शुक्रवार, सितंबर 06, 2013

जीवन सरीखी है बांसुरी : पंडित हरिप्रसाद चौरसिया


पंडित हरिप्रसाद चौरसिया का ये साक्षात्कार संपादक जी ने महज ये कह कर छपवाने से इंकार कर दिया था कि इसका नोएडा से क्या मतलब. कौन पढ़ेगा पंडित हरिप्रसाद चौरसिया को नोएडा में. इसे मैंने अपने ब्लॉग में स्थान देना उचित समझा.

- बांसुरी अजेय है और रहेगी
-हुनर की तुलना करना ठीक नहीं
- संगीत की एक है बोली

 ''मुझे अंग्रेजी अधिक नहीं आती, बच्चों हिंदी में बात करूंगा तो समझ जाएओ ना "चेहरे पर विस्मित कर देने वाली कृष्ण सरीखी मुस्कान, अधरों से कुछ दूरी पर हाथों में  बांसुरी... कुछ इस अंदाज में मशहूर बांसुरी वादक पंडित हरिप्रसाद चौरसिया सरला चोपड़ा डीएवी सेंटनेरी स्कूल के छात्रों से रूबरू हुए थे. इस दौरान उन्होंने बांसुरी और उसके भविष्य को लेकर विशेष बातचीत की।
चंद्रमा और बल्ब के प्रकाश की तुलना नहीं: बांसुरी वादन के शिखर पर पहुंचने वाले पंडित चौरसिया न  बांसुरी वादन का भविष्य उज्जवल बताया। उन्होंने कहा कि आधुनिक वाद्य यंत्रों के बीच आज भी बांसुरी अजेय है, क्योंकि बल्ब का प्रकाश अलग है और चंद्रमा का अलग। बांसुरी भूत में थी, वर्तमान में है और भविष्य में भी रहेगी। ये वाद्य पूरे विश्व में अपनी पहचान बना चुका है। भले ही नई पीढ़ी बांस की बनी बांसुरी न बजाती हो, लेकिन कहीं स्टील तो कहीं अन्य वस्तुओं से बनी बांसुरी वह अपने संगीत में शामिल कर चुकी है।
जीवन सरीखी है बांसुरी: बांसुरी सबसे पुराना वाद्य यंत्र है। भगवान श्रीकृष्ण की सोच ने इसे लोक वाद्य बनाया और उन्ही की तरह ये हर जगह पहुंच गई। इसका निर्माण कारखाने में नहीं होता। एक तरह से बांसुरी मानव जीवन सरीखी है, इसकी उम्र और जीवन -मरण भी अनिश्चित है। इसके लिए जंगलों से चुन के बांस लेना पड़ता है, वह बांस सीधा और गांठ रहित होना आवश्यक होता है। इसके निर्माण के बाद मानव जीवन की तरह ही इसके चलने का कोई पता नहीं होता।
सामान्य और साधारण ही होता है अप्रितम: पंडित चौरसिया ने कहा कि जो भी सादगी से परिपूर्ण है, वह मधुर है, सुंदर, अप्रितम है, संगीत के साथ भी ये बात लागू होती है। ये जरूरी नहीं आगे आने वाले बांसुरी वादन की पीढ़ी उनकी बांसुरी वादन की विरासत को आगे बढ़ाए, इसलिए वह हुनर की तुलना को सही नहीं समझते। जिस तरह हर फूल की अपनी खूबसूरती होती है, उसी तरह हर एक के हुनर की अपनी खासियत होती है।
संगीत का एक है मजहब: बांसुरी पर ओम जय जगदीश भी बजता है और जिंगल बेल जिंगल बेल भी दोनों ही संगीत का रूप है भले ही भाषा अलग हो। संगीत कहीं का भी हो, उसके स्वर लय एक है। संगीत किसी देश या क्षेत्र विशेष का नहीं होता, बस हमारे विचारों का अंतर ही इसे देश काल की परिधि में बांधता है। ये बात फिल्मी संगीत पर भी लागू होती है, स्वर अच्छे लगे, लय, ताल ठीक हो, अच्छे से लिखा गीत हो तो फिल्मी संगीत भी अच्छा है। इतना ही कहंूगा कि जो जिसको भा जाएं वो अच्छा है।
संघर्ष में है जीवन का आनंद: पंडित चौरसिया बताते हैं कि उनके पिता उन्हें कुश्ती के दांव सीखा पहलवान बनाने के इच्छुक थे। पिता की इस इच्छा से उन्हें जीवन से संघर्ष करने की सीख मिली। जिस तरह कुश्ती में जीतने के लिए संघर्ष करना पड़ता है, उसी तरह जीवन के हर क्षेत्र हर विषय में संघर्ष हैं, क्योंकि संघर्ष में ही जीवन का आनंद है
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