मंगलवार, दिसंबर 18, 2012

बोल की लब सिले हैं अब तक...



 ''बोल की लब सिले हैं अब तक, अबला, नारी नहीं बेचारी और न ही है उपभोग की वस्तु, दुनिया को अब समझा दे कि तेरे दम से वो है, नहीं कहीं किसी से कम तू है, फिर क्यों तेरी मर्यादा का मर्दन यहां हरदम है, हुंकार अब भरनी होगी, रणचंडी अब बनना होगा, दुष्कर्म के असुरों का अब मर्दन करना ही होगा।ÓÓ ये चंद पंक्तियां उस पूरी नारी जाति के लिए है जो कहीं न कहीं, कभी न कभी केवल और केवल अपनी शारीरिक भिन्नता के कारण समाज में अत्याचार और दुष्कर्म का शिकार हो रही हैं। उन्हें सहानुभूति नहीं साहस की मशाल चाहिए। दिल्ली के गैंग रेप की घटना से आगाह हो जाना चाहिए है कि इस वक्त नारी को केवल और केवल उपभोग की तरह लिया जा रहा है। वह हांड-मांस का केवल पुतला भर नहीं है, सृष्टि का अस्तिव उसी से है। इन वजहों को पर नजर डालनी होगी जो समाज में नारी के खिलाफ इन अपराधों को बढ़ावा दे रहे हैं। शहर के प्रबुद्ध वर्ग इन अपराधों की पुनरावृत्ति में कानूनी के पेचीदीगियों को सबसे बड़ी वजह मानता है। वहीं अपराधियों में खौफ न होना भी एक कारण है।
देश ही नहीं जिला भी नहीं कम महिला अपराधों में: जिले में इस वर्ष दुष्कर्म के 19 और छेडख़ानी के 48 मामले आए हैं। वर्ष 2011 में 21 दुष्कर्म तो 73 छेडख़ानी के मामले हैं। उधर यूएन डेवलेपमेंट प्रोग्र्राम की लैगिंक असमानता की सूची के 169 देशों में भारत 119 वें पर है। नेशनल क्राइम रिकॉर्डस ब्यूरो के मुताबिक आईपीसी और एसएलएल के मुताबिक
दुष्कर्म और छेडख़ानी से बाधित होती है नारी स्वतंत्रता: दिल्ली रेप की घटना से केवल दिल्ली नहीं, बल्कि पूरे देश की महिलाओं और युवतियों के जेहन में एक सवाल कौंध रहा है, आखिर हर बार ऐसा क्यों। नोएडा के एक पब्लिक स्कूल की युवा शिक्षिका प्रतिमा का कहना हैं कि इस तरह की घटनाएं इस 21 वीं सदीं में भी महिलाओं की स्वतंत्रता में बाधक बनती है। उनका कहना है कि निम्न, मध्यम वर्गीय यहीं नहीं उच्च वर्गीय परिवारों में भी इस तरह की घटना से गलत संदेश गया है। उन्हें लड़कियों के देर शाम घर से बाहर न निकलने देने के लिए ये एक और तर्क मिल गया है। उधर छात्रा नीलम कहती हैं कि इस तरह के मामले में रेप पीडि़त को सहानुभूति नहीं साहस देना चाहिए, ताकि वह अपराधियों के खिलाफ डटकर खड़ी हो सकें। उनका कहना कि महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों के लिए कानून तो है, लेकिन इनका खौफ कहीं नहीं। वहीं महिलाओं की हत्या हो या उनके खिलाफ कोई और अपराध उसकी रिपोर्ट में संवेदनशीलता की कमी होती है, इस वजह से कई बार समाज में पीडि़त के अपराधी होने जैसा संदेश जाता है।
पुलिस और ज्यूडिशरी भी है इस मामले में कमजोर: सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ अधिवक्ता कमलेश जैन का कहना है कि स्त्रियों को सशक्त करने की दिशा में देश का कानूनी पक्ष बहुत ही सशक्त दिखाई पड़ता है, लेकिन व्यवहार में ऐसा नहीं है। केवल कानून बनाने से महिला सशक्तिकरण नहीं हो जाएगा। इसके लिए समाज और परिवार को पहल करनी होगी। इसके साथ ही पुलिस और ज्यूडिशरी को भी सक्रिय होना होगा। वर्ष 2010 में सीआरपीसी में अच्छा संशोधन हुआ, लेकिन इसे ढंग से लागू नहीं किया जा रहा है। इसमें रेप पीडि़त, अपराधी और गवाहों की वीडियो और आडियोग्र्राफी के साथ ही अपराधी के तुरंत मेडिकल टेस्ट का प्रावधान है। इसके साथ ही मामलों की सुनवाई फास्ट ट्रैक में होने का सुझाव है,लेकिन वास्तविकता में ऐसा नहीं होता। इससे अपराधियों में खौफ खत्म हो जाता है, इस तरह के मामलों के पुनरावृत्ति का यही वजह है।
लॉ एंड ऑर्डर है कमजोर: नोएडा सेक्टर -26 निवासी सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश वीएन खरे का कहना है कि लॉ एंड ऑर्डर कमजोर है। इस वजह से महिलाओं के खिलाफ रेप के मामले बढ़ रहे।  महिलाओं के लिए सम्मान नहीं रह गया है। इसमें न्याय व्यवस्था को तेजी से काम करना होगा। फास्ट ट्रैक कोर्ट और एक सप्ताह के अंदर ट्रायल को तव्वजो देनी चाहिए। वर्षों तक चलते मुकदमों में पीडि़त परेशान हो जाता, सबूत और गवाह बदल जाते हैं। 
ट्रायल है कमजोर: जिले के एसएसपी प्रवीण कुमार का मानना है कि आईपीसी की धारा 376 सशक्त है। इसमें रेप के अपराधी को उम्र कैद की सजा का प्रावधान है, लेकिन ऐसा कुछ ही मामलों में होता है। रेप के मामलों का फास्ट ट्रैक कोर्ट में सुनवाई रेयर ऑफïदि रेयरेस्ट के केस में होती है। वही केस के लंबा खींचने से अपराधियों का भय भी जाता रहता है। रेप के मामले में चार्ज शीट दाखिल होते ही फास्ट ट्रायल होना चाहिए।
मानव मूल्यों में आती गिरावट: समाजशास्त्री श्याम सिंह शशि का कहना है कि खाओ, पीओ और मस्त रहो की प्रवृति बढ़ रही है। मानव मूल्यों और संस्कारों का मोल कम हो रहा है, कानून की सख्ती नहीं है, इससे महिलाओं के खिलाफ अपराध बढ़ रहे हैं। उधर समाजसेवी ऊषा ठाकुर कहती हैं कि कामकाजी महिलाओं का कांस्पेट समाज अभी स्वीकार नहीं पाया है, इसलिए फ्रस्टेशन में महिला संबंधी अपराध बढ़ रहे हैं।
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