सोमवार, जुलाई 21, 2008

मीडिया मिशन है या कुछ और

प्रजातंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाना वाला पत्रकारिता का व्यवसाय आज अपनी राह से भटक गया है। प्रिंट मीडिया की जिस लेखनी को तलवार की धार से भी तेज समझा जाता था वो आज बोथरी हो गई है। यही हाल संचार क्रांति के बाद मीडिया को मिले नए स्वरूप इलेक्ट्रोनिक का भी हो गया है। कहीं कुछ ऐसी चीज नहीं बची है जिसको लेकर पत्रकारिता जगत आम जनता के सामने सीना तान के कह सकें कि हम आज भी अन्याय को न्याय में बदलने की सामर्थ्य रखते है। केवल अपने चैनल और अपने अखबार के लिए एक्सक्लूसिव स्टोरी लाने पर हमारा जोर दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है, फिर चाहे वो स्टोरी देश, समाज या फिर एक नागरिक के लिए हानिप्रद हो। बस आज के लिए इतना ही,क्योंकि ब्लॉग बनाने के बाद यह मेरे विचारों का पहला विस्फोट है।