रविवार, अप्रैल 28, 2013

नारी सशक्तिकरण: हौसले से बदल डाली तकदीर की तस्वीरें






- महिला हस्तशिल्पियों ने बयां की नारी सशक्तिकरण की कहानी
- हाथ के हुनर को बनाया आत्मनिर्भरता का हथियार
- विषम परिस्थितियों में नहीं मानी हार
रचना वर्मा,नोएडा: ख्वाबों की ताबीरों के लिए हिम्मत और हौसलों का हासिल ही सब कुछ है, क्या हुआ जो तालीम का मौका नहीं मिला, क्या हुआ जो शहरों में रहने का सिलसिला नहीं मिला,अपने हुनर से किस्मत का रूख मोड़ ख्वाबों को धरातल पर ला खड़ा किया। देश के विभिन्न राज्यों से सेक्टर-21 ए स्टेडियम में गांधी शिल्प बाजार में आई प्रत्येक महिला हस्त शिल्पी की अपनी कहानी है, लेकिन सुदूर गांवों में रहने वाली इन महिलाओं ने अपनी कला से नारी सशक्तीकरण को देश में सच कर दिखाया है। यहां लगी 150 स्टॉल में 25 फीसद इन महिलाओं की हैं। अपने परिवार में ही नहीं बल्कि गांव में इनकी सफलता अन्य महिलाओं को भी प्रेरणा दे रही है।
हुनर से संभाला तलाक के बाद परिवार: अलीगढ़ के अमीनिशा की 32 वर्षीय शाहना के जिंदादिल मिजाज को देख शायद ही कोई इस महिला के दर्द का अनुमान लगा पाएं। 11 वर्ष पहले पति ने तीन बच्चों के साथ उन्हें अकेला छोड़ दिया, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और अपने हाथ के हुनर को ही मुफलिसी और मुसीबत से निकलने का हथियार बना डाला। 10 वीं पास अमीना एपलिक और पैच वर्क के काम से अपना अलग मुकाम बनाया। वह बताती हैं कि जिंदगी में सफल होने के लिए हिम्मत और हौसला होना चाहिए। उनकी स्टॉल पर पैच वर्क का सामान लेने आने वाले भी उनकी खुशमिजाजी के कायल हुए बिना नहीं रहते।
घर-घर जाकर बेचा कांथा: 15 वर्ष पहले जब पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले के उत्तराकोना गांव की पदमा घर-घर जाकर कांथा (कपड़े पर कढ़ाई) के कपड़े बेचा करती थी, तो उन्होंने सोचा भी नहीं था कि उनका ये काम उन्हें ही नहीं उनके परिवार को अलग पहचान दिलाएगा। वह बताती हैं कि शादी के बाद उन्होंने परिवार की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए ये काम सीखा। कई बार लोग कपड़े पर काम करने को नहीं देते थे, लेकिन उन्होंने भी ठान ली कि पीछे नहीं हटना। मौजूदा समय में उनके कांथा वर्क की मुम्बई तक मांग है। उनके अंडर 150 लड़कियां रोजगार पा रही है। महीने में 10 से 20 हजार की कमाई हो ही जाती है।
ससुराल में जमाई धाक: कोलकता की 35 वर्षीय सीमा बनर्जी को शीप लेदर के काम में महारत हासिल है। शादी से पहले वह ये काम किया करती थी, लेकिन उसके बाद भी उन्होंने अपने इस शौक को इस कदर बढ़ाया कि उनके सुसराल वाले उनके कायल हो गए। शीप लेदर के पर्स और अन्य सामान बनाकर वह आस्ट्रेलिया, कनाडा, यूएस में भी अपने काम को पहचान दिला चुकी है। उनके इस व्यवसाय से उनके पति भी जुड़ गई हैं।
पत्थर को तराश कर बनाती है क्रिस्टल: तमिलनाडु के त्रिचनापल्ली की मंजुला और सुलोचना कठोर पत्थरों को क्रिस्टल की खूबसूरत मालाओं में तब्दील करती है। तांबे के तार में भी इन क्रिस्टल को पिरोना का काम करती है। दोनों बताती है कि इससे परिवार की आय भी बढ़ती है और उनके खुद के खर्चे का इंतजाम भी हो जाता है।
राज्य स्तरीय अवार्ड तक बनाई पहचान: आठ साल की उम्र में कांथा स्टिच का काम पकड़ा और उसे इस मुकाम तक रजिया ने लाकर छोड़ा, जहां कोलकता ही नहीं बल्कि पूरे देश में उनका कांथा मशहूर होने लगा। ऐसे रूढि़वादी परिवार में जहां औरत के सिर से पल्लू हटने को भी बड़ी गलती माना जाता है, सिर पर पल्लू रखकर ही उन्होंने सफलता की इबारत लिख डाली।
जूट के बैग से पल रहा परिवार का पेट: बिमला ने शादी के बाद पति की गरीबी का रोना नहीं रोया, बल्कि उनके जूट के बैग बनाने के कारोबार में रम गई। पति जूट के बैग बनाते है और वह उनकी कटिंग करती है। उनकी स्टॉल में सजे जूट के बैग उनकी कलात्मकता को बताते हैं। वह कहती हैं कि उन्हें संतुष्टि है कि उनका परिवार चल रहा है।
अपनी कमाई से आत्मनिर्भरता का अहसास:सेक्टर-31 निवासी 33 वर्षीय अक्षिता अग्र्रवाल के चेहरे पर उनके आत्मनिर्भरता का अहसास साफ झलकता है। शादी के बाद आकांक्षा ने अपनी कमाई करने के लिए पुराने कपड़े से मल्टी परपज पाउच के हुनर को निखारा। आज उन्होंने अपने इस काम से पांच जरूरतमंद लड़कियों को रोजगार दिया है।
अविवाहित रहकर संभाली परिवार की जिम्मेदारी: असम की 50 वर्षीय मीना अविवाहित है। उन्हें असम सिल्क के काम में प्रवीणता है। गोवाहटी में अपने परिवार की वह सर्वेसर्वा है। उन्होंने अपने काम से परिवार की जिम्मेदारियों को बखूबी अंजाम दिया है।
हर एक का संघर्ष सफलता की कहानी: इटोंजा की 40 वर्षीय रूबीना ने पति के कैंसर से भी हार नहीं मानी और कुशलता के साथ चिकन के कारोबार संभाला। गुजरात की गीता, सीता ने भी जरी के काम को परिवार के पालन का जरिया बना डाला। अरूणाचल की टोका रूपा ने कागज के फूलों, आंन्ध्रा के गांव निम्मलकुंटा की ममता ने बकरी के चमड़े पर कलमकारी हस्तकला के रंग बिखेरे, बिहार की अंजू केसर और परिवार की जरूरतों को पूरा किया।
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रचना वर्मा


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