रविवार, अप्रैल 28, 2013

इस उजली तस्वीर में है स्याह भी बहुत कुछ





- 1952 के बाद जिले को नहीं मिली महिला विधायक
- पीएनडीटी एक्ट के तहत मात्र दो अल्ट्रासाउंड केंद्रों पर कार्रवाई
- बालिकाओं की संख्या में भी जिला पिछड़ा
- आधी आबादी साक्षरता में भी रह गई पीछे
संवाददाता,नोएडा: नारी सशक्तीकरण की एक उजली तस्वीर है आज का दौर, लेकिन इस तस्वीर में अभी भी ऐसे कई स्याह पहलू जिन्हें उजला किए बिना आधी आबादी को अपने अस्तिव की जंग जीतना मुश्किल लगता है। फिर चाहे वह शिक्षा देने के मामले में लड़कियों के साथ होता भेदभाव हो या फिर कन्या भ्रूण हत्या का भयावह सत्य।
 लिंगानुपात में प्रदेश में चौथा संवेदनशील जिला गौतमबुद्ध नगर:  भ्रूण हत्या में यूपी के 10 जिलों में गौतमबुद्धनगर चौथे स्थान पर है। यहां प्रति हजार लड़कों पर वर्ष 2011 में 852 लड़कियां है। एक हजार पुरुषों पर स्त्रियां 10 वर्ष पहले यह संख्या 841 थी।  वहीं 0-6 वर्ष के आयु वर्ग में भी जिला बदनाम है। यहां एक हजार लड़कों पर मात्र 845 बच्चियां है। साल 2011 की जनगणना में पश्चिमी यूपी का लिंगानुपात 908 से नीचे हैं। गौतम बुद्ध नगर यूपी के 71 जिलों में दूसरी बार लिंगानुपात में सबसे फिसड्डी रहा। लिंगानुपात का ये भारी अंतर कहता है, कहीं कुछ गड़बड़ तो जरूर है। पश्चिमी यूपी आने वाले समय में बेटियों को तरसेगा।
पीसीपीएनडीटी एक्ट का जिले में हाल: जन्म से पूर्व लिंग परीक्षण प्री कंस्पेशन एंड प्रीनेटल डाइगनोस्टिक एक्ट(पीसीपीएनडीटी) के तहत अपराध है, लेकिन पूरे प्रदेश में इस एक्ट का प्रभावी प्रयोग नहीं हो पाया है। यूपी में इसके तहत वर्ष 2002 से 2013 तक 57 कोर्ट केस रजिस्टर हुए। इसमें से केवल आठ का निपटारा हुआ, लेकिन सजा किसी को नहीं हुई। जिले में इस एक्ट के तहत वर्ष 2005 में सेक्टर-12 और 22 के अल्ट्रासाउंड केंद्रों का रजिस्ट्रेशन रद्द किया गया। ये केस अदालत में लंबित है।
जिले के अनाथ आश्रमों लड़कियों हैं अधिक: जिले के अनाथ आश्रम सबूत है कि लड़कियों को लेकर समाज की मानसिकता में अधिक बदलाव नहीं आया है। यहां रहने वाले बच्चों में लड़कियों की संख्या अधिक है। सेक्टर-12 स्थित साईं कृपा आश्रम के 42 बच्चों में केवल 14 ही लड़के हैं। सेक्टर-19 ग्र्रेस होम के 106 बच्चों में 60 फीसद लड़कियां हैं। सीडब्ल्यूसी के बालगृह में भी वर्ष 2011 में दो से चार महीने की तीन नवजात बच्चियां आईं।
पीएनडीटी एक्ट पर भारी सामाजिक भ्रांतियां : सुप्रीम कोर्ट में कन्या भ्रूण हत्या को लेकर पब्लिक इंटरस्ट में लिटिगेशन डालने वाली एडवोकेट कमलेश जैन कहती हैं कि हमारे समाज में बेटियों को लेकर इतने मिथ है कि मां बेटी को पैदा करने से पहले 10 बार सोचती है। पुत्र के पिता को मुखाग्नि देने से ही मोक्ष मिलता है, खानदान का नाम उसी से चलता है इस तरह के कई मिथ है। इस सदी में कंचकों को तरसती पीढ़ी अभी भी नहीं समझती की बेटियां सृष्टि के लिए कितनी जरूरी है। बेटा होने पर परिवार में मां का रूतबा बढऩे की परंपरा अभी भी कायम है। वह बताती है कि पीएनडीटी एक्ट को पीसीपीएनडीटी कर दिया गया, लेकिन अभी भी यह आइपीसी के बराबर प्रभावी नहीं हैं। ट्रायल के दौरान चिकित्सक को सस्पेंड नहीं किया जाता। सजा और जुर्माना भी कोई खास नहीं है अधिकतम तीन साल की सजा और जुर्माने के तौर पर कम से कम एक हजार से अधिकतम 50 हजार से कम ही जुर्माना होता है। अल्ट्रा साउंड केंद्र का पंजीकरण रद्द करने की कार्रवाई होती है,लेकिन उसमें काफी समय लगता है। इसके साथ ही जांच में जाने वाले चिकित्सकों को कोई सुरक्षा नहीं मिलती, इसलिए सेक्स डाइगनोज कराने वालों के हौसले बुलंद है। ़
राजनीतिक परिदृश्य में भी आधी आबादी हाशिए पर: जिले के राजनीतिक परिदृश्य में भी महिलाएं हाशिए पर है। फरवरी 2012 में हुए विधान सभा चुनावों में दादरी, जेवर और नोएडा विधान सभा सीट पर किसी भी राजनीतिक पार्टी ने महिलाओं को टिकट नहीं दिया। 62 नामांकनों में चार महिला प्रत्याशी मैदान में उतरी थी। जिले में 1952 में धूममानिकपुर से चुनी गई विधायक सत्यवती के बाद कोई महिला विधायक नहीं बनी। जिले से संसद के गलियारों तक भी कोई महिला नहीं पहुंच पाई।  
 औसत साक्षरता में पिछड़ी आधी आबादी: जिले में  10 वर्षों के अंतराल में विकास के काफी बड़े दौर तय किए,लेकिन एक चीज जो पीछे थी और पीछे ही रह गई। ये है 10 वर्षों में पुरूष और महिला के औसतन साक्षरता प्रतिशत। वर्ष 2001 में पुरुषों का साक्षरता फीसद 81.26 था तो महिलाओं का 57.70 और 2012 में पुरूष की साक्षरता दर बढ़कर 90.23 फीसद पहुंची, तो महिलाएं 72.78 पर आकर रूक गई।
 लड़कियों की शिक्षा में भी बदहाली: प्रदेश में 10 वीं के बाद स्कूल छोडऩे वाली छात्राओं की बढ़ती संख्या भी इसका प्रमाण है। 2010 में 15 लाख 48 हजार 405 छात्राओं ने 10 वीं में पंजीकरण करवाया, लेकिन मात्र 14 लाख 23 हजार 425 छात्राओं ने परीक्षा दी। इसमें 10 लाख 94 हजार 967 छात्राएं उत्तीर्ण हुई, लेकिन इनमें से 11 वीं कक्षा में नौ लाख 67 हजार 713 छात्राओं ने पंजीकरण कराया। माध्यमिक शिक्षा अभियान में सामने आया कि इनमें से एक लाख 27 हजार 254 छात्राओं ने 10 वीं के बाद पढ़ाई छोड़ दी। 11 वीं में पंजीकरण न करवाने का यह आंकड़ा भयावह है, यहीं हाल जिले में आठवीं के बाद स्कूल छोडऩे वाली लड़कियों का भी है। इससे जिले और प्रदेश में लड़कियों की शिक्षा पर भी सवालिया निशान लगता है।
असुरक्षा लड़कियों की शिक्षा में बाधक: जिलें में यूपी बोर्ड के सेकेंडरी और हायर सेकेंडरी के कुल 124 स्कूल हैं। इनमें दो सरकारी,  45 एडेड और 77 अनअडेड स्कूल है। इन स्कूलों में कम ही छात्राएं पहुंच पाती है। इसके पीछे एक बड़ा कारण है, इन स्कूलों का दूर-दराज होना। इससे गांव देहातों में रहने वाले अभिभावक लड़कियों को स्कूल नहीं भेजते। सरकार द्वारा लड़कियों को शिक्षा तक खींचने की 'कन्या विद्या धन और पढ़े बेटी -बढ़े बेटीÓ जैसी अच्छी योजनाओं पर ही असुरक्षा भारी पड़ती है।
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रचना वर्मा

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