शुक्रवार, जून 21, 2013

मासूम आंखों में समाया प्रकृति का भयावह रूप



- समझ आया आपदा में भोजन का महत्व
- प्रकृति के लिए न बने कठोर
- डूबते मकान और सड़के देख डर बैठ गया मन में

 छह जून को हम 14 छात्रों का दल इनमी ट्रैंकिंग दल के साथ दिल्ली से ऋषिकेश के लिए निकला। सात जून सुबह ऋषिकेश बेस कैंप पहुंचे। कल्पना भी नहीं की थी वापसी में उस बेस कैंप का नामोनिशां तक नहीं रहेगा। सात जून से 20 जून घर पहुंचने तक मेरी आंखों में पानी में डूबती सड़कों और मकानों का मंजर खौफ जगाता रहा। प्रकृति के इस भयावह रूप के दर्शन मैंने अपने पांच साल की ट्रैकिंग में कभी नहीं किए थे। घर सही सलामत वापस लौट कर मुझे इतना समझ आ गया कि हमें पर्यावरण के प्रति कठोर नहीं होना चाहिए, पेड़ काटने पर लगाम लगानी चाहिए, अपनी नदियों को प्रदूषण से बचाना चाहिए। इस वाकये के बाद मैं और मेरे दोस्त पर्यावरण संरक्षण के लिए जागरूकता फैलाने में अपना पूरा योगदान देंगे। टिहरी जैसे डैम बनाने से पहले 10 बार सोचना चाहिए।
सात जून को ऋषिकेश बेस कैंप से हम केदारनाथ से भी आगे दियारा टॉप के लिए निकले कम से कम जमीन से 11,000 फीट ऊपर दियारा चारगाह में चार दिन बिताने के बाद हम वापस लौट रहे थे, अंदाजा भी नहीं था कि नीचे इतनी तबाही मची हुई है, 15 जून को बारिश हो रही थी, हमारे साथ गए इंस्ट्रक्टर फोन पर मौसम का हाल पूछ- पूछ कर हमारे दल को आगे लेकर बढ़ रहे थे। रास्ते में पानी के साथ बहते बड़े-बड़े मकान, पानी पर तैरते कार, ट्रक और बचाने की गुहार लगाते लोग, पानी में डूबती जाती लंबी-लंबी सड़के देख हम सभी काफी डर गए। 16 जून की सुबह हम उत्तरकाशी पहुंचे, लेकिन पता चला की जिस ऋषिकेश के जिस बैस कैंप में हम ठहरे थे, वह बह गया। हमारे दल के लिए वह सबसे बड़ा सदमा था। छह लड़कों और आठ लड़कियों के हमारे दल में कई बच्चे होम सिकनेस का शिकार हो गए। दो लड़कियां की हालत ज्यादा बिगड़ गई। अलग-अलग तरह के भयावह ख्याल आ रहे थे, घर नहीं पहुंच पाएं तो बस के चलते-चलते रोड धस गई तो, हम सब आपस में ऐसी ही बातें कर रहे थे।   उत्तरकाशी के राधिका होटल में हमारा दल रूका था और 10 दिनों में भेलपूरी और ब्रेड बटर ही हमारा भोजन था। हमारे इंस्ट्रकटर पानी और भोजन बरबाद न करने को कह रहे थे और हम सबको पहली बार पता चला कि भोजन का महत्व क्या है। हम सारे होटल की छत पर खड़े होकर प्रकृति की विनाशकारी शक्ति का आकलन अपने- अपने अंदाज में कर रहे थे। हमारे सामने बिल्डिंग जमीनदोंज हो रही थी, लोग अफरा-तफरी में भाग रहे थे। इस बीच हमारे इंस्ट्रक्टर्स को हमारे अभिभावकों के लगातार फोन आ रहे थे, वह हमारे बारे में काफी चिंतित थे। हमारे इंस्ट्रक्टर्स हमसे तैयार रहने को कह रहे थे। 19 जून को बारिश की रफ्तार कम हुई और हम बस के जरिए ऋषिकेश पहुंचे और यहां से दिल्ली के लिए निकले। 20 जून की रात दो बजे हम दिल्ली पहुंचे। लगभग 18 घंटे की इस यात्रा में हम यहीं मना रहे थे कि घर पहुंच जाएं। दिल्ली पहुंचते ही सभी के मां -पापा गले लग कर हमें प्यार कर रहे थे, कई बच्चों की मम्मियां रो रही थी। मैं हमेशा ट्रैकिंग से आकर अपने रूम में चला जाता था, लेकिन इस बार ऐसा पता नहीं क्या था कि मां को गले लगाकर कुछ मिनट तक सोचता रहा।
प्रस्तुति : 14 वर्षीय करन नाग, सेक्टर-36 नोएडा

कोई टिप्पणी नहीं: