चित्रकार इमरोज की इन पंक्तियों को पढ़कर कई साल पहले प्रेम पर लिखी गई अपनी ही कुछ पंक्तियां अब मुझे बेमानी लगने लगी है... उन पंक्तियों को इस वक्त में यहां नहीं दे पा रही हूं...लेकिन समय मिला तो उन्हें यहां देने से गुरेज भी नहीं करूंगी। आखिर प्रेम की परिभाषा और उसे अपने विचारों और कविताओं में व्यक्त करने का समय मुझे मिल ही गया।
प्यार क्या है, कहां है..कैसे और कब होता है.. मैं नहीं जानती, लेकिन मैं सोचती हूं.. समझे जो तुम्हारी भावनाओं को ..दर्द और दुख बांटे तुम्हारा..खुशी का तुम्हें दिलाए अहसास. बने जो सच्चा सहारा तुम्हारा, सम्मान जो दिलाए तुम्हें.. सूरत से नहीं जो शिरत से करें प्यार..मन की सुंदरता और पवित्रता पर जिसे हो ऐतबार..मेरी नजर में यही है प्यार... यहीं है प्यार।
सच है न
"सारे रंग सारे शब्द मिल कर भी प्यार की तस्वीर नहीं बना पाते हाँ ! प्यार की तस्वीर देखी जा सकती है पल पल मोहब्बत जी रही ज़िन्दगी के आईने में ........"
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