शुक्रवार, अगस्त 13, 2010

जिन्दगी अजनबी सी बन गई

जिन्दगी अजनबी सी बन गई
ज़िन्दगी तुझे में अब तक समझ ना पाई
तुम धूप हो की छांव, महसूस करके भी महसूस ना कर पाई।
तेरी फितरत क्या है मैं जान ना पाई, जी के भी तुझको जी ना पाई।
तेरी राह में हैं कितने आरामगाह और मुसीबतें कितनी जान ना पाई।
सच तेरे मायने में समझ नहीं पाई।
मैं तेरे साथ रहकर भी जाने क्यों तुझसे अनजान बन गई..
तू मेरे लिए बेगानी...अजनबी बन गई।

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सूना है आकाश सूनी है धरती
सूना है ये जहां सूना है मन
प्यासी सी आत्मा, बोझिल सी आंखे हर दिन हर पल

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