मंगलवार, दिसंबर 09, 2008

आतंकवाद की जड़ को उखाड़ने के लिए योजनाबद्ध तैयारी की जरूरत है

वैश्वीकरण के इस दौर में जहां एक ओर इन दिनों आर्थिक मंदी से दुनिया ऊहापोह की स्थिति में है, वहीं दूसरी तरफ आंतकवाद भी अपने चरम पर है। यह विडम्बना ही है कि जहां एक ओर आथिर्क मंदी से निपटने के लिए पूरा विश्व एकजुट खड़ा नजर आ रहा है और अर्थशास्त्री इस स्थिति से निपटने के लिए तरह-तरह की योजना बना रहे है, वहीं दूसरी तरफ आंतकवाद से निपटने के लिए इस तरह की इच्छाशक्ति कहीं दिखाई नहीं पड़ती। दुनिया के किसी देश में आंतकी हमला हो जाए तो सभी देश संवेदना जता कर और इससे निपटने की योजनाएं बनाने के बड़े-बड़े दावे करके चुप बैठ जाते है। अमेरिका जैसी महाशक्ति का भी इस मामले में यहीं हाल है, फिर श्रीलंका, अफगानिस्तान, पाकिस्तान जैसे मुल्कों की तो बिसात ही क्या है। भारत भी आंतकवाद को लेकर कोई ठोस रणनीति बनाने में पीछे ही है, लेकिन एक बात यहां साफ है कि आंतकवाद और आंतकवादियों को मानवता का दुश्मन कहने वाले लोग आंतकवाद की मूल जड़ को आजतक समझ ही नहीं पाए है। आंतकवाद बिना किसी कारण के यूं ही दुनिया में नहीं पसर गया है, इसके सिर उठाने के पीछे कई गंभीर कारण है। कोई भी इंसान पैदा होते ही आतंकवादी नहीं बन जाता और भविष्य को लेकर सुनहरे सपने देखने वाली उम्र में कोई इंसानी बम बनने को कैसे तैयार हो जाता है। हाल ही में मुम्बई हमले में पकड़े गए मोहम्मद कसाव के बयानों को यदि गंभीरता से लिया जाए तो वह केवल रूपयों की खातिर ही इस घिनौने मिशन का एक हिस्सा बनने को तैयार हो गया और वो भी महज डेढ़ लाख रुपयों के लिए। दुनिया में कहीं भी यदि नौजवान दिग्भ्रमित होकर आंतकवाद का रास्ता अपना रहे है तो उसके पीछे सबसे बड़ा कारण गरीबी और बेरोजगारी ही है। क्यों दुनिया को चांद पर ले जाने वाला बुद्धिजीवी वर्ग इस समस्या के लिए भी कोई योजना तैयार नहीं करता। क्यों दुनिया में पसरी इस आर्थिक असमानता को दूर करने के लिए कोई सार्थक प्रयास नहीं किया जाता। जब हर हाथ को काम होगा, हर पेट को रोटी और हर किसी को सिर छुपाने के लिए छत मयस्सर होगी तब धर्म, प्रांत और राष्ट्र के नाम पर किसी को भी गुमराह करना आसान नहीं होगा। यह अराजकतावादी ताकतें तभी तक दुनिया में जिंदा है जब तक मानव में असमानता और असुरक्षा की भावना है, जहां यह सब नियंत्रित हो गया वहीं से एक नए युग का सूत्रपात होगा। संयुक्त राष्ट्र संघ जैसा बड़ा संगठन दुनिया के सभी देशों को एक-साथ लेकर इस दिशा में कोई प्रयास क्यों नहीं करता। परमाणु प्रसार, अप्रसार, ग्लोबल वार्मिंग को लेकर जब इतने बड़े-बड़े निर्णय लिए जाते है तो आंतकवाद को क्यों गंभीरता से नहीं लिया जाता है। आतंकवाद भले ही कोई जैविक या आर्थिक समस्या न हो, लेकिन एक सामाजिक समस्या तो है ही। जब पूरा विश्व का आधार समाज व्यवस्था है तो फिर इस सामाजिक समस्या की इतनी उपेक्षा क्यों होती है। कहीं तो अपने सामाजिक ढांचे को बचाने के लिए पहल करनी ही होगी। यह ढांचा बिखर गया तो कोई भी वैज्ञानिक प्रगति और आर्थिक विकास कहीं काम नहीं आएगा। पूरे विश्व में यदि कुछ होगा तो वह होगा अराजकता का साम्राज्य।

6 टिप्‍पणियां:

DUSHYANT ने कहा…

तुम्हारी कलम से पहली बार रूबरू हुआ हूँ..चेहरे से तो था..ये रचनाज्यादा सुंदर है..मुझसे नाराज़ हो सकती हो तुम्हे जलन हो सकती है ..इस रचना वर्मा से जो ऐसा लिख सकती है ..इस रचना को शुभकामनाएं

sushant jha ने कहा…

अच्छा लेख...वैसे मुझे लगता है कि आतंकवाद के कई रुपों में समाजिक कारक तो एक वजह है ही लेकिन बहुतेरे रुपों में राजनैतिक वजह ज्यादा अहम लगता है...इस एंगिल से भी विचार कर देखें...

प्रकाश गोविंद ने कहा…

रचना जी !
आपका भावप्रधान लेख पढ़ा !
चिंतन को बाध्य करती हैं बहुत सी बातें !
इस तरह की बातें बुद्धिजीवी वर्ग को ख़ास तौर पर बहुत पसंद आती हैं ! लेकिन हम मूलभूत तथ्यों को नजर अंदाज कर देते हैं !

- आपसे एक सवाल है की यह बताईये पिछले लगभग १५ वर्षों से भारत आतंकवाद की घटनाओं से दो-चार होता आ रहा है ! बड़ी संख्या में कश्मीरी विस्थापित हुए .....उन्हें अपना घर-बार छोड़ के भागना पड़ा ! अनगिनत बार अनेक जगहों पर बम धमाके हुए जिसमें बेशुमार मासूमों की जान गई ! जिस समुदाय के लोगों ने यह सब किया वो समुदाय मौन क्यों रहा ?
मुम्बई घटना के बाद पहली बार मुस्लिम समाज ने खुलकर विरोध दर्शाया है !
इसके पहले क्यों नही ?

जबकि अगर एक मस्जिद पर कोई एक मुक्का भी मार दे तो पूरा इस्लाम जगत चीखने - चिल्लाने लगता है ! अमेरिका ने जब अफगानिस्तान या ईराक पर धावा बोला तो पूरे भारत में धरना - प्रदर्शन हुए ! जगह - जगह नारे बाजी हुयी ........सारे इमाम और मौलवी पानी पी- पीकर अमेरिका को गालियाँ देने लगे !
लेकिन भारत के अन्दर अगर किसी आतंवादियों ने मानवता को कलंकित किया तो पूरे इस्लामी जगत ने चुप्पी साधे रखी !
यह दोहरा चरित्र क्यूँ ?

क्या यह सही नही है कि अनगिनत मुस्लिम लादेन को हीरो मानते हैं ! बच्चों के नाम लादेन रख कर गौरवान्वित नही महसूस करते ? ऐसी मानसिकता के बीच किसी भी नवयुवक को बहकाना क्या कोई मुश्किल काम है ?
बचपन से लेकर आज तक मैं मुस्लिम समुदाय के बेहद करीब रहा हूँ .... उन्ही के बीच रहता हूँ ! मैंने हमेशा ये महसूस किया कि करीब ७० प्रतिशत मुस्लिम देश की मुख्य धारा से कटा हुआ है !

आपने लिखा है कि "आंतकवाद से निपटने के लिए इस तरह की इच्छाशक्ति कहीं दिखाई नहीं पड़ती।" यह बात आप कैसे कह सकती हैं ?
अमेरिका में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर की घटना के बाद एक भी वारदात नही हुयी !
चीन के एक प्रांत में आतंकियों के सर उठाते ही चीन ने कुचल दिया !
ब्रिटेन में ट्रेन बम धमाके के बाद एक भी दूसरी घटना नही हुयी !
रहा सवाल पाकिस्तान का तो जिन आतंकवादियों को उसने पाला पोसा उन्हें देर सवेर भस्मासुर तो बनना ही था !

आप कहती हैं नौजवान दिग्भ्रमित होकर आंतकवाद का रास्ता अपना रहे है तो उसके पीछे सबसे बड़ा कारण गरीबी और बेरोजगारी है। क्या कहा जाए इस बात पर ? डाक्टर ...इंजीनिअर....वैज्ञानिक....कम्पयूटर एक्सपर्ट जैसे लोगों की संलिप्तता क्या जाहिर करती है !
यही "कसाब" नामक आतंकवादी अगर बचकर निकलने में कामयाब हो जाता तो पाकिस्तान में हीरो बन जाता !
आप कहती हैं कि बेचारा बेरोजगारी में दिग्भ्रमित होकर ऐसा पाशविक कृत्य कर बैठा !
तब तो फिर देश की जेलों में बंद सारे अपराधी मासूम हैं ! क्योंकि बेचारे सभी हालात के सताए .... बेरोजगारी के मारे,,,,,,, ग़लत संगत में फसकर..अथवा.... त्वरित आवेश में आकर कोई अपराध कर बैठे ! हमको अपराध की मूल जड़ तक पहुंचना चाहिए ........ है न ?

बाकी अपराधों का तो पता नहीं लेकिन आतंकवाद के बारे में अवश्य कह सकता हूँ कि इसकी जड़ तक पहुँचने की कोई कोशिश नहीं करना चाहेगा !

हर आदमी सलमान रश्दी की तरह खुशनसीब नहीं होता !

मनोज द्विवेदी ने कहा…

bilkul sahi kaha hai apne madam..

Bahadur Patel ने कहा…

rachana ji apane bahut sahi likha hai.is par manthan hona chahiye.
prakash ji bahut gusse me hai.
sirf sikke ka ek pahalu dekh rahe hai.suni sunai bate hamesha sach nahin hoti hai. ek hi tarah ke aankade ek jagah ekkatthe karane sahi kabhi galat nahin hoga.history padho janab.sikke ke bahut pahalu hai. poorvagrah chashma utaro bhai.kuchh padhakar pahale tarkik ho jayen to achchha lagega.bahut kuchh hai kabhi milenge bethenge to baat hogi.
filhal rachana ji aap likhati rahen.

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) ने कहा…

prakash ji kee baat se main bhi sahamat hun rachnaa jee....aapke savaal vaise sochne par vivash jaroor karte hain...
..........rachnaa ji type ko thoda mota kar den to mujh jaise bhooton ko padhne men jara aasaani ho jaye.... kar dengi naa....!!