रविवार, अप्रैल 28, 2013

आधे फलक के चांद-सितारे नहीं मेरे हिस्से का पूरा आसमां चाहिए





- कुश्ती में मुकाम और लड़कियों के लिए प्रेरणा
- पेट्रोल पंप पर लड़कों की तरह काम करने पर है गर्व
- महिलाओं को समर्पित एक महिला

रचना वर्मा,नोएडा:
कॉमन इंट्रो  ''मुझे मेरे हिस्से का पूरा आसमां चाहिए, आधे फलक के चांद-सितारों से नहीं सजेगी मेरी दुनिया, मुझे दुनिया में आधी नहीं पूरी आबादी का हक चाहिए, बेचारी अबला नहीं और न ही आंखों में पानी, अब मुझे बदलनी है खुद की कहानी, जिन्दगानी के स्याह अंधेरों में रोशनी की लौ जलाने की कोशिश जारी है, भरोसा है मुझे, विश्वास है कायम कि एक दिन वो नई सुबह जरूर आएगी जब नारी अबला नहीं सबला बन दुनिया के फलक पर अलग मुकाम पाएंगी।ÓÓ इस जज्बे के साथ आठ मार्च को अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस पर ये अपने अस्तिव का उत्सव मनाएंगी। दुष्कर्म, दहेज हत्या, कन्या भ्रूण हत्या और अपने ही घरों में दोयम और निरीह करार दी जाने वाली नारी शक्ति इतने अत्याचारों, भेदभाव के बाद भी अपने अस्तित्व का पुरजोर अहसास करा रही है, हर क्षेत्र में अपने सार्थक प्रयासों से वह कह रही है हम किसी से कम नहीं। ये सच भी है, क्योंकि इस वर्ष महिला दिवस की थीम द जेंडर एजेंडा गेनिंग मोमेंटम भी यही गुनगुना रही हैं।
बबीता ने दी सादुल्लापुर की लड़कियों को प्रेरणा: गांव के माहौल में जहां लड़कियों को स्कूल भेजने में भी लोग सौ बार सोचते हैं, उसी गांव की बबीता नागर ने पुरूष वर्चस्व के क्षेत्र कुश्ती दंगल में अपना अलग मुकाम बना डाला। लगभग 12 हजार की आबादी वाले इस गांव में उन्हीं की बदौलत कई लड़कियों के सपने साकार होने को है। ग्र्रामीण बच्चियों को केवल स्कूल ही नहीं बल्कि खेल के मैदानों में भी भविष्य बनाने के लिए भेज रहे हैं। किसान परिवार से ताल्लुक रखने गांव की बबिता नागर के बुलंद इरादों का यह परिणाम है। मौजूदा समय में बबिता दिल्ली में सब इंस्पेक्टर पद पर तैनात हैं। राष्ट्रीय स्तर की रेसलर बबीता बताती हैं कि जब उन्होंने रेसलर बनने का सोचा तो उन्ही के ताऊजी मनीराम पहलवान ने उनके पिता प्रभुसिंह से कहा कि लड़कियों का क्षेत्र नहीं है, लड़की बिगड़ जाएगी, लेकिन पिता और मां शीला देवी के स्पोर्ट से उन्होंने अपने इस शौक को सुनहरे भविष्य में बदल डाला। वह कहती हैं कि पीठ पीछे गांव वाले उन्हें पागल कहा करते थे, लेकिन अब हाल यह है कि गांव के हर घर में उनकी मिसाल दी जाती है, हर बड़े समारोह में उनकी उपस्थिति अनिवार्य मानी जाती है। प्रत्येक ग्र्रामीण अपनी बेटी को बबीता बनते देखना चाहता है। गांव की लड़कियां कुश्ती में पारंगत करने के लिए गांव में लड़कियों के लिए प्रशिक्षण केंद्र खोलने की तैयारी में हैं।
पसंद है लड़कों की तरह पेट्रोल पंप पर काम करना: सेक्टर-41 स्थित लेफ्टिनेंट विजयंत मोटर्स पेट्रोल पंप पर  पेट्रोल भरने का काम करने वाली  19 वर्षीय शालू को अपना ये काम काफी पसंद है। उन्हें बड़ा अच्छा लगता है कि वह भी लड़कों की तरह आठ घंटे लगातार भारी नोजल पकड़कर पेट्रोल भरती हैं। वह बताती हैं कि पेट्रोल पंप पर ग्र्राहकों की गाडिय़ों में लड़कों को पेट्रोल भरते देख सोचा करती थी, क्या वह भी इन लड़कों की तरह ये काम कर सकती हैं। घर की माली हालत अच्छी नहीं थी और वह परिवार की आर्थिक मदद करना चाहती थी, 10 वीं पास शालू ने पेट्रोल पंप पर काम करने की ठान ली। वह बताती हैं कि अब उनके पड़ोस के लोग भी अपनी बेटियों को पेट्रोल पंप पर काम करने के लिए मना नहीं करते।
औरतों को सपर्पित एक औरत: समाजसेवी ऊषा ठाकुर का नाम उन शोषित और पीडि़त महिलाओं के लिए किसी मसीहा सरीखा है, जिन्हें उन्होंने नई जिंदगी दी है। निठारी कांड को उजागर करने का श्रेय इसी महिला को जाता है। वर्ष 2009 में उन्होंने 40 अंधी लड़कियों को माफिया से छुड़ाया। दहेज हत्या, घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओं, दुष्कर्म पीडि़ताओं की मदद को इस उम्र में भी वह तत्पर रहती है। वह कहती हैं कि उन्हें उनके काम करने पर कई बार धमकियां भी मिली, लेकिन शोषित और पीडि़तों के दर्द के आगे उनका ये परेशानी कुछ भी नहीं है। वह बताती हैं कि इन दिनों वह जिले से गुम हुए बच्चों पर काम कर रही हैं, गुम होने वाले 462 बच्चों में अधिक संख्या लड़कियों की है।
पक्के इरादों से सपने हुए साकार: दादी कहती हैं, लड़के झाड़ू नहीं लगाते, वह बर्तन भी नहीं मांजते, वह बाहर खेल सकते हैं, मुझे दादी बादाम नहीं देती, लेकिन सोनू भैय्या को रोज बादाम देती हैं,लेकिन क्यों ...25 वर्षीय प्रियंका आज भी जब अपनी डायरी में लिखे इन पुराने लम्हों को याद करती हैं, तो उसकी आंखों में आंसू छलक आते हैं। अपनी मेहनत के बल पर वह दिल्ली की एक मशहूर मैगजीन में काम कर रही है। वह बताती है कि संपन्न परिवार में पैदा होने के बाद भी एक लड़की होने का खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ा। पत्रकारिता का कोर्स करने के लिए अपनों से ही लड़ाई लडऩी पड़ी, लेकिन संतोष इस बात का है कि पक्के इरादों ने उनके सपने साकार कर दिए।
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रचना वर्मा

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