभावक: सेक्टर-19 निवासी हरिता का कहना है कि इस तरह के हादसे सदमे में डालने वाले हैं। स्कूल और अभिभावकों को सचेत रहना चाहिए। स्कूल के साथ ही अभिभावकों को भी बच्चों को हैंडल करने वाले स्टाफ पर पैनी नजर रखनी चाहिए। सावधानी और सर्तकता ही नन्हे बच्चों के बचाव का रास्ता है। उनका कहना है कि असावधानी स्कूलों व अभिभावकों दोनों से हो सकती हैं। कई बार शिक्षक तो कई बार अभिभावकों की लापरवाही से इस तरह की घटनाएं होती हैं।<br />
स्कूलों से अपील ध्यान से करें स्टाफ का चुनाव: एसएसपी प्रïवीण कुमार का कहना है कि इस तरह की घटनाएं न हो, इसके लिए वह जिले के स्कूलों से अपील करते हैं कि स्कूल स्टाफ का चुनाव ध्यान से करें। स्कूली बस में चलने वाले स्टाफ पर लगातार नजर रखें। इसके साथ ही बस के ड्राइवर और कंडक्टर की जानकारी लोकल पुलिस स्टेशन में जरूर दे। <br />
<br />
ताकि हंसता-मुस्कुराता रहे बचपन:<br />
- स्कूलों को छात्रों को लाने ले जाने वाली वैन प्रतिबंधित करनी चाहिए, क्योंकि इनकी जवाबदेही स्कूल नहीं लेता। इसमें छात्रों की सुरक्षा के लिए कोई व्यवस्था नहीं होती।<br />
- अभिभावकों को बच्चे का दाखिला कम दूरी के स्कूल में कराना चाहिए। जहां से वह स्वंय जाकर बच्चों को ला सकें। स्कूल दूर होने पर सुनिश्चित करें बच्चे के लिए स्कूली बस लें हायर वैन या बस नहीं। <br />
- बच्चे को लोगों के गलत हाव-भाव, गलत इशारों और व्यवहार के बारे में बताएं, ताकि ऐसा होने पर वह तुरंत बता सकें। घर का और परिचित का फोन नंबर बच्चे को याद कराएं, ताकि वह दूसरे को बता कर तुरंत घर संपर्क कर सकें। <br />
- समय-समय पर बच्चे की स्कूल बस में जाकर स्टाफ पर नजर रखें, आपत्तिजनक व्यवहार होने पर स्कूल को सूचित करें। <br />
- कोशिश करें कि बच्चे को संकोची न बनाएं। उसकी शिक्षकों से समय-समय पर जानकारी लेते रहें। <br />
- बच्चे के लगातार गुमसुम रहने और असामान्य व्यवहार को नजरअंदाज न करें। इस तरह की अनहोनी होने पर बच्चों को सहज करने के पूरे प्रयास करें हो सकें तो काउंसलर के पास ले जाएं।<br />
--------------------<br />
रचना वर्मा </div>
Apni zami apana aasamhttp://www.blogger.com/profile/14364264322437285875noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1427707812731325418.post-16873815142848835612013-02-09T08:06:00.001-08:002013-02-10T21:05:34.094-08:00हर मजहब को मजहबे इश्क बना देता है ये अहसास<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<br />
- वैलेंटाइन पर यादें फिर मुस्कुराई<br />
- प्रेम अजर, अमर है कोई दीवार कोई परिस्थिति उसे नहीं तोड़ पाई<br />
- एक तरफा नहीं दो तरफा होता है ये अहसास <br />
' नर्म अहसासों की जुबां पढ़ लेती है खामोश आंखों में इश्क का अफसाना, दिलों के मुल्क में बस इश्क का मजहब चलता है.. कुछ इस तरह इश्क करने वाले दुनियावी बातों से दूर दिल की बस्ती बसाने के लिए हर हद से गुजर जाते हैं। हर सदी में हर दौर में इनके फसाने अमर हो जाते हैं,उनका इश्क वैलेंटाइन डे का मोहताज नहीं होता, पर इस विशेष दिन में उनकी यादें जरूर ताजा कर देता है। शहर में भी कुछ ऐसे ही इश्क के इबादतगार है, जिनकी जिंदगी के इस खूबसूरत लम्हे को इस समय याद करना लाजिमी हो जाता है। <br />
इश्क केवल और केवल इश्क समझता है: गुडिय़ा और सोनू की खुशहाल विवाहित जिंदगी को देख भले ही लोग मिसाल देते हो, लेकिन इश्क की इस शमां को जलाए रखने के लिए दोनों ने तूफानों के दौर भी झेले हैं। गुडिय़ा मुस्लिम और सोनू हिंदू परिवार से ताल्लुक रखते हैं। जुलाई 2002 में नोएडा के डिग्र्री कॉलेज की सीढिय़ों पर फॉर्म भर रही गुडिय़ा को सोनू ने फॉर्म भरना सिखाया, लेकिन दोनों की नहीं पता था कि ये फॉर्म ही उनकी जिंदगी का इश्क के स्कूल में दाखिला करा देगा। इसके बाद कोई मुलाकात नहीं और बात नहीं, लेकिन नवंबर में कॉलेज परिसर में दोनों एक बार फिर मिलते हैं, औपचारिक अभिवादन के बाद दोनों फिर अपने रास्ते चल दिए, लेकिन कहते है न कि इश्क का अहसास जब दोनों तरफ से हो तो कायनात भी दो प्रेमियों को मिलाने के सारे बंदोबस्त कर देती हैं। सोनू बताते है कि गुडिय़ा ने उन्हें लैंड लाइन फोन पर शाम 5.30 बजे प्रपोज किया था। दोनों ने अपनी चाहत को अंजाम तक पहुंचाना चाहा, लेकिन वहीं मजहब की दीवार आगे खड़ी थी। सोनू के परिवार ने उनकी शादी का पुरजोर विरोध किया, लेकिन उन्होंने गुडिय़ा से वादा किया था कि एक सप्ताह के अंदर वह उससे विवाह करेंगे। सोनू ने अपना घर छोड़ दिया और गुडिय़ा को लेकर किराए के एक मकान में आ गए। वर्ष 2008 में दोनों ने शादी कर ली। उनके घर में खुशी यानी उनकी बेटी आने वाली थी। अंतत: सोनू के परिवार ने भी उन्हें अपना लिया। सोनू और गुडिय़ा का मानना है कि चाहत एक तरफा होती है, लेकिन प्यार दो तरफा होता है और जब ये होता है तो कोई दीवार इसके आगे नहीं टिकती। <br />
जिंदगी की तूफानों में रहती है इश्क की लौ रोशन: सेक्टर-40 निवासी इस दंपत्ति को भले ही लोग सहानुभूति की निगाहों से देखते हो, लेकिन कोई इनसे पूछे कि कैसे कठिन परिस्थितियों में भी अपने इश्क लौ जगाए हुए हैं। आज से पांच वर्ष पहले टैडी डे पर निशा को राजीव का दिया पिंक कलर का टैडी उनके कमरे में प्यार के अहसास को जगाए रखता है। दोनों के विवाह को 12 वर्ष हो गए हैं, लेकिन शादी को तीन वर्षों बाद ही निशा लकवाग्र्रस्त हो गईं। प्रेम के बंधन से विवाह में बंधे राजीव को कई लोगों ने दूसरे विवाह की सलाह दे डाली, लेकिन राजीव की सांसों में निशा का प्यार ही धड़कता है। वह इस खतरनाक बीमारी में भी निशा को छोटेच्बच्चे की तरह संभालते हैं। राजीव कहते है कि प्रेम परिस्थितियों के साथ नहीं बदलता, वह तो होता है और अजर अमर रहता है। <br />
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Apni zami apana aasamhttp://www.blogger.com/profile/14364264322437285875noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1427707812731325418.post-698801080599153822012-12-18T09:01:00.004-08:002013-02-10T21:07:38.172-08:00दिल्ली ने बढ़ाई वुमन पॉवर लाइन से शहर की दूरियां<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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- जल्द ही जिले के ईव टीजिंग के इलाकों को मिलेगा रेड फ्लैग<br />
- टेली कम्युनिकेशन गैप से बढ़ी वुमन पॉवर लाइन की दूरियां <br />
- पॉवर लाइन के पास एक महीने में पहुंची जिले से मात्र 10 शिकायतें <br />
महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराधों में अव्वल जिले को प्रदेश सरकार की वुमन पॉवर लाइन 1090 का पूरा लाभ नहीं मिल पा रहा है। इसमें जिले की देश की राजधानी से करीबी आड़े आ रहीं हैं। लखनऊ में बने वुमन पॉवर लाइन के हैड ऑफिस में गौतमबुद्ध नगर की दिल्ली एनसीआर टेली कम्युनिकेशन सर्किल में होने से पहुंच कम है। इस हेल्प लाइन को शुरू हुए एक महीना हो चुका है,लेकिन जिले की महिलाओं की पॉवर लाइन पर मात्र चंद शिकायतें ही पहुंच पाई हैं। इस पॉवर लाइन की जद में आने से महिलाओं को मदद मिलेगी, इसमें शक नहीं,लेकिन कब उनकी कॉल सीधे इस पॉवर लाइन पर पहुंच पाएगी, इस संबंध में अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगी। हालांकि यूपी के आला पुलिस अधिकारियों ने इस मसले का निवारण एक महीने के अंदर होने की बात की है। <br />
क्या है वुमन पॉवर लाइन: प्रदेश सरकार की तरफ से राज्य में महिलाओं के खिलाफ होने वाले छेडख़ानी, अश्लील कॉल और उत्पीडऩ जैसे अपराधों के लिए 15 नवंबर को वुमन पॉवर लाइन 1090 शुरू की गई। इसमें पूरे प्रदेश से शिकायत के लिए कॉल जा सकती है। उसी तरह इससे प्रदेश में कहीं भी कॉल बैक की जा सकती है। शिकायतकर्ता महिला की पहचान हर हाल में गुप्त रहती है। यहां तैनात विशेष ट्रेनिंग पाई 45 महिला पुलिस कर्मी और 35 पुलिस कर्मी शिकायत पर कार्रवाई करती हैं। <br />
पॉवर लाइन का काम भी है पॉवरफुल: तीन फेज में काम कर रही इस पॉवर लाइन में पहले में अश्लील कॉल, दूसरे में साइबर क्राइम और तीसरे में शारीरिक शोषण संबंधी शिकायतें को हैंडल किया जाता है और सभी का डिजीटल रिकार्ड रहता है। इस वजह से सिम कार्ड बदलने और किसी दूसरी जगह जाने के बाद भी आरोपी बच नहीं सकता। अपराध में लगातार लिप्त रहने पर उसे पासपोर्ट, लाइसेंस और चरित्र प्रमाण पत्र मिलना भी दूभर हो जाता है। पूर्व जस्टिस की अगुवाई में बनाई लीगल सेल के साथ ही एक सेल ऐसी बनाई गई हैं जो शिकायतों का विश्लेषण करेगी। इसमें साइकाइट्रिक, साइकोलॉजिस्ट और लीगल एक्सपर्ट शामिल हैं। इसकी खासियत है आरोपी के परिवार से संपर्क भी करना। इससे होने वाली सामाजिक बदनामी की वजह से कई आरोपी लाइन पर आ जाते हैं।<br />
पॉवर लाइन का खुलासा: इसमें आई शिकायतों का विश्लेषण से खुलासा हुआ है कि उत्पीडऩ का शिकार होने वालों में सबसे अधिक फीसद छात्राओं है, इसके बाद घरेलू और कामकाजी महिला वुमन है। छात्राओं की 3500, घरेलू महिलाओं की 3000 और कामकाजी महिलाओं की शिकायतें की संख्या दो हजार हैं।<br />
जिले से दूर है पॉवर लाइन की डगर: 15 नवंबर से अब तक इस पॉवर लाइन पर पूरे प्रदेश के 75 जिले से 40 हजार शिकायतें पहुंची हैं। इसमें सात हजार डिजीटल शिकायतों में से 16 शिकायतों को रजिस्टर किया गया। इस की सक्रियता की वजह 740 अश्लील कॉल्स को खत्म किया गया। इस आंकड़े में जिले 10 शिकायतें ही पहुंच पाईं। बिजनौर जैसे इलाकों से इस पॉवर लाइन पर फोन आए।बनारस, कानपुर, अकबरपुर सबसे अधिक शिकायतें पहुंची। वहीं देश की राजधानी के नजदीक होने से हाईटेक नोएडा इसमें पीछे रह गया। हालांकि गाजियाबाद इस मामले में नोएडा से थोड़ा से आगे है। दरअसल जिले के एनसीआर रीजन टेली कम्युनिकेशन सर्किल में होने से शिकायतें सीधे 1090 पर नहीं पहुंच पाती। पहले कॉल दिल्ली टेली कम्युनिकेशन सर्किल में जाती है और उसके बाद लखनऊ टेली सर्किल कम्युनिकेशन सर्किल में जाती है। <br />
शहर के छेडख़ानी वाले इलाकों को रेड फ्लैग: इस सेल के इंचार्ज डीआईजी नवनीत सिकेरा का कहना है कि वह आने वाले महीने में गौतमबुद्धनगर और गाजियाबाद से पॉवर लाइन की सीधे पहुंच के लिए दिल्ली टेली कम्युनिकेशन सर्किल समस्या का समाधान कर लेंगे। कॉल के आंकड़े से पॉवर लाइन को इन जिलों में गूगल की मदद से ईव टिजिंग एरिया की पहचान में मदद मिलेगी। इसके बाद इन इलाकों को रेड फ्लैग मिलेगा और यहां पुलिस सादे कपड़ों में तैनात की जाएगी। उन्होंने बताया कि इस 1090 का रिस्पांस काफी अच्छा है। दूसरे राज्यों की महिलाओं के कॉल तक आ रहे हैं। <br />
जरूरत है पॉवर लाइन की: जिले में महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराधों पर नजर डाली जाएं तो यहां वुमन पॉवर लाइन की सख्त जरूरत है।<br />
बीते तीन वर्षों में महिला अपराध: <br />
वर्ष 08 09 10 <br />
हत्या 16 13 26 <br />
शील भंग 17 35 34 <br />
अपहरण 35 52 63 <br />
छेडख़ानी 49 44 31<br />
उत्पीडऩ 56 87 116 <br />
दहेज हत्या 20 20 19 <br />
दुष्कर्म 18 19 30 <br />
चेन छिनेती - 42 48 4 <br />
वर्ष 2010 -12 में अपराधों पर एक नजर:<br />
- 15 दिसंबर 2012 को ग्र्रेटर नोएडा में बीटा-टू जे ब्लॉक में पत्नी को अंदर बंद कर प्रोफेसर ने लगाई आग<br />
-15 दिसंबर गाजियाबाद में बीटेक की छात्रा के साथ हॉस्टल के बाहर छेड़छाड़ और पिटाई<br />
- 9 दिसंबर गाजियाबाद में को एलएलबी की छात्रा के फेसबुक प्रोफाइल पर अश्लील एसएमएस <br />
- फरवरी 2012 मॉडल टॉउन पुलिस स्टेशन के पास फैशन डिजाइनर युवती को रेप के बाद सड़क पर फेंका<br />
- दिसंबर 2011 सेक्टर-18 में नौकरी के लिए आई महिला से दुष्कर्म<br />
26 मार्च 10 कोटेक महेन्द्रा कर्मी नेहा ने टीएल विकास जैन के खिलाफ छेड़छाड़ और धमकी का आरोप<br />
23 अप्रैल नेहरू इंटरनेशनल की छात्रा से सहपाठी ने की छेडख़ानी<br />
21 जून यूक्रेन की महिला डॉक्टर अलीना ने पति पवन और परिवार के खिलाफ दर्ज कराया उत्पीडऩ का मामला<br />
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Apni zami apana aasamhttp://www.blogger.com/profile/14364264322437285875noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1427707812731325418.post-22323215591309143372012-12-18T08:55:00.001-08:002013-02-10T21:08:39.843-08:00बोल की लब सिले हैं अब तक...<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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''बोल की लब सिले हैं अब तक, अबला, नारी नहीं बेचारी और न ही है उपभोग की वस्तु, दुनिया को अब समझा दे कि तेरे दम से वो है, नहीं कहीं किसी से कम तू है, फिर क्यों तेरी मर्यादा का मर्दन यहां हरदम है, हुंकार अब भरनी होगी, रणचंडी अब बनना होगा, दुष्कर्म के असुरों का अब मर्दन करना ही होगा।ÓÓ ये चंद पंक्तियां उस पूरी नारी जाति के लिए है जो कहीं न कहीं, कभी न कभी केवल और केवल अपनी शारीरिक भिन्नता के कारण समाज में अत्याचार और दुष्कर्म का शिकार हो रही हैं। उन्हें सहानुभूति नहीं साहस की मशाल चाहिए। दिल्ली के गैंग रेप की घटना से आगाह हो जाना चाहिए है कि इस वक्त नारी को केवल और केवल उपभोग की तरह लिया जा रहा है। वह हांड-मांस का केवल पुतला भर नहीं है, सृष्टि का अस्तिव उसी से है। इन वजहों को पर नजर डालनी होगी जो समाज में नारी के खिलाफ इन अपराधों को बढ़ावा दे रहे हैं। शहर के प्रबुद्ध वर्ग इन अपराधों की पुनरावृत्ति में कानूनी के पेचीदीगियों को सबसे बड़ी वजह मानता है। वहीं अपराधियों में खौफ न होना भी एक कारण है। <br />
देश ही नहीं जिला भी नहीं कम महिला अपराधों में: जिले में इस वर्ष दुष्कर्म के 19 और छेडख़ानी के 48 मामले आए हैं। वर्ष 2011 में 21 दुष्कर्म तो 73 छेडख़ानी के मामले हैं। उधर यूएन डेवलेपमेंट प्रोग्र्राम की लैगिंक असमानता की सूची के 169 देशों में भारत 119 वें पर है। नेशनल क्राइम रिकॉर्डस ब्यूरो के मुताबिक आईपीसी और एसएलएल के मुताबिक <br />
दुष्कर्म और छेडख़ानी से बाधित होती है नारी स्वतंत्रता: दिल्ली रेप की घटना से केवल दिल्ली नहीं, बल्कि पूरे देश की महिलाओं और युवतियों के जेहन में एक सवाल कौंध रहा है, आखिर हर बार ऐसा क्यों। नोएडा के एक पब्लिक स्कूल की युवा शिक्षिका प्रतिमा का कहना हैं कि इस तरह की घटनाएं इस 21 वीं सदीं में भी महिलाओं की स्वतंत्रता में बाधक बनती है। उनका कहना है कि निम्न, मध्यम वर्गीय यहीं नहीं उच्च वर्गीय परिवारों में भी इस तरह की घटना से गलत संदेश गया है। उन्हें लड़कियों के देर शाम घर से बाहर न निकलने देने के लिए ये एक और तर्क मिल गया है। उधर छात्रा नीलम कहती हैं कि इस तरह के मामले में रेप पीडि़त को सहानुभूति नहीं साहस देना चाहिए, ताकि वह अपराधियों के खिलाफ डटकर खड़ी हो सकें। उनका कहना कि महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों के लिए कानून तो है, लेकिन इनका खौफ कहीं नहीं। वहीं महिलाओं की हत्या हो या उनके खिलाफ कोई और अपराध उसकी रिपोर्ट में संवेदनशीलता की कमी होती है, इस वजह से कई बार समाज में पीडि़त के अपराधी होने जैसा संदेश जाता है। <br />
पुलिस और ज्यूडिशरी भी है इस मामले में कमजोर: सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ अधिवक्ता कमलेश जैन का कहना है कि स्त्रियों को सशक्त करने की दिशा में देश का कानूनी पक्ष बहुत ही सशक्त दिखाई पड़ता है, लेकिन व्यवहार में ऐसा नहीं है। केवल कानून बनाने से महिला सशक्तिकरण नहीं हो जाएगा। इसके लिए समाज और परिवार को पहल करनी होगी। इसके साथ ही पुलिस और ज्यूडिशरी को भी सक्रिय होना होगा। वर्ष 2010 में सीआरपीसी में अच्छा संशोधन हुआ, लेकिन इसे ढंग से लागू नहीं किया जा रहा है। इसमें रेप पीडि़त, अपराधी और गवाहों की वीडियो और आडियोग्र्राफी के साथ ही अपराधी के तुरंत मेडिकल टेस्ट का प्रावधान है। इसके साथ ही मामलों की सुनवाई फास्ट ट्रैक में होने का सुझाव है,लेकिन वास्तविकता में ऐसा नहीं होता। इससे अपराधियों में खौफ खत्म हो जाता है, इस तरह के मामलों के पुनरावृत्ति का यही वजह है। <br />
लॉ एंड ऑर्डर है कमजोर: नोएडा सेक्टर -26 निवासी सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश वीएन खरे का कहना है कि लॉ एंड ऑर्डर कमजोर है। इस वजह से महिलाओं के खिलाफ रेप के मामले बढ़ रहे। महिलाओं के लिए सम्मान नहीं रह गया है। इसमें न्याय व्यवस्था को तेजी से काम करना होगा। फास्ट ट्रैक कोर्ट और एक सप्ताह के अंदर ट्रायल को तव्वजो देनी चाहिए। वर्षों तक चलते मुकदमों में पीडि़त परेशान हो जाता, सबूत और गवाह बदल जाते हैं। <br />
ट्रायल है कमजोर: जिले के एसएसपी प्रवीण कुमार का मानना है कि आईपीसी की धारा 376 सशक्त है। इसमें रेप के अपराधी को उम्र कैद की सजा का प्रावधान है, लेकिन ऐसा कुछ ही मामलों में होता है। रेप के मामलों का फास्ट ट्रैक कोर्ट में सुनवाई रेयर ऑफïदि रेयरेस्ट के केस में होती है। वही केस के लंबा खींचने से अपराधियों का भय भी जाता रहता है। रेप के मामले में चार्ज शीट दाखिल होते ही फास्ट ट्रायल होना चाहिए। <br />
मानव मूल्यों में आती गिरावट: समाजशास्त्री श्याम सिंह शशि का कहना है कि खाओ, पीओ और मस्त रहो की प्रवृति बढ़ रही है। मानव मूल्यों और संस्कारों का मोल कम हो रहा है, कानून की सख्ती नहीं है, इससे महिलाओं के खिलाफ अपराध बढ़ रहे हैं। उधर समाजसेवी ऊषा ठाकुर कहती हैं कि कामकाजी महिलाओं का कांस्पेट समाज अभी स्वीकार नहीं पाया है, इसलिए फ्रस्टेशन में महिला संबंधी अपराध बढ़ रहे हैं। <br />
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Apni zami apana aasamhttp://www.blogger.com/profile/14364264322437285875noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1427707812731325418.post-62984891813106940282010-09-07T23:03:00.000-07:002016-06-08T04:39:25.851-07:00यादों का अंतहीन कर्फ्यू..<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<b>ज़िन्दगानी के शहर में यादों का अंतहीन कर्फ्यू...</b><br />
<b>सांसों की राहों पर पहरे...धड़कनों की गलियों में अंधेरे...</b><br />
<b>दिल के घर से अरमानों का बाहर निकलना...उस पर यादों की संगीनों का चलना...</b><br />
<b>अरमानों की मौत का मंजर...उसके जनाजे में उठे कशमशों के खंजर...</b><br />
<b>दिल-ए-घर की चारदीवारी में अहसासों का जलना...जज्बातों का मरना...</b><br />
<b>दिल के दालानों में हंसी का मातम... खुशी का सिसकना...</b><br />
<b>आंखों के दरवाजों पर... कसक की चिलमन...ख्वाबों का बिखरना...</b><br />
<b>कानों की सांकल पर अजनबी आहट का खटकना...</b><br />
<b>ज़िन्दगानी के शहर में यादों का अंतहीन कर्फ्यू...</b></div>
Apni zami apana aasamhttp://www.blogger.com/profile/14364264322437285875noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-1427707812731325418.post-23148172581076835742010-08-31T06:14:00.000-07:002010-09-01T00:17:41.428-07:00यहां शऱीर तय करता है व्यक्तित्व के मापदंड अनुष्का और निरूपमा दोनों ही महिलाएं है और दोनों ही अनब्याही मां। इनके अलावा एक और साम्यता दोनों के जीवन के महत्वपूर्ण खुलासे को लेकर भी है जो अभी दो चार दिन पहले ही हुए है। अनुष्का शंकर ने ऐलान किया कि वह मां बनने वाली है और एम्स ने निरुपमा के पोस्टर्माटम की रिपोर्ट प्रकाशित की है, जिसमें कहा गया है कि निरूपमा की मौत का कारण आत्महत्या है। दोनों में सिर्फ अंतर इतना है कि जहां अनुष्का खुलेआम खुशी से अपने प्रसव काल की घोषणा कर सकती है,वहीं दुनिया की वाहवाही और शुभकामनाएं भी उनके साथ होती है। अनुष्का का परिवार उनकी इस खुशी में उनके साथ कदम से कदम मिलाता है।<br />
उधर दूसरी तरफ निरूपमा की पोस्टमार्टम रिपोर्ट उनके परिवार के दुख,अपमान और क्षोभ की वजह बन जाती है। ये कैसी विडम्बना है कि एक ही समाज और संस्कृति से संबंध रखने वाली स्त्रियों के लिए रास्ते और समाज के कायदे अलग-अलग क्यों...क्यों एक आम अनब्याही मां भी अनुष्का की तरह ही खुश होने का अधिकार पा सकती। क्या ये समाज का दोगलापन नहीं है कि एक अनब्याही मां अपनी इस स्थिति को खुशी से बयां कर सकती है और दूसरी उसी स्थिति के लिए आत्महत्या का रास्ता। निरुपमा के कोख में भी जीवन का एक अंकुर फूट रहा था, लेकिन अपने गर्भ में पल रहे इस नन्हें जीव ने उसे अवसाद और निराशा से भर दिया। अपने कानों में मां सुनने का वह पवित्र और ईश्वरीय अहसास जिसका हर स्त्री अपने जीवन में बड़ी बेसब्री से इंतजार करती है, लेकिन क्यों यह अहसास भी निरुपमा के अंदर जीवन का मोह जगाने में असफल रहा। निरूपमा कोई अनपढ़ और असर्मथ लड़की नहीं थी, बल्कि वह तो अपने को सुधारों और नई सोच का पुरोधा समझने वाले मीडिया जगत का ही एक हिस्सा थी। उसमें इतनी काबिलियत थी कि वह ताउम्र अपने पैरों पर खड़ी रह सके, लेकिन ऐसा क्या था कि इतनी समर्थ होते हुए ज़िन्दगी जीने की हिम्मत नहीं जुटा पाई। निरुपमा जैसी जाने कितनी लड़कियां इस मनोस्थिति और इस दौर से गुजरती होंगी और निश्चय ही उनके सामने आत्महत्या ही सबसे सरल विकल्प होता होगा, क्योंकि हमारे समाज ने इससे अच्छा विकल्प उनके लिए छोड़ा ही नहीं। यह वही समाज है जहां औरत को मां बनने का अधिकार तो दिया गया है, लेकिन केवल एक स्त्री और इंसान के रूप में नहीं किसी की पत्नी के रूप में। ऐसा समाज और देश जहां कि न्यायपालिका( लगभग एक महीने पहले सुप्रीम कोर्ट ने एक केस के संदर्भ में )निर्णय देती है कि किसी भी स्त्री को मां बनने का पूरा अधिकार है और उससे उसका ये अधिकार कोई नहीं छीन सकता। जो भी स्त्री को उसके इस अधिकार से वंचित करता है या उसका हनन करता है, उसका अपराध अक्षम्य श्रेणी में आता है।<br />
लेकिन हमारा समाज ऐसा अक्षम्य अपराध बार-बार करता है, लेकिन दंड तो दूर हम में से कोई प्रतिरोध करना तो दूर चूं तक नहीं करता। परिणामस्वरूप आए दिन हजारों निरूपमायें आत्महत्या करने को मजबूर होती है, क्योंकि चंहुमुखी विकास और सभ्यता का दावे करने वाला हमारे समाज की सोच में कोई परिवर्तन नहीं आया है और ना ही आने की उम्मीद है। आज भी औरत उसके लिए इंसान नहीं बच्चा पैदा करने की एक मशीन है... सिर्फ और सिर्फ मां नहीं।<br />
इसके लिए जिम्मेदार है हमारा समाज और संस्कृति, जिसके कुछ अनसुलझे और अनसमझे रीति-रिवाज और कायदे-कानून हम सदियों से ढोते चले आ रहे है। यहां महाभारत की कुंती को बिनब्याही मां बनने पर कर्ण को त्यागना पड़ता है, लेकिन यहीं कुंती विवाह के बाद पांडु के संसर्ग के बिना ही किसी भी देवता के समागम से संतान पैदा करने का अधिकार पा लेती है। द्रौपदी पांच पतियों के साथ रह सकती है, लेकिन सीता को अग्नि परीक्षा से गुजरना पड़ता है। राजे-महाराजे अपने हमाम की कई औरतों से संतानोत्पति कर सकते है, लेकिन कोई साम्राज्ञी किसी गैर से प्रेम संबंध बना ले तो उसे मौत के घाट उतार दिया जाता था। इतिहास गवाह है कि हमारा समाज सदियों से इसी लीक पर चल रहा है जहां कभी औरत को इंसान के तौर पर देखने की पंरपरा ही नहीं रही। औरत का बिन ब्याही मां बनना घोर पाप है और वह व्याभिचार की सबसे बड़ी मूरत। किसी भी शारीरिक स्थिति या मापदंडों से ये कैसे साबित होता है कि उसका व्यक्तित्व कलुषित है। अगर शारीरिक स्थिति ही किसी के व्यक्तित्व के चरित्र का आकलन करने का सटीक मापदंड है तो पुरुषों के परिपेक्ष्य में इसे क्यों नहीं लागू किया जाता। समाज में मां बनने का ये खूबसूरत अहसास और मोड़ किसी स्त्री के लिए तभी जायज और पवित्र है। जब कोई उस पर विवाह का ठप्पा लगा दे, अन्यथा अनब्याही मां समाज के लिए एक तुच्छ और पापी इंसान है, जो इस अपराध से तभी मुक्ति पा सकती है जब वह अपनी इहलीला समाप्त कर लें, क्योंकि वह केवल एक मां बन कर समाज में सिर उठा के नहीं जी सकती। अनब्याही औरत ही क्यों भूले से कभी कोई मां अपने बच्चे के लिए जी भी लेती है तो हमारी व्यवस्था उसकी संतान का जीना हराम कर देती है। अनब्याही मां की संतान से आदर और सम्मान के सभी अधिकार स्वतः छीन जाते है, क्योंकि वह केवल अपनी मां के नाम पर समाज में सम्मान नहीं पा सकता। हमारे समाज में अनब्याही मां आत्महत्या के अलावा किसी और रास्ते की तरफ नहीं जा सकती, लेकिन आज तक ऐसा एक भी मामला प्रकाश में नहीं आया, जब कोई अनब्याहा बाप शर्मिंदा हो या उसने मौत को गले लगाया हो। यदि समाज और संस्कृति की नजर से विवाह से पहले स्त्री-पुरूष के लिए शारीरिक संबंध वर्जित है तो इसका दंड केवल औरत क्यों भुगते। क्षणिक आवेश में, किसी के विश्वास पर या धोखे से समाज की इच्छा के विरूद्ध स्त्री-पुरूष में शारीरिक संबंध बनते है तो क्या स्त्री ही इसके लिए दोषी है, संबंध का सहोदर पुरूष क्यों साफ बेदाग बच निकलता है। इस बात का जवाब हमारे- तुम्हारे समाज के पास ना कभी था और ना ही होगा। हकीकत तो ये है कि बिनब्याही मां और एक स्त्री को प्रताड़ित करने का अधिकार गंवाना समाज को गवारा नहीं है,क्योंकि औरत को केवल मां के रूप में स्वीकार करने की उसकी हिम्मत ही नहीं है। यहां तो हालत ये है कि किसी अनब्याही मां बलात्कार की शिकार युवती से विवाह या उसे अपनाने की बात तो दूर हम अपने भाई-बंधुओं के विवाह के लिए कुंवारी कन्या की तलाश में हाथ-पैर मारते फिरते हैं। यहां भी इंसानियत पर शरीर की पवित्रता की मानसिकता हावी है। देखा जाए तो शरीर के अंदर ही इतनी गंदगी भरी है, जिसका हम रोजाना उत्सर्जन ना करे तो शऱीर सड़ जाए। पवित्रता तो आत्मा की, विचारों की, मन की महत्वपूर्ण है, लेकिन यहां तो सब-कुछ शरीर आधारित है। यहां समाज महिलाओं और युवतियों के लिए समाज सभी मापदंड शरीर से शुरू करता है और वहीं से खत्म। गोया कि स्त्री का शरीर कोई मशीन हो, जो एक बार बिगड़ गई या जिसका प्रयोग बलपूर्वक किया गया हो या उसकी स्वेच्छा से, तो उसे कोई दूसरा लेने करने से भी परहेज करेगा। ऐसा नहीं होता तो बलात्कार की शिकार कोई भी स्त्री शर्म महसूस नहीं करती, आत्महत्या की नहीं सोचती। जिस दिन समाज में इतनी शक्ति या हिम्मत आ जाएगी जब बलात्कार पीड़ित युवती बिना किसी हिचक और शर्म के उसका नाम समाज को बता सकेगी और बलात्कारी को इस कृत्य के लिए उस युवती से बिना किसी रिश्ते में बंधे ताउम्र के लिए उसका हर खर्चा और जिम्मेदारी उठानी होगी। जब कोई अनब्याही मां उसे गर्भवती बनाने में सहायक पुरूष या साथी का नाम बिना झिझक खुलेआम बता पाएंगी और उस पुरूष के नाम के बिना ही अपने बच्चे के पालने-पोसने की आजादी हासिल कर पाएगी। तब शायद कोई निरूपमा आत्महत्या नहीं करेगी और ना ही कोई स्त्री बलात्कार का शिकार बनेगी। <br />
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</div>Apni zami apana aasamhttp://www.blogger.com/profile/14364264322437285875noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1427707812731325418.post-64076376791900080012010-08-25T22:49:00.001-07:002010-08-26T22:31:05.315-07:00यादों के झरोखों मेंयादों के झरोखों में क्यूं पुरवाई चली आई, दिल की उदासी हाय क्यों चेहरे पर झलक आई।<br />
तकदीर बनने से पहले ही हाथों की रेखाएं सिमट आई, अंदाज से पहले ही क्यों फितरत चली आई।<br />
मुलाकातों से पहले ही क्यूं तन्हाई चली आई, मुव्वल से पहले ही हाय रूसवाई चली आई।<br />
बयां होने से पहले ही लवों पे सिलवटें उमड़ आई,वफा के पहले ही क्यूं बेवफाई चली आई।<br />
बहार से पहले ही क्यूं फिज़ा चली आई, खुशी के पहले ही हाय अश्क छलक आए।<br />
साए के साथ देने से पहले ही क्यूं अंधेरा चला आया, मिलन से पहले ही हाय जुदाई चली आई।<br />
यादों के झरोखों में क्यूं पुरवाई चली आई।Apni zami apana aasamhttp://www.blogger.com/profile/14364264322437285875noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1427707812731325418.post-23529789204078835012010-08-25T22:22:00.000-07:002010-08-25T22:25:28.159-07:00दिन कुछ ऐसे गुजरेरिश्तों के भंवर में ज़िन्दगी यूं उलझ गई की कि मौत से पहले ही ज़िन्दगी ठहर गई।<br />
अहसास से पहले ही रूह कुछ यूं मर गई कि सांस से पहले ही धड़कनें बिखर गई।<br />
बेबसी के आलम में ख्वाब यूं सोए की कि सुबह से पहले ही रात गुजर गई।<br />
सफर से पहले ही कदम कुछ यूं बहके कि की मंजिल से पहले ही राह मुड़ गई।<br />
जर्द यूं हुआ जर्रा-जर्रा वज़ूद का कि सर्द कर गया ज़िन्दगानी-ए- लम्हा।<br />
दिन कुछ ऐसे गुजरे कि की उम्र से पहले ही हाय ज़िन्दगी निकल गई।Apni zami apana aasamhttp://www.blogger.com/profile/14364264322437285875noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1427707812731325418.post-50547146518870729302010-08-25T00:52:00.000-07:002010-08-25T01:37:12.601-07:00समाज की हर शाख पर वीएन राय<blockquote><b>"महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा (मगांअंहिंवि) के कुलपति विभूति नारायण राय ने महिला हिंदी उपन्यासकारों पर दिये गये अपने घृणित बयान के लिए खेद व्यक्त करते हुए माफी मांग ली है। भारतीय प्रशासनिक सेवा के भूतपूर्व अधिकारी रहे राय ने नया ज्ञानोदय पत्रिका (भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा प्रकाशित) को दिये अपने साक्षात्कार में कहा था कि पिछले कुछ वर्षों से नारीवादी विमर्श मुख्यतः देह तक केंद्रित हो गया है और कई लेखिकाओं में यह प्रमाणित करने की होड़ लगी है उनमें से कौन सबसे बड़ी छिनाल (व्यभिचारी महिला, वेश्या) हैं। एक मशहूर हिंदी लेखिका की आत्मकथा का हवाला देते हुए राय ने अतुलनीय ढंग से कहा कि अति-प्रचारित लेखन को असल में कितनी बिस्तरों पर कितनी बार का दर्जा दे देना चाहिए।"</b></blockquote><div class="MsoNormal"><span style="font-family: Mangal;">क्या</span> <span style="font-family: Mangal;">माफी</span> <span style="font-family: Mangal;">मांग</span> <span style="font-family: Mangal;">लेने</span> <span style="font-family: Mangal;">भर</span> <span style="font-family: Mangal;">से</span> <span style="font-family: Mangal;">और</span> <span style="font-family: Mangal;">वीएन</span> <span style="font-family: Mangal;">राय</span> <span style="font-family: Mangal;">को</span> <span style="font-family: Mangal;">दंडित</span> <span style="font-family: Mangal;">कर</span> <span style="font-family: Mangal;">देने</span> <span style="font-family: Mangal;">से</span> <span style="font-family: Mangal;">समाज</span> <span style="font-family: Mangal;">की</span> <span style="font-family: Mangal;">मानसिकता</span> <span style="font-family: Mangal;">में</span> <span style="font-family: Mangal;">बदलाव</span> <span style="font-family: Mangal;">संभव</span> <span style="font-family: Mangal;">है</span>...<span style="font-family: Mangal;">नहीं</span> <span style="font-family: Mangal;">बिल्कुल</span> <span style="font-family: Mangal;">नहीं</span> <span style="font-family: Mangal;">क्योंकि</span> <span style="font-family: Mangal;">यहां</span> <span style="font-family: Mangal;">तो</span> <span style="font-family: Mangal;">हर</span> <span style="font-family: Mangal;">गली</span>-<span style="font-family: Mangal;">नुक्कड़</span> <span style="font-family: Mangal;">पर</span> <span style="font-family: Mangal;">वीएन</span> <span style="font-family: Mangal;">राय</span> <span style="font-family: Mangal;">जैसे</span> <span style="font-family: Mangal;">शख्स</span> <span style="font-family: Mangal;">मौजूद</span> <span style="font-family: Mangal;">है</span>, <span style="font-family: Mangal;">और</span> <span style="font-family: Mangal;">रहेंगे</span> <span style="font-family: Mangal;">भी</span> <span style="font-family: Mangal;">ऐसे</span> <span style="font-family: Mangal;">में</span> <span style="font-family: Mangal;">केवल</span> <span style="font-family: Mangal;">एक</span> <span style="font-family: Mangal;">को</span> <span style="font-family: Mangal;">सजा</span> <span style="font-family: Mangal;">दिलाकर</span> <span style="font-family: Mangal;">हम</span> <span style="font-family: Mangal;">अपनी</span> <span style="font-family: Mangal;">जिम्मेदारी</span> <span style="font-family: Mangal;">से</span> <span style="font-family: Mangal;">कन्नी</span> <span style="font-family: Mangal;">नहीं</span> <span style="font-family: Mangal;">काट</span> <span style="font-family: Mangal;">सकते।</span> <span style="font-family: Mangal;">यहां</span> <span style="font-family: Mangal;">तो</span> <span style="font-family: Mangal;">हाल</span> <span style="font-family: Mangal;">हर</span> <span style="font-family: Mangal;">शाख</span> <span style="font-family: Mangal;">पे</span> <span style="font-family: Mangal;">उल्लू</span> <span style="font-family: Mangal;">बैठा</span> <span style="font-family: Mangal;">है</span> <span style="font-family: Mangal;">अंजाम</span> -<span style="font-family: Mangal;">ए</span>- <span style="font-family: Mangal;">गुलिस्ता</span> <span style="font-family: Mangal;">क्या</span> <span style="font-family: Mangal;">होगा</span> <span style="font-family: Mangal;">जैसा</span> <span style="font-family: Mangal;">है।</span> <span style="font-family: Mangal;">वीएन</span> <span style="font-family: Mangal;">राय</span> <span style="font-family: Mangal;">तो</span> <span style="font-family: Mangal;">केवल</span> <span style="font-family: Mangal;">एक</span> <span style="font-family: Mangal;">अदना</span> <span style="font-family: Mangal;">सा</span> <span style="font-family: Mangal;">उदाहरण</span> <span style="font-family: Mangal;">ही</span> <span style="font-family: Mangal;">है</span> <span style="font-family: Mangal;">जिसने</span> <span style="font-family: Mangal;">प्रकृति</span> <span style="font-family: Mangal;">की</span> <span style="font-family: Mangal;">इस</span> <span style="font-family: Mangal;">अनुपम</span> <span style="font-family: Mangal;">रचना</span> <span style="font-family: Mangal;">पर</span> ( <span style="font-family: Mangal;">माफ</span> <span style="font-family: Mangal;">किजिएगा</span> <span style="font-family: Mangal;">अनुपम</span> <span style="font-family: Mangal;">यहां</span> <span style="font-family: Mangal;">महिलाओं</span> <span style="font-family: Mangal;">को</span> <span style="font-family: Mangal;">महिमामंडित</span> <span style="font-family: Mangal;">करने</span> <span style="font-family: Mangal;">के</span> <span style="font-family: Mangal;">लिए</span> <span style="font-family: Mangal;">नहीं</span> <span style="font-family: Mangal;">लिखा</span> <span style="font-family: Mangal;">है</span>, <span style="font-family: Mangal;">यह</span> <span style="font-family: Mangal;">शब्द</span> <span style="font-family: Mangal;">एक</span> <span style="font-family: Mangal;">नए</span> <span style="font-family: Mangal;">जीवन</span> <span style="font-family: Mangal;">को</span> <span style="font-family: Mangal;">जन्म</span> <span style="font-family: Mangal;">देने</span> <span style="font-family: Mangal;">वाली</span> <span style="font-family: Mangal;">जननि</span> <span style="font-family: Mangal;">के</span> <span style="font-family: Mangal;">अर्थ</span> <span style="font-family: Mangal;">में</span> <span style="font-family: Mangal;">प्रयुक्त</span> <span style="font-family: Mangal;">किया</span> <span style="font-family: Mangal;">गया</span> <span style="font-family: Mangal;">है।</span>) <span style="font-family: Mangal;">अमर्यादित</span> <span style="font-family: Mangal;">टिप्पणी</span> <span style="font-family: Mangal;">की</span> <span style="font-family: Mangal;">है</span> ...<span style="font-family: Mangal;">समाज</span> <span style="font-family: Mangal;">में</span> <span style="font-family: Mangal;">ऐसे</span> <span style="font-family: Mangal;">कितने</span> <span style="font-family: Mangal;">ही</span> <span style="font-family: Mangal;">वीएन</span> <span style="font-family: Mangal;">राय</span> <span style="font-family: Mangal;">मौजूद</span> <span style="font-family: Mangal;">है</span> <span style="font-family: Mangal;">जो</span> <span style="font-family: Mangal;">रोजाना</span> <span style="font-family: Mangal;">अपने</span> <span style="font-family: Mangal;">मुखारबिंदु</span> <span style="font-family: Mangal;">से</span> <span style="font-family: Mangal;">इससे</span> <span style="font-family: Mangal;">भी</span> <span style="font-family: Mangal;">बड़े</span> <span style="font-family: Mangal;">अपशब्द</span> <span style="font-family: Mangal;">और</span> <span style="font-family: Mangal;">गालियां</span> <span style="font-family: Mangal;">देकर</span> <span style="font-family: Mangal;">इस</span> <span style="font-family: Mangal;">अनुपम</span> <span style="font-family: Mangal;">रचना</span> <span style="font-family: Mangal;">का</span> <span style="font-family: Mangal;">अपमान</span> <span style="font-family: Mangal;">करते</span> <span style="font-family: Mangal;">है</span>, <span style="font-family: Mangal;">उसे</span> <span style="font-family: Mangal;">नीचा</span> <span style="font-family: Mangal;">दिखाने</span> <span style="font-family: Mangal;">में</span> <span style="font-family: Mangal;">कोई</span> <span style="font-family: Mangal;">कसर</span> <span style="font-family: Mangal;">नहीं</span> <span style="font-family: Mangal;">छोड़ते</span>, <span style="font-family: Mangal;">ऐसे</span> <span style="font-family: Mangal;">में</span> <span style="font-family: Mangal;">सवाल</span> <span style="font-family: Mangal;">ये</span> <span style="font-family: Mangal;">उठता</span> <span style="font-family: Mangal;">है</span> <span style="font-family: Mangal;">कि</span> <span style="font-family: Mangal;">सदियों</span> <span style="font-family: Mangal;">से</span> <span style="font-family: Mangal;">जो</span> <span style="font-family: Mangal;">नारी</span>, <span style="font-family: Mangal;">महिला</span> <span style="font-family: Mangal;">या</span> <span style="font-family: Mangal;">अबला</span> <span style="font-family: Mangal;">समाज</span> <span style="font-family: Mangal;">में</span> <span style="font-family: Mangal;">इन</span> <span style="font-family: Mangal;">उपनामों</span> <span style="font-family: Mangal;">से</span> <span style="font-family: Mangal;">जी</span> <span style="font-family: Mangal;">रही</span> <span style="font-family: Mangal;">है</span>, <span style="font-family: Mangal;">क्या</span> <span style="font-family: Mangal;">वास्तव</span> <span style="font-family: Mangal;">में</span> <span style="font-family: Mangal;">इस</span> <span style="font-family: Mangal;">विडम्बना</span> <span style="font-family: Mangal;">से</span> <span style="font-family: Mangal;">अलग</span> <span style="font-family: Mangal;">हो</span> <span style="font-family: Mangal;">पाएगी</span> <span style="font-family: Mangal;">कि</span> <span style="font-family: Mangal;">वह</span> <span style="font-family: Mangal;">एक</span> <span style="font-family: Mangal;">स्त्री</span> <span style="font-family: Mangal;">है</span> <span style="font-family: Mangal;">और</span> <span style="font-family: Mangal;">उसे</span> <span style="font-family: Mangal;">अपमानित</span> <span style="font-family: Mangal;">करने</span> <span style="font-family: Mangal;">का</span> <span style="font-family: Mangal;">सभी</span> <span style="font-family: Mangal;">को</span> <span style="font-family: Mangal;">जन्मसिद्ध</span> <span style="font-family: Mangal;">अधिकार</span> <span style="font-family: Mangal;">है</span>, <span style="font-family: Mangal;">विशेषतः</span> <span style="font-family: Mangal;">अपनी</span> <span style="font-family: Mangal;">शारीरिक</span> <span style="font-family: Mangal;">संरचना</span> <span style="font-family: Mangal;">को</span> <span style="font-family: Mangal;">लेकर।</span> </div><div class="MsoNormal"><span class="Apple-style-span" style="font-family: Mangal;">कोई भी मुद्दा क्यों ना हो किसी भी तरह से नारी को प्रताड़ित करना हो तो उसके शरीर या उसके शारीरिक संबंधों को लेकर कोई अपशब्द कह दो, फिर क्या है... ये उसके अर्न्तमन को बेधने का सबसे कारगर हथियार और उपाय दोनों ही है। गली-मौहल्लों के नुक्कड़ों से लेकर संभ्रात स्तर तक नारी को प्रताड़ित </span><span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"><span class="Apple-style-span" style="font-family: Mangal;"> </span></span><span class="Apple-style-span" style="font-family: Mangal;">और शोषित करना हो तो उसकी दैहिक संरचना पर ही कई उपसर्ग और प्रत्यय लगाकर निशाना साधा जाता है। यदि किसी पुरूष को अपने साथी पुरूष को घोर अपमानित करना हो तो भी बात मां..बहन पर आकर टिक जाती है। अनपढ़ से लेकर शिक्षित इंसान तक नारी के प्रति इन अपशब्दों के इस्तेमाल कर अपने को बड़ा योद्धा समझता है। अंतर केवल इतना है कि कई लोग खुलेआम इन शब्दों का उच्चारण करते है तो कई लोग दबे मुंह। मैं इन सभी लोगों से पूछना चाहती हूं कि क्या उन्होंने कभी मां- बहन की गालियां दे रहे किसी शख्स को दुत्कारा या इसका प्रतिरोध</span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-family: Mangal;">किया, नहीं शायद किसी ने नहीं, जब-तक बात उनके गिरेंबा तक ना पहुंच गई हो। अधिकांश लोग महिलाओं के प्रति प्रयोग किए गए इन शब्दों को सुनकर या तो खींसे निपोरते है या मन ही मन अपनी यौन कुंठाओं को शांत करते है। </span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-family: Mangal;">किसी भी महिला को छिनाल, वेश्या, चरित्रहीन और बदचलन कहने का हक किसने तुम्हें दे दिया। यदि कोई स्त्री वेश्या है तो उसे इस हद तक आने को मजबूर किसने किया इसी पुरूष मानसिकता ने। समाज और पुरूष वर्ग क्या एक बार भी नहीं सोचता कि उन्होंने भी किसी महिला की कोख से ही जन्म लिया है, जिसे वो गर्व से मां कहते है। तुम अपनी मां की इज्जत करते हो तो किसी भी महिला को अपमानित कर सकते हो क्या...लेकिन मां की इज्जत करने का भी ये ढो़ग ही है...क्योंकि मां की इज्जत करना मतलब संपूर्ण नारी जाति का सम्मान करना है...लेकिन समाज की मानसिकता कहो या पुरूष का अंह आजतक ऐसा हो नहीं पाया है, इसलिए नारी को शारीरिक संरचना का प्रकृति प्रदत्त यह उपहार अभिशाप ही लगता है।</span><span class="Apple-style-span" style="font-family: Mangal;"> </span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-family: Mangal;">कोई महिला सफलता के उच्चतम शिखर पर पहुंच जाए या फिर किसी क्षेत्र में कुछ अच्छा कर जाए तो उसके सहयोगी यह कहने से भी बाज नहीं आते कि फलां के साथ बिस्तर पर गई होगी या फिर छिनाल, बदचलन कई तरह की उपमाओं उसे नवाज डालते है। चाहे वह महिला हो या पुरूष उसका किसी के साथ भी शारीरिक, मानसिक या आत्मीय किसी भी तरह का संबंध उसका नितांत निजी फैसला है, उस संबंध पर किसी को भी अभ्रद टिप्पणी करने का क्या अधिकार है, लेकिन ऐसा हो नहीं पाता पुरूषों की बनिस्पत महिलाएं ही अधिकांश इस दंश को झेलती है। समाज और पुरूष मानसिकता को कौन समझाए यदि बिस्तर पर जाने या शारीरिक संबंध बनाने से ही महिलाओं को सबकुछ मिल जाता तो फिर दुनिया का कोई भी पुरूष किसी महिला से तलाक नहीं लेता, विवाहोत्तर संबंधों का कोई सवाल ही नहीं पैदा होता, किसी महिला को वेश्यावृति नहीं करनी पड़ती, कोई भी महिला बलात्कार का शिकार नहीं होती। शायद इस बात का जवाब हमारे समाज के पास कभी होगा ही नहीं, क्योंकि नारी को समाज अभी तक इंसानों की श्रेणी में शामिल ही नहीं कर पाया है, लेकिन क्या करें प्रकृति ने महिला को भी एक इंसान ही बनाया है और हर इंसान की तरह उसकी भी जैविक और मानसिक आवश्यकताएं है, तो क्यों हर बार उसे ही प्रताड़ित किया जाता है। कार्यस्थलों से लेकर घरों तक वह ही सबकी नजरों में क्यों दोषी हैं। जब पुरूष खुलेआम अपनी बिस्तर की बातों को या फिर दिअर्थी संवादों द्वारा अपनी नैसर्गिक आवश्यकताओं का बखान करने का साहस करता है तो क्यों एक लेखिका ऐसा नहीं कर सकती। क्या नैसर्गिक जरूरतों को केवल पुरूष ही बखान कर सकता है एक नारी नहीं, क्या पुरूष ही इंसान है नारी नहीं, क्या नारी को केवल उपभोग की वस्तु की तरह ही देखा जाएगा। क्यों ये समाज आज तक एक नारी को उसकी देह से ऊपर उठकर केवल इंसान के रूप में नहीं देख पाया है। वीएन राय को सजा देने से ना स्थिति सुधरनी है और ना सुधरेगी। नारी को समाज में वास्तविक सम्मान और बराबर का हक तभी मिल पाएगा, जब समाज का सोच रूपी वीएन राय फांसी </span><span class="Apple-style-span" style="font-family: Mangal;">पर चढ़ जाएगा। फिर ना कोई नारी छिनाल रहेगी और ना बदचलन। मारना ही है तो अपने मन के अंदर सदियों से घर जमाए वीएन राय को मार डालो, फिर जाकर नारी को केवल इंसान के रूप में देखने की सोच सार्थक हो पाएगी।</span></div>Apni zami apana aasamhttp://www.blogger.com/profile/14364264322437285875noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1427707812731325418.post-5679443340478579302010-08-21T06:47:00.001-07:002010-08-21T06:59:57.601-07:00सेवा का मेवा चाहिएहम जनता के सेवक है हमे सेवा का मेवा चाहिए, हमारा मेवा नहीं मिला तो हम संसद क्या देश के विकास को भी स्थगित कर सकते है। सबसे बड़े लोकतंत्र में जनता की सेवा के नाम पर देश की कार्यपालिका और व्यवस्थापिका में पैठ बनाने वाले सांसद अगर ऐसी सोच रखेंगे तो एक आम आदमी से कैसे उम्मीद की जा सकती है कि वो देश के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वाह ईमानदारी से करेंगा।<br />
पूरे देश में जहां बाढ़, सूखा और प्राकृतिक आपदाओं से जनता त्राहि-त्राहि कर रही है, वहीं ये जनता के सेवक अपनी सेलरी को बढ़ाने के लिए संसद जैसे महत्वपूर्ण स्थान को अपने स्वार्थ का अखाड़ा बनाने में माहिर है। संसद के समय की बरबादी करके ये सांसद जनता के पैसों को ही उड़ा रहे और दम भर रहे है कि हम जनप्रतिनिधि है और हमें उचित मानदेय मिलना ही चाहिए। ये सो कॉलड जनप्रतिनिधि अपनी सेलरी को बढ़ाने के लिए तो ऐसे एकजुट हो जाते है कि कैबिनेट से अपनी बात तक मनवा डालते है,लेकिन देश में शिक्षा, स्वास्थ्य, गरीबी जैसे ऐसे कई मुद्दे है जो इनसे ऐसी ही एकजुटता चाहते है, लेकिन वहां ये अलग -अलग राजनीतिक पार्टियों के एंजेट बन जाते है। जब देश में मंहगाई की स्थिति किसी से भी छुपी नहीं है, जब कॉमनवेल्थ गेम्स देश की नाक का सवाल बने हुए हो, जब लेह में प्राकृतिक आपादा से कई लोग तबाही का शिकार हुए हो, जब देश का एक पूरा राज्य सूखाग्रस्त घोषित कर दिया गया हो, जब देश के पूर्वी राज्यों के किसान राष्ट्रपति को पत्र लिखकर इच्छा मृत्यु की इजाजत मांग रहे हो,तब जनता के ये सेवक तीन गुना सेलरी ( 16,000 हजार रुपए से सीधे 50,000)बढ़ाए जाने पर भी इस बात पर आमादा हो कि उनकी सेलरी सरकारी सचिव के बराबर की होनी चाहिए, तो इसे देश और आम जनता का दुर्भाग्य ही कह सकते है। ये सांसद 16 हजार रुपए की सेलरी को कम आंकते है, लेकिन क्या इस सेलरी के साथ मिलने वाले अन्य लाभों,जिनमें मुफ्त फोन सेवा, मुफ्त बिजली,पानी और वाहनों आदि की सुविधा शामिल है, वो क्यों भूल जाते है। ईमानदारी से कहा जाए तो देश की जो स्थिति है उसमें इन सांसदों की 16 हजार रुपए की ये सेलरी भी देश के वित्त मंत्रालय पर आर्थिक बोझ ही है। लाल बत्तियों में घूम-घूमकर केंद्र से राज्य और राज्य से केंद्र के चक्कर के अलावा शायद ही ये कभी काम का मूड बनाते हो। बार-बार ये सांसद विदेशों के सांसदों की तुलना में अपनी सेलरी कम होने का रोना रोते रहते है, लेकिन सिंगापुर, जापान, इटली और यहां तक की यूएस की तुलना में सारी सुविधाएं और सेलरी मिलाकर ये सांसद पालने देश की जनता को काफी मंहगे पड़ते है। फिऱ इन सांसदों और इनके दलों द्वारा किसी भी मुद्दे को लेकर बवाल मचाने में देश का जो नुकसान होता है सो अलग हाल ही में मंहगाई के मुद्दे पर एकजुटता दिखाकर ये जनप्रतिनिधि एक ही दिन में देश को 20 करोड़ रुपए की चपत लगा चुके है। जब देश का आम इंसान भूखे मर रहा हो और गोदामों में अनाज सड़ रहा हो तब भी क्या इनकी विवेकशीलता ऐसे मुद्दे को संसद के विचार पटल पर जोर-शोर से लाने की कोशिश नहीं कर सकती। नहीं लेकिन ऐसा नहीं है यहां तो हाल ये है कि कृषि मंत्री शरद पवार कह दे कि सुप्रीम कोर्ट ने अनाज को बांटने के लिए कोई निर्णय नहीं दिया है और हमारे लिए अनाज बांटना संभव नहीं है, तब क्यों नहीं ये जनता के हितैषी कैबिनेट से गरीबों में अनाज बंटवाने की बात पूरी ताकत के साथ मनवाने को एकजुट होते। नहीं ये ऐसा कतई नहीं करेंगे, क्योंकि हमारे देश में अनाज सड़ तो सकता है, लेकिन भूखे की भूख नहीं मिटा सकता। ये भूखे लोग कोई आंदोलन करके बैठ जाए तो अपने नंबर बनाने के लिए ये सांसद और नेता ही आंदोलन के अगुवा बनने की होड़ लगाने लगते है, लेकिन भूख के भोजन मिले ना मिले इन्हें क्या फर्क पड़ता है। कहा जाता है चैरिटी घर से शुरू होती है, लेकिन हमारे देश का तो हाल ये है पास में नहीं दाने अम्मा चली भुनाने। हमारे देश के विदेश मंत्री कृष्णा जी पाकिस्तान की लाख मना करने पर वहां 24 करोड़ रुपए की सहायता भेजने के कृतसंकल्प नजर आते है, लेकिन अपने ही देश में भूखे मरते लोग उन्हें नहीं दिखाई पड़ते है। मानवीय दृष्टि से पाकिस्तान की मदद करना हमारा कर्तव्य बनता है, लेकिन ऐसी स्थिति में नहीं जब अपनी ही डूबती नैया को सहारे की जरूरत हो। इतना ही मानवीय बनना है तो देश के मानवों के लिए तो संवेदनशील और मानवीय बनकर दिखाओं तो कुछ बात है। इस मुद्दे पर संसद में हो हल्ला नहीं मचाचा इन जनप्रतिनिधियों ने क्योंकि इन्हें तो इनकी रोटी मिल ही रही है। परेशान और हैरान तो केवल आम इंसान है सेवक तो सेवा की मौज ले रहे हैं। ये सबसे बड़ा जनतंत्र है जहां जनता के सेवक ही उसको नोचने-खसोटने में कहीं से कसर नहीं छोड़ रहे, फिर चाहे वो उनकी सेलरी ही क्यों ना हो।Apni zami apana aasamhttp://www.blogger.com/profile/14364264322437285875noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1427707812731325418.post-57244588444585211252010-08-21T01:07:00.000-07:002010-08-21T01:17:34.329-07:00मुक्तक<div style="text-align: justify;"><b><i>कभी जीवन में ऐसे भी पल आते है जब आप किसी अहसास को कागज पर उतारते चले जाते है, ये पता नहीं होता की वो साहित्यिक दृष्टि से कृति बनने लायक है भी की नहीं, लेकिन बस यूं ही उतर आते है कागज पर। ऐसे ही कुछ</i></b></div><div style="text-align: justify;"><b><i>पलों का हिसाब यहां रखने की कोशिश है ये मुक्तक</i></b></div><div style="text-align: justify;"><b><i><br />
</i></b></div><div style="text-align: justify;"><b><i><br />
</i></b></div><div class="UIIntentionalStory_Header" style="color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 11px;"><h3 class="UIIntentionalStory_Message" data-ft="{"type":"msg"}" style="color: #333333; margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px; overflow-x: hidden; overflow-y: hidden; padding-bottom: 0px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; padding-top: 0px; text-align: justify;"><span class="UIStory_Message"><span class="Apple-style-span" style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"><i><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;">हमनें सोचा इस अजनबी दुनिया में हम ही अजनबी है, लेकिन ज़िन्दगी की इन बियाबान राहों में तो हमें अजनबियों का शहर मिला... तुम हमारे लिए अजनबी थे, हम तुम्हारे लिए अजनबी थी... फिर भी ना जाने क्या सोच के दिल को सुकू मिला।</span></i></span></span></h3><div><div style="text-align: justify;"><span class="UIStory_Message"><b><i><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;">------------------------------------------------------------------</span></i></b></span></div></div><div><div style="text-align: justify;"><span class="UIStory_Message"><b><i><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;"><br />
</span></i></b><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;"> </span></span></div></div><div><b><i><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;"><span class="UIStory_Message"></span></span></i></b><br />
<span class="UIStory_Message"></span><br />
<span class="UIStory_Message"></span><br />
<span class="UIStory_Message"><div class="UIIntentionalStory_Header"><h3 class="UIIntentionalStory_Message" data-ft="{"type":"msg"}" style="color: #333333; margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px; overflow-x: hidden; overflow-y: hidden; padding-bottom: 0px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; padding-top: 0px; text-align: justify;"><span class="UIStory_Message"><i><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;">राहें ज़िन्दगी की बहुत लंबी है... राह पे चलने वाले मुसाफिर...रूक ना जाना... थक ना जाना...राह पर चलना, संभलना तो सभी जानते है...गिर के संभल गया जो वो मुसाफिर ही पाएगा राहें ज़िन्दगी की मंजिल</span></i></span></h3><div><div style="text-align: justify;"><span class="UIStory_Message"><b><i><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;"><br />
</span></i></b><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;"> </span></span></div></div><div><div style="text-align: justify;"><span class="UIStory_Message"><b><i><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;">----------------------------------------------------------------------------------------</span></i></b></span></div></div><div><div style="text-align: justify;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;"><b><i><br />
</i></b></span></div></div><div><div style="text-align: justify;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;"><b><i><br />
</i></b></span></div></div><div><div style="text-align: justify;"><span class="UIStory_Message"><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;"> </span></span></div></div><div><b><i><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;"><span class="UIStory_Message"></span></span></i></b><br />
<span class="UIStory_Message"></span><br />
<span class="UIStory_Message"></span><br />
<span class="UIStory_Message"><div><div style="text-align: justify;"><b><i><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;">सब तो समझे है हमको पराया</span></i></b></div></div><div><div style="text-align: justify;"><b><i><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;">हुआ ही नहीं है अभी तक कोई हमारा...</span></i></b></div></div><div><div style="text-align: justify;"><b><i><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;">सारी सोचें हुई है झूठी और हर जज्बात मर चुका है हमारा।</span></i></b></div><div style="text-align: justify;"><b><i><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;"><br />
</span></i></b></div><div style="text-align: justify;"><b><i><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;">-----------------------------------------------</span></i></b><br />
<b><i><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;"><br />
</span></i></b><br />
<b><i><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;"></span></i></b><br />
<b><i><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;"> जीवन जीना चाहती हूं, जी भर के...<br />
रहना चाहती हूं, उन्मुक्त गगन की तरह...<br />
घूमना चाहती हूं, विस्तृत धरती की तरह..<br />
हंसना चाहती हूं, एक भोले शिशु की तरह...<br />
सोचना चाहती हूं, गंभीर सागर की तरह...<br />
बस में इतना चाहती हूं।<br />
-------------------------------<br />
अपनी खुशी की तो सब बात करते है...<br />
बाते करें जो दूसरे की खुशियों की...<br />
तन्हा लम्हों में दे दे सहारा...<br />
हमने ते ऐसा सुकू, ऐसा चैन आज तक ना पाया।<br />
कहते गए जो वो करते नहीं बना...<br />
लाख कोशिशों के बाद भी वो हासिल-ए- मंजिल नहीं मिला।<br />
<div><br />
</div></span></i></b></div><div style="text-align: justify;"><b><i><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: 11px; font-style: normal; font-weight: normal;"><span class="UIStory_Message"></span></span></span></i></b></div><b><i><span class="UIStory_Message"></span></i></b><br />
<b><i><span class="UIStory_Message"></span></i></b><br />
<b><i><span class="UIStory_Message"><table class="uiInfoTable mtm profileInfoTable" style="-webkit-border-horizontal-spacing: 0px; -webkit-border-vertical-spacing: 0px; border-bottom-width: 0px; border-collapse: collapse; border-color: initial; border-left-width: 0px; border-right-width: 0px; border-style: initial; border-top-width: 0px; margin-top: 10px; text-align: justify; width: 540px;"><tbody>
<tr><td class="data" style="line-height: 16px; padding-bottom: 1px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; padding-top: 3px; text-align: left; vertical-align: top;"><div style="margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px;"><b><i><br />
</i></b></div></td><td class="data" style="padding-bottom: 1px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; padding-top: 3px; text-align: left; vertical-align: top;"><br />
</td><td class="data" style="padding-bottom: 1px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; padding-top: 3px; text-align: left; vertical-align: top;"><br />
</td><td class="data" style="padding-bottom: 1px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; padding-top: 3px; text-align: left; vertical-align: top;"><br />
</td><td class="data" style="padding-bottom: 1px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; padding-top: 3px; text-align: left; vertical-align: top;"><br />
</td><td class="data" style="padding-bottom: 1px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; padding-top: 3px; text-align: left; vertical-align: top;"><br />
</td><td class="data" style="padding-bottom: 1px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; padding-top: 3px; text-align: left; vertical-align: top;"><br />
</td><td class="data" style="padding-bottom: 1px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; padding-top: 3px; text-align: left; vertical-align: top;"></td><td class="data" style="padding-bottom: 1px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; padding-top: 3px; text-align: left; vertical-align: top;"></td><td class="data" style="padding-bottom: 1px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; padding-top: 3px; text-align: left; vertical-align: top;"><br />
</td><td class="data" style="padding-bottom: 1px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; padding-top: 3px; text-align: left; vertical-align: top;"><br />
</td><td class="data" style="padding-bottom: 1px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; padding-top: 3px; text-align: left; vertical-align: top;"><br />
</td><td class="data" style="padding-bottom: 1px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; padding-top: 3px; text-align: left; vertical-align: top;"><br />
</td><td class="data" style="padding-bottom: 1px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; padding-top: 3px; text-align: left; vertical-align: top;"><br />
</td><td class="data" style="padding-bottom: 1px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; padding-top: 3px; text-align: left; vertical-align: top;"><br />
</td><td class="data" style="padding-bottom: 1px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; padding-top: 3px; text-align: left; vertical-align: top;"><br />
</td><td class="data" style="padding-bottom: 1px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; padding-top: 3px; text-align: left; vertical-align: top;"><br />
</td><td class="data" style="padding-bottom: 1px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; padding-top: 3px; text-align: left; vertical-align: top;"><br />
</td><td class="data" style="padding-bottom: 1px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; padding-top: 3px; text-align: left; vertical-align: top;"><br />
</td><td class="data" style="padding-bottom: 1px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; padding-top: 3px; text-align: left; vertical-align: top;"><br />
</td><td class="data" style="padding-bottom: 1px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; padding-top: 3px; text-align: left; vertical-align: top;"><br />
</td><td class="data" style="padding-bottom: 1px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; padding-top: 3px; text-align: left; vertical-align: top;"><br />
</td><td class="data" style="padding-bottom: 1px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; padding-top: 3px; text-align: left; vertical-align: top;"><br />
</td><td class="data" style="padding-bottom: 1px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; padding-top: 3px; text-align: left; vertical-align: top;"><br />
</td><td class="data" style="padding-bottom: 1px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; padding-top: 3px; text-align: left; vertical-align: top;"><br />
</td><td class="data" style="padding-bottom: 1px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; padding-top: 3px; text-align: left; vertical-align: top;"><br />
</td><td class="data" style="padding-bottom: 1px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; padding-top: 3px; text-align: left; vertical-align: top;"><div style="margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px;"><b><i><br />
</i></b></div></td></tr>
</tbody></table></span></i></b></div></span></div></div><form action="http://www.facebook.com/ajax/ufi/modify.php" ajaxify="1" class="commentable_item collapsed_comments one_row_add_box autoexpand_mode comment_form_141222319249365" id="commentable_item_1542452691_141222319249365" method="POST" name="add_comment" style="margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px; padding-bottom: 0px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; padding-top: 0px;"></form></span></div></div><form action="http://www.facebook.com/ajax/ufi/modify.php" ajaxify="1" class="commentable_item collapsed_comments one_row_add_box autoexpand_mode comment_form_119997384718545" id="commentable_item_894040636_119997384718545" method="POST" name="add_comment" style="color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 11px; margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px; padding-bottom: 0px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; padding-top: 0px;"></form>Apni zami apana aasamhttp://www.blogger.com/profile/14364264322437285875noreply@blogger.com0