गुरुवार, अप्रैल 16, 2009

एहसास जो कृति में ढल गए

ये कुछ पंक्तियां नीरज जी के ब्लॉग से मैंने अपने संग्रह में शामिल की है॥
इन्हें पढ़कर ऐसा लगता है कि कई अहसास ऐसे होते है जो इतने गहरे होते है कि कागज पर आते ही बेहतरीन कृति बन जाते है॥

"गुलशन की बहारों मैं, रंगीन नज़ारों मे , जब तुम मुझे ढूंढोगे, आँखों मे  नमी मे होगी,
महसूस तुम्हें हर दम, फिर मेरी कमी होगी...
 आकाश पे जब तारे, संगीत सुनायेंगे
 बीते हुए लम्हों को, आँखों मैं सजाओगे, तन्हाई के शोलों मे, जब आग लगी होगी
 महसूस तुम्हे हर दम फिर मेरी कमी होगी...
सावन की घटाओं का जब शोर सुनोगे तुम, बिखरे हुए माज़ी के राग चुनोगे तुम
माहौल  के चेहरे पर जब धूल जमी होगी
महसूस तुम्हे हर दम फिर मेरी कमी होगी
जब नाम मेरा लोगे तुम कांप रहे होगे आंसू  भरे दामन से मुँह ढांप रहे होगे रंगीन घटाओं की जब शाम घनी होगी महसूस तुम्हें हर दम फिर मेरी कमी होगी.............. "