- निर्भयापुर की कलाकार चित्रों से दे रही पर्यावरण संरक्षण का संदेश
- सुनामी को भी उकेरा तस्वीरों में
- प्रकृति से प्यार और लोक कला के संरक्षण की मिसाल
: ''मेरी कूची के रंग कह देंगे, तेरी कहानी है ओ प्रकृति रानी, तेरे ही रूप से सारा जहान है, तस्वीर में रंगों की रवानी तुझसे है, मानव का जीवन भी तुमसे है, वृक्षों को लगाना है, बस मानव को ये समझाना है....ÓÓ मन के इन उद्गारों को 40 वर्षीय मोयना चित्रकार चित्रों में ही बहुत संजीदगी से उतारती हैं। वह ज्यादा पढ़ी-लिखी नहीं है, लेकिन पटचित्र के माध्यम से वह पर्यावरण संरक्षण और विदेशों में भी भारतीय संस्कृति के बीज बो रही हैं। सेक्टर-21 ए स्टेडियम में गांधी शिल्प बाजार में आईं ये लोक कलाकार अपनी कलाकृतियों से समाजिक मुद्दों पर जागरूकता ला रही है।
सुनामी का दर्द ही नहीं सीता की व्यथा भी: उनकी कलाकृतियों में सुनामी का दर्द है तो तस्वीरों से बयां होती रामायण में सीता के रूप में नारी जाति की व्यथा भी उभर आती है। उनकी रामायण के चित्रों वाली किताब न्यूयार्क बेस्ट सेलर्स में हैं। अपनी कला के लिए राज्य स्तरीय पुरस्कार प्राप्त मोयना नारी सशक्तीकरण का भी जीवंत उदाहरण है। अपनी कला के जरिए वह परिवार का पालन-पोषण ही नहीं कर रही, बल्कि अपनी आत्मनिर्भरता से पश्चिम बंगाल के छोटे से गांव निर्भयपुर ग्र्रामीण महिलाओं के लिए मिसाल बनी हुई है।
नारी है प्रकृति का स्वरूप: पांच ïवर्ष की नन्ही उम्र में ही मोयना को प्रकृति का संसार भाने लगा था। मामी को प्राकृतिक रंगों से पटचित्र बनाते देख कर उनका भी पटचित्र कला की तरफ सहज रूझान हो गया। उनका कहना है कि नारी प्रकृति का ही स्वरूप है, उसे समझना हो तो प्रकृति से बेहतर कोई नहीं। उन्होंने बताया कि पटचित्र कला पूरी तरह से प्रकृति से जुड़ी हुई है। प्राकृतिक रंगों से तैयार हुई पट चित्र की कलाकृतियों में प्रकृति की तस्वीर ही बयां होती है।
रंगों का संसार है प्रकृति में: मोयना बताती है कि रंगों को तैयार करने से लेकर हाथ से बनाए हुए कपड़े पर तस्वीर उकेरने तक का काम पटचित्र कला में प्राकृतिक तरीके से किया जाता है। इससे प्रकृति को किसी तरह का नुकसान नहीं पहुंचता। इस कला में प्रयोग होने वाला पीला रंग हल्दी से, ईट से लाल रंग, अपराजिता के फूल से नीला और समुद्र के शंख से सफेद रंग तैयार होता है। यहीं नही हाथ से बनाया कपड़ा जिस पर चित्र बनाए जाते हैं, उसे चिपकाने के लिए बेल का गोंद प्रयोग में लाया जाता है। जब इतना सबकुछ प्रकृति से मिलता है, तो उसकी तस्वीर और उसे बचाना भी हमारा कर्तव्य है। वह कहती हैं कि एक तस्वीर बनाने में कम से कम तीन दिन लगते हैं। उनका कहना है कि तस्वीर 50 रुपये की हो या 30 हजार की उसमें दिया संदेश लोगों तक पहुंचना चाहिए।
सीधे उतर आती है तस्वीर: कागज पर रेखाचित्र उकरेने की जगह मोयना अपने विचारों को सीधे अपने चित्रों में जगह देती है। 'ओ जन गन सोबाई मिलेÓ उनके द्वारा पेड़ों लगाने का संदेश देने वाला गीत है, इस गीत को ही उन्होंने अपने चित्रों में उकेर डाला है। इसमें पेड़ों से जड़ी-बूटी मिलने का संदेश है, तो पेड़ बिना सूने मरूस्थल का भी चित्रण है। वह कहती हैं कि इस तस्वीर के माध्यम से वह पूरे देश को पेड़ लगाने का संदेश देना चाहती है। इसके साथ ही देवी-देवताओं के अलावा उनके चित्रों में लोक कथाएं भी स्थान पाती हैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें