बुधवार, अगस्त 25, 2010

समाज की हर शाख पर वीएन राय

"महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा (मगांअंहिंवि) के कुलपति विभूति नारायण राय ने महिला हिंदी उपन्यासकारों पर दिये गये अपने घृणित बयान के लिए खेद व्यक्त करते हुए माफी मांग ली है। भारतीय प्रशासनिक सेवा के भूतपूर्व अधिकारी रहे राय ने नया ज्ञानोदय पत्रिका (भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा प्रकाशित) को दिये अपने साक्षात्कार में कहा था कि पिछले कुछ वर्षों से नारीवादी विमर्श मुख्यतः देह तक केंद्रित हो गया है और कई लेखिकाओं में यह प्रमाणित करने की होड़ लगी है उनमें से कौन सबसे बड़ी छिनाल (व्यभिचारी महिला, वेश्या) हैं। एक मशहूर हिंदी लेखिका की आत्मकथा का हवाला देते हुए राय ने अतुलनीय ढंग से कहा कि अति-प्रचारित लेखन को असल में कितनी बिस्तरों पर कितनी बार का दर्जा दे देना चाहिए।"
क्या माफी मांग लेने भर से और वीएन राय को दंडित कर देने से समाज की मानसिकता में बदलाव संभव है...नहीं बिल्कुल नहीं क्योंकि यहां तो हर गली-नुक्कड़ पर वीएन राय जैसे शख्स मौजूद हैऔर रहेंगे भी ऐसे में केवल एक को सजा दिलाकर हम अपनी जिम्मेदारी से कन्नी नहीं काट सकते। यहां तो हाल हर शाख पे उल्लू बैठा है अंजाम -- गुलिस्ता क्या होगा जैसा है। वीएन राय तो केवल एक अदना सा उदाहरण ही है जिसने प्रकृति की इस अनुपम रचना पर ( माफ किजिएगा अनुपम यहां महिलाओं को महिमामंडित करने के लिए नहीं लिखा है, यह शब्द एक नए जीवन को जन्म देने वाली जननि के अर्थ में प्रयुक्त किया गया है।अमर्यादित टिप्पणी की है ...समाज में ऐसे कितने ही वीएन राय मौजूद है जो रोजाना अपने मुखारबिंदु से इससे भी बड़े अपशब्द और गालियां देकर इस अनुपम रचना का अपमान करते है, उसे नीचा दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ते, ऐसे में सवाल ये उठता है कि सदियों से जो नारी, महिला या अबला समाज में इन उपनामों से जी रही है, क्या वास्तव में इस विडम्बना से अलग हो पाएगी कि वह एक स्त्री है और उसे अपमानित करने का सभी को जन्मसिद्ध अधिकार है, विशेषतः अपनी शारीरिक संरचना को लेकर। 
कोई भी मुद्दा क्यों ना हो किसी भी तरह से नारी को प्रताड़ित करना हो तो उसके शरीर या उसके शारीरिक संबंधों को लेकर कोई अपशब्द कह दो, फिर क्या है... ये उसके अर्न्तमन को बेधने का सबसे कारगर हथियार और उपाय दोनों ही है। गली-मौहल्लों के नुक्कड़ों से लेकर संभ्रात स्तर तक नारी को प्रताड़ित और शोषित करना हो तो उसकी दैहिक संरचना पर ही कई उपसर्ग और प्रत्यय लगाकर निशाना साधा जाता है। यदि किसी पुरूष को अपने साथी पुरूष को घोर अपमानित करना हो तो भी बात मां..बहन पर आकर टिक जाती है। अनपढ़ से लेकर शिक्षित इंसान तक नारी के प्रति इन अपशब्दों के इस्तेमाल कर अपने को बड़ा योद्धा समझता है। अंतर केवल इतना है कि कई लोग खुलेआम इन शब्दों का उच्चारण करते है तो कई लोग दबे मुंह। मैं इन सभी लोगों से पूछना चाहती हूं कि  क्या उन्होंने कभी मां- बहन की गालियां दे रहे किसी शख्स को दुत्कारा या इसका प्रतिरोध
किया, नहीं शायद किसी ने नहीं, जब-तक बात उनके गिरेंबा तक ना पहुंच गई हो। अधिकांश लोग महिलाओं के प्रति प्रयोग किए गए इन शब्दों को सुनकर या तो खींसे निपोरते है या मन ही मन अपनी यौन कुंठाओं को शांत करते है। 
किसी भी महिला को  छिनाल, वेश्या, चरित्रहीन और बदचलन कहने का हक किसने तुम्हें दे दिया। यदि कोई स्त्री वेश्या है तो उसे इस हद तक आने को मजबूर किसने किया इसी पुरूष मानसिकता ने। समाज और पुरूष वर्ग क्या एक बार भी नहीं सोचता कि उन्होंने भी किसी महिला की कोख से ही जन्म लिया है, जिसे वो गर्व से मां कहते है। तुम अपनी मां की इज्जत करते हो तो किसी भी महिला को अपमानित कर सकते हो क्या...लेकिन मां की इज्जत करने का भी ये ढो़ग ही है...क्योंकि मां की इज्जत करना मतलब संपूर्ण नारी जाति का सम्मान करना है...लेकिन समाज की मानसिकता कहो या पुरूष का अंह आजतक ऐसा हो नहीं पाया है, इसलिए नारी को शारीरिक संरचना का प्रकृति प्रदत्त यह उपहार अभिशाप ही लगता है। 
कोई महिला सफलता के उच्चतम शिखर पर पहुंच जाए या फिर किसी क्षेत्र में कुछ अच्छा कर जाए तो उसके सहयोगी यह कहने से भी बाज नहीं आते कि फलां के साथ बिस्तर पर गई होगी या फिर छिनाल, बदचलन कई तरह की उपमाओं उसे नवाज डालते है। चाहे वह  महिला हो या पुरूष उसका किसी के साथ भी शारीरिक, मानसिक या आत्मीय किसी भी तरह का संबंध उसका नितांत निजी फैसला है, उस संबंध पर  किसी को भी अभ्रद टिप्पणी करने का क्या अधिकार है, लेकिन ऐसा हो  नहीं पाता पुरूषों की बनिस्पत महिलाएं ही अधिकांश इस दंश को झेलती है। समाज और पुरूष मानसिकता को कौन समझाए यदि बिस्तर पर जाने या शारीरिक संबंध बनाने से ही महिलाओं को सबकुछ मिल जाता तो फिर दुनिया का कोई भी पुरूष किसी महिला से तलाक नहीं लेता, विवाहोत्तर संबंधों का कोई सवाल ही नहीं पैदा होता, किसी महिला को वेश्यावृति नहीं करनी पड़ती, कोई भी महिला बलात्कार का शिकार नहीं होती। शायद इस बात का जवाब हमारे समाज के पास कभी होगा ही नहीं, क्योंकि नारी को समाज अभी तक इंसानों की श्रेणी में शामिल ही नहीं कर पाया है, लेकिन क्या करें प्रकृति ने महिला को भी एक इंसान ही बनाया है और हर इंसान की तरह उसकी भी जैविक और मानसिक आवश्यकताएं है, तो क्यों हर बार उसे ही प्रताड़ित किया जाता है। कार्यस्थलों से लेकर घरों तक वह ही सबकी नजरों में क्यों दोषी हैं। जब पुरूष खुलेआम अपनी बिस्तर की बातों को या फिर दिअर्थी संवादों द्वारा अपनी नैसर्गिक आवश्यकताओं का बखान करने का साहस करता है तो क्यों एक लेखिका ऐसा नहीं कर सकती। क्या नैसर्गिक जरूरतों को केवल पुरूष ही बखान कर सकता है एक नारी नहीं, क्या पुरूष ही  इंसान है नारी नहीं, क्या नारी को केवल उपभोग की वस्तु की तरह ही देखा जाएगा। क्यों ये समाज आज तक एक नारी को उसकी देह से ऊपर उठकर केवल इंसान के रूप में नहीं देख पाया है। वीएन राय को सजा देने से ना स्थिति सुधरनी है और ना सुधरेगी। नारी को समाज में वास्तविक सम्मान और बराबर का हक तभी मिल पाएगा, जब समाज का सोच रूपी वीएन राय फांसी पर चढ़ जाएगा। फिर ना कोई नारी छिनाल रहेगी और ना बदचलन। मारना ही है तो अपने मन के अंदर सदियों से घर जमाए वीएन राय को मार डालो, फिर जाकर नारी को केवल इंसान के रूप में देखने की सोच सार्थक हो पाएगी।

1 टिप्पणी:

चण्डीदत्त शुक्ल ने कहा…

कड़वा सच. बातें बहुत-सी हैं. यहां कुछ लोगों को आपकी नाराज़गी से इत्तफ़ाक़ होगा, कुछ को ऐतराज़, लेकिन जिस सच्चाई की तरफ इशारा है, उसे कोई ग़लत नहीं ठहरा सकता. धारदार लेख।