सोमवार, अगस्त 25, 2008
हम भी इंसान है कोई तो जाने हमें
ईश्वर ने सृष्टि की रचना की और इसे गति देने के लिए पुरूष और स्त्री को इस धरती पर समान अधिकारों के साथ विकास के पथ पर बढ़ने का निर्देश दिया, हिंदू धर्मग्रंथों में कुछ ऐसी ही उपमाएं मानव की उत्पत्ति को लेकर की गई है...कुछ इसी तरह की बातों को अन्य धर्मों की धार्मिक पुस्तकों में भी लिखा गया है। यहां पर इन सब बातों का उल्लेख करने के पीछे मेरा एक ही उद्देश्य है कि पुराने समय से चली आ रही स्त्री की अस्मिता पर मैं कुछ प्रकाश डाल संकू। जब सृष्टि की उत्पत्ति के साथ ही नारी को गरिमा प्रदान की गई उसे पुरूष का सहभागी और सहयोगी कहा गया तो फिर ऐसा क्या हुआ कि वहीं नारी अपने सम्मान और अधिकारों के लिए अपने उसी सहचर से भयाक्रांत हो जाती है। यह नारी की स्थिति को लेकर महज मेरे विचारों का प्रर्दशन नहीं है... कुछ ऐसा ही वाकया मेरे साथ घटित हुआ और उसने मुझे इतना आहत किया कि मैं अपनी आत्मतुष्टि के लिए इन भावनाओं को शब्दों की शक्ल देने के लिए मजबूर हो गई। उस वाकये और उसके बाद घटित हुए सिलसिले को करीने से रखना चाहती हूं। शनिवार की शाम सवा आठ बजे रोजाना की तरह ही मैं अपने ऑफिस मीडिया हॉउस से ओखला रेलवे स्टेशन के लिए निकली, अपने ही धुन मैं फुटओवरिब्रज की सीढ़ियां चढ़ रही थी कि शराब के नशे में धुत्त एक नौजवान स्मोकिंग करते हुए मुझसे आगे निकला और अचानक वापस पलट कर बिल्कुल मेरे मुंह से मुंह सटाकर सिगरेट का धुंआ उसने मेरे मुंह पर उगल डाला उसकी इस हरकत पर मैंने भी तुंरत उसका कॉलर पकड़कर एक तमाचा उसे जड़ दिया, लेकिन ये क्या गलती करने के बाद वह युवक मुझे ही मारने के लिए दौड़ पड़ा, लगभग उसका हाथ मुझे मारने की लिए उठा ही था कि मेरे गले में पड़े इंडिया न्यूज के आईकार्ड पर उसकी नजर पड़ गई और वह भागने लगा। यह देखकर मुझे भी हिम्मत ,बंधी मैं भी उसके पीछे दौड़ने लगी इसके साथ ही प्लेटफॉर्म पर मैं मदद के लिए पुलिसवालों को भी देखने लगी, लेकिन पुलिसवाले तो नहीं कुछ युवक मेरी मदद को आगे आए और उन्होंने उस बदमाश को पकड़ लिया। इस घटना से वहां खड़े अन्य़ पुरुष यात्री भी वहां एकत्र हो गए, अब उन सब के बीच में अकेली और वह उस बदमाश युवक को बचाने की पुरजोर कोशिश करने लगे। इन्हीं मैं से कुछ ऐसे भी थे जो मेरी नजर में सेक्सुअली सिक और नामर्द की श्रेणी से अधिक नहीं थे। उनके चक्रव्यूह में खड़ी मैं उस बदमाश को पुलिस के हवाले करने के प्रयास में थी, लेकिन एक बार महाभारत के अभिमन्यु की तरह मैं हार गई, भीड़ में एक युवक ने जानकर मेरी कमर पर हाथ रखा और मैं तिलमिला उठी, गुस्से में मैंने उसे भी एक झापड़ रसीद कर दिया। फिर क्या था वह युवक भद्दी-भद्दी गालियों के साथ मुझे फाड़ डालने के लिए मेरे पीछे भागने लगा। जिस कार्ड के बल पर मैं उस महासमर में उतरी थी उसी को पकड़ कर उसने मुझे खींचने की कोशिश की कि इसी दौरान सौभाग्य से ट्रेन आ गई, लेकिन इस दौरान ना तो मेरी कोई महिला सहयात्री और ना ही अन्य किसी ने मेऱी मदद की कोशिश की। कुछ युवक केवल मैं आज समाज में हूं और मैं एनडीटीवी में हूं कहकर इस वाकये को परिचय का प्लेटफार्म बनाने की कोशिश भर कर रहे थे बाकि बाद में समय अभाव के काऱण में आगे की परिस्थितियां नहीं उजागर कर पा रही हूं।
लेबल:
अबला और बस लड़की,
कहीं कुछ और भी है क्या,
नारी,
स्त्री
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4 टिप्पणियां:
रचना आपका बयान किया गया वाकया चिन्ता में डालता है। सन्योग है कि "चोखेर बाली"पर आज की पोस्ट
http://sandoftheeye.blogspot.com/2008/08/blog-post_25.html
इसी मुद्दे को लेकर लिखी गयी है ।आपकी पोस्ट का लिंक वहाँ दे देना उचित होगा।
acchi post hai ..shukriya ...
आपने हिम्मत की और बदमाश को पकड़वाया। ऐसी घटना से अगली बार कोई कदम उठाने से पहले लड़के सोचेंगे। कई बार तो ऐसी घटनाओं सs महिलाएं चुप ही रह जाती हैं और इसका नाजायज फायदा पुरूष उठाते हैं। पर आपको पूरी मदद न मिल सकी , इसका मुझे दुख है।
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