बुधवार, मार्च 25, 2009

हिन्दुस्तान की परिपाटी रही है महिला पत्रकारों को अनदेखा करना

इन दिनों मीडिया जगत में हिन्दुस्तान खबरों की वजह से नहीं बल्कि दैनिक हिंदुस्तान, दिल्ली के वरिष्ठ स्थानीय संपादक प्रमोद जोशी द्वारा वरिष्ठ पत्रकार शैलबाला से दुर्व्यवहार किए जाने और एचटी मीडिया और प्रमोद जोशी के संयुक्त रूप से उनके और अन्य पत्रकारों पर मानहानि को लेकर चर्चा में बना हुआ है। यह तो शैलबाला जी थी जो उन्होंने आगे आकर अपने पर हुए अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने की हिम्मत की, लेकिन यहां मैं एक बात और बता देना चाहती हूं कि हिन्दुस्तान के एनसीआर के कार्यालयों में महिला पत्रकारों के साथ अभद्र व्यवहार होना आम बात है॥ फिर चाहे वह गाजियाबाद हो फरीदाबाद हो या॥ मजे की बात है की कई महिला पत्रकार संगठनों में महिलाओं की अगुवाई करने वाली दैनिक हिन्दुस्तान की संपादक मृणाल पांडे के नक्शे कदम पर ये हो रहा है॥ सम्मानित पत्रकारों में गिनी- जाने वाली संपादिका महोदय को संस्थान में क्षेत्रवाद से फुर्सत मिले तो तब कहीं जाकर वह इन मुद्दों पर ध्यान दे पाए। कभी मेरे लिए आर्दश रही मृणाल पांडे आज मुझे एक दंभी और बनावटी औरत से ज्यादा कुछ नहीं लगती, यहां मेरा यह बताना आवश्यक है कि
उनसे मेरा कोई व्यक्तिगत द्वेष नहीं है, लेकिन यह मेरा व्यक्तिगत अनुभव है कि उनके साथ काम करने वाली प्रत्येक महिला ने ऐसा ही अनुभव किया होगा, भले ही वह इसे सबके सामने प्रदर्शित करने से घबराती हों, लेकिन मेरी अंतरआत्मा मुझे ऐसा करने से नहीं रोकती, वह कहती है तुम कह डालो॥ नारी सरोकारो को दंभी और पांखड़ी लोगों के हाथों का खिलौना मत बनने दो... लगभग एक साल पहले ही बात है फरीदाबाद ब्यूरों में काम करते वक्त मेरे तत्कालीन ब्यूरो चीफ ने मुझे कई तरह से परेशान करना शुरू किया.. पहले तो मैं सहती रही॥ जब नहीं सहा गया तो मैं प्रतिरोध पर उतर आई, लेकिन मेरे ब्यूरो चीफ मुझसे कहते रहे कि मैं सही हूं और तुम नाहक ही मेरी कार्य प्रणाली में नुस्खे निकाल रही हो... जब उनका व्यवहार नहीं बदला तो मैंने सबसे पहले एनसीआर प्रभारी को इस बात की जानकारी दी, लेकिन वहां से भी मुझे कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला, इसके बाद मैंने वरिष्ठ स्थानीय संपादक प्रमोद जोशी को अपनी समस्या बताई, लेकिन कहते है ना कि चोर-चोर मौसेरे भाई... इतना ही नहीं मैंने उन्हें ये भी कहा कि आपकी भी बेटी है, कृप्या इस मामले को इस दृष्टि से देखने का प्रयास करें, लेकिन पत्रकारिता में इतने चिकने घड़े है कि गिनते -गिनते थक जाएंगे, लेकिन खत्म नहीं होंगे... मेरे मामले में ना कुछ होना था और ना हुआ, अंततः मैंने त्यागपत्र दे डाला, लेकिन मन में एक इच्छा थी की क्या मीडिया में काम करने वाली महिलाओं को ये सब सहना पड़ता है॥ इस ऊहापोह में जूझ ही रही थी कि मेरे एक सहयोगी ने मुझे मृणाल पांडे से मिलने की सलाह दी... बचपन से दूरदर्शन पर न्यूज एंकर के रूप में देखकर और शिवानी जी की पुत्री के रूप में उनकी बड़ी ही श्रद्धेय सी छवि मेरे मन में थी, बहरहाल उनसे मिलने उनके ईस्ट ऑफ कैलाश स्थित निवास पर पहंच गई। इस आस के साथ की वह मुझे सुनेगी और कम से कम अन्य महिला पत्रकारों को सहूलियत हो जाएगी, लेकिन उनसे मिलना किसी बुरे सपने से कम नहीं था, पर्दे पर और बाहरी दुनिया में जहीन और विनम्र दिखने वाली मृणाल पांडे दनदनाती हुई अपने आलीशान घर की सीढ़ीयों से जींस और टॉप पहने उतर रही थी॥ अंतिम सीढ़ी पर उनके पहंचते ही मैं उनके सामने अपनी बात रखने जा पहंची, लेकिन मेरी बात सुनना तो दूर उन्होंने मेरी तरफ देखना भी गंवारा नहीं किया॥लेकिन मैं भी अपनी बात कहने के लिए कृतसंकल्प होकर आई थी, इसलिए साथ ही उनके बड़ी सी आलीशान गाड़ी की तरफ मैं भी चल पड़ी... परेशानी है तो नौकरी छोड़ दो॥ मैडम मैंने नौकरी छोड़ दी है॥ प्रमोद जोशी से जाकर ऑफिस में मिलों, मुझे इससे कोई मतलब नहीं है। धड़ाक से कार का दरवाजा बंद होता और मेरे नजरों के सामने मेरे बचपन की आर्दश रही मृणाल पांडे तानाशाह की तरह गुजर जाती है...उनके इस दंभी व्यवहार ने मुझे एक बात सीखा दी कि जब -तक किसी से मिल ना लो उसे आर्दश मत बनाओ॥यह तो रही मेरी बात लेकिन हिन्दुस्तान के ही सहयोगियों ने मुझे बताया कि दिल्ली में कार्यरत महिला पत्रकार नरगिस हुसैन ने उनसे अपनी गर्भावस्था के दौरान छुट्टी मांगी तो उन्होंने उसके मुंह पर इतनी जोर से अखबार पटक कर मारा, हालांकि यह मेरी आंखों देखी घटना नहीं है, लेकिन एनसीआर प्रभारी रही इरा झा के साथ भी उन्होंने कुछ ऐसा ही व्यवहार किया और प्रमोद जोशी को शह देती रहे। मैं इस बात के विश्वास से नहीं कह सकती, लेकिन इतना सुना है कि प्रमोद जोशी उनके दूर के भाई लगते है॥ ऐसे भाई -भतीजावाद निभाने वाले लोगों को पत्रकार नहीं कहा जा सकता वो भी वरिष्ठ पत्रकार की पदवी॥न तो मृणाल पांडे को महिला संगठनों की अगुवाई करने का हक है और ना किसी समसामयिक विषय और राजनीति पर लेख लिखने का॥ वह तो हिन्दुस्तान में एक महिला डॉन की तरह पदासीन है और उनके गुर्गे ॥ इससे मुझे याद आया कि गाजियाबाद में भी एक महिला पत्रकार के साथ भी ऐसा अभद्र व्यवहार हुआ॥ जब उन्होंने इसकी शिकायत मृणाल जी के पंसदीदा दांए हाथ से की तो उसे मदद मिलने की बजाए॥संस्थान से बाहर निकाल देने की धमकी दी गई...चलो मृणाल जी को छोड़ भी दे तो महिला सांसद और हिन्दुस्तान की मालकिन शोभना भरतिया की समझ पर क्या पत्थर पड़ गए है जो वह इन मामलों में निष्पक्ष नहीं हो पा रही है... हिन्दुस्तान के लिए तो केवल यही कहा जा सकता है कि "अंजामें गुलिस्ता क्या होगा॥ जब हर शाख पर उल्लू बैठा है"

26 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

Hindustan Dainik ke bare mein jo likha gaya he, yeh ek ladki ka aisa dusahas hai, jo har kisi mein nahin hota. JO chetravaad Hindustan phela raha hai, yeh tey hai ki isse ek din usi ko do char hona padega. Mahila patrkaron ke saath jo durvyavhar Hindustan mein hota hai aur jis mansik isthiti se vo gujarati hein, uska aasani se andaja lagaya jaa sakta hai. Hindustan mein do chehre lagaye jo log hein, bhale hi veh kitne bade vidwan sahi, lakin yeh na bhulen Ishwar ki laathi mein Aawaj nahin hoti.

Ek Pratadit

बेनामी ने कहा…

रचना जी, इतने साहस के साथ सब कुछ साफ साफ और सच सच लिखने के लिए आपको बधाई। आप जैसी साहसी पत्रकार अगर हों तो इन बड़े लोगों की बुद्धि ठिकाने लगने में ज्यादा दिन नहीं लगेंगे। आपने अपने दिल की बात लिखकर हिम्मत का काम किया है।
विनोद कुमार

सुशील छौक्कर ने कहा…

आपका ये लेख पढकर तुरंत ही मुझे अनुराग जी वो कमेंट याद आ गया जो उन्होंने कभी मेरी पोस्ट पर दिया था।
"एक नोबेल पुरूस्कार प्राप्त कवि ने भी कभी कहा था की कवि से मत मिलो वरना उसकी कविता से शायद इतना प्यार ना कर पायोगे"

खैर आप जैसा घक्का हमें भी लगा। आपकी आप बीती पढकर।

बवाल ने कहा…

एक्दम सही फ़रमाती हैं आप मगर हमारे ब्ला॓गजगत में ऐसा नहीं है जी। बढ़िया लेख लिखा आपने।

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } ने कहा…

भारत मे अखवारो के मालिक और संपादको से ज्यादा कोई ताकतवर नहीं

sarita argarey ने कहा…

महिला पत्रकारों की पूरे देश में कमोबेश यही स्थिति है । पुरुषों के वर्चस्व वाले इस पेशे में अपने को साबित करने के लिये हज़ार गुना ज़्यादा मेहनत करना पडती है । उसके बावजूद उन्हें डेस्क वर्क के लायक ही समझा जाता है ।

बेनामी ने कहा…

Rachna! sach kahne ka adamya sahas dikhakar aapne mere dil ka bojh halka kar diya hai..

aapka lekh padhne se pahle main tanav men tha..

बेनामी ने कहा…

mujhe aapse poori hamdardi hai, aapki baat apni jagah poori tarah sahi hai, magar, jaisa ki aapne likha hia ki "JAB TAK SAMNE WALE SE NA MILO USE APNA AADARSH MAT SAMAJHO",usi tarah aapki baton par kaise bharosha kiya ja sakata hai, firbhi mai aap per bharosha karta hoon, aapki himmat ki dat deta hoon. kam se kam aapne likhne ki himmat to jutai, lekin mai aaj tak aisa nahi kar ska, ho sakata hai ki aapke kadam se mujhe bhi kuchh prerna mile. Aameen!

dharmendra ने कहा…

adamya sahas. ise kahte hai kalam ki taqat. insan jab bade pado par baith jata hai to wah n to purush hota hai aur n aurat. wah hota hai pandey jaisi don. jo apne adhin kam karne wale ko makhi samajh kar nikal deta hai. pandey kitni aasani se kah deti hai naukri chor do. agar use bhartiya kah de ke tum naukri chor do to uske liye n jamin hogi aur n aasman.
dharampratima.

aditya ने कहा…

दिखाने और खाने के दांत अलग-अलग
एक कहावत मुझे याद आता है कि हाथी के दांत दिखने के अलग और खाने के अलग हैं। रचना का ब्लॉग पढ़कर मुझे बेहद निराशा हुई है। सदियों पुरानी परम्परा चली आ रही है। महिला कि दुश्मन महिला। अब देखिये न एक जमाने में सास को बहु से बेटा नहीं मिला तो वह बहु हुई खलनायक । यानि महिला कि दुश्मन महिला हुई। रचना , मैं कहना चाहता हूँ कि मृणाल पाण्डेय से कोई उम्मीद रखने कि जरूरत नहीं हैं। ये लोग आलीशान महलों में रहकर महिलाओं कि समस्याएँ सुलझाती हैं। वातानुकूलित कक्ष में बैठकर बातें करना आसान है। लेकिन धरातल पर ऐसे लोग तुंरत एक्सपोज हो जातें हैं। मुझे अच्छा लगा कि आप भड़ास के माध्यम से अपनी आवाज बुलंद कर रहीं हैं। कम से कम लोगों को खासकर युवाओं को यह जानकारी तो मिले कि मीडिया के क्षेत्र में कितना भाई-भतीजावाद होता है।

बेनामी ने कहा…

kafi bebaak likha hai. waise bhi sach se kabhi darna nahi chahiye.. aur jhuth ko sahna nahi chahiye.. ek belag blog ke liye badhai....

vijay srivastava ने कहा…

rachna ji, aapne jo likha hai woh nishchit taur par dussahas hi hai. lekin yeh bhi sach hai aapki pratibha ki badaulat ek adad naukri ki mohtaz aap nahi rahi. warna adhiktar log to naukri gawane ke dar se har kuchh sehte rehte hain. mrinal ji ki woh chhavi nai nahi hai. mere jaise kai logon ne sun rakha hai. aap aisi hi patrakarita karti rahen. vishwas karen aapki aawaz nakkarkhane me tooti nahi banegi, mere jaise anek patrakar aapke sath hain. vijay srivastava, e tv news, darbhanga, bihar.

Unknown ने कहा…

rachna, kaphi sahi aur sacha likha hai. pahle tumhare baare men suna hi tha, lekin ab dileri dekh bhi li. kavi hone ke naate itna hi kahunga k khamosh hum rahe to pahal kaun karega, ujre chaman men pherbadal kaun karega, prashno ke paksh men agar chale gaye jo hum, uttar ki samsyaon ko hal kaun karega. jidaari ke liye badhai. chetan

Aligarh Media Desk ने कहा…

aapni jami aapna aasma,,,,,,,,,,,,,,ko likhane vali Rachana Varma ji ne jo l;ikha he vo 100% such hi nahi apitu media aur PRESS ke ghinoune chahre ko dikhane ke liye kafi he,,,,,,,,,lekin jis media aur press ko hamne jitani tagat di he usee takat se media me feilee es gandigi ko safh karne kee pahal karnee hogi.aaj media me lardio ko hi nahi larko ka shosan kiya ja raha he hum chahkar bhi na jane kya kuchh kar nahi pa rahe he? -------PRAWEEN KUMAR (REPORTER)
CNEB NEWS, ALIGARH UP
MOB-09219129243
E-MAIL:aligarhnews@gmail.com

चण्डीदत्त शुक्ल-8824696345 ने कहा…

सुंदर लिखती हैं आप...मार्मिक और ख़ूब ख़ूबसूरत...मैं केवल इस पोस्ट की बात नहीं कर रहा, ये तो स्त्री होने का मुआवजा चुकाने जैसा ही है पर पूरा ब्लाग काफी सधा और संतुलित है...बधाई

मनोज द्विवेदी ने कहा…

Bebaki se apni bat rakhane ke liye badhai...apne bilkul sahi farmaya hai ki kisi se bina mile apna adarsh nahi banana chahiye..main apne jivan me is formule ko jarur follow karunga..

बेनामी ने कहा…

rachna tumne jo likha hai vo sach ho sakta hai, lekin kshetrwad wali baat mani jaye to mrinal pandey or pramod joshi bhi tumhari tarh pahar ke basinde hain.fir to unhe tumhari bhi madad karne se kaise mana kar diya,unhe tumhari madad sabse pehle karni chahiye thi.

बेनामी ने कहा…

rachna tumne jo likha hai vo sach ho sakta hai, lekin kshetrwad wali baat mani jaye to mrinal pandey or pramod joshi bhi tumhari tarh pahar ke basinde hain.fir to unhe tumhari bhi madad karne se kaise mana kar diya,unhe tumhari madad sabse pehle karni chahiye thi.

विधुल्लता ने कहा…

प्रिय रचना,मैं तुम्हारे सच ,तुम्हारी हिम्मत,से अभिभूत हूँ ,तुमने जल्द ही सही निर्णय लिया तुम्हारा दुःख सही है और बात जायज...मैंने देखा है जो लोग तुम्हारी होंसला अप्फ्जाई कर रहें हैं टिपण्णी से उनमें चार तो बेनामी है ...इस लिए ये जान लो विद्रोह करोगी तो आस-पास से उम्मीद नही रखना..शब्दों के पुलाव बनाने वाले बहुतेरे मिलेंगे...एक बात भली लगी की जब तक किसी से मिल ना लो उसे अपना आदर्श मत बनाओ,...ये अनुभव ही काम आयेगा जिन्दगी मैं ..बड़ी लकीर तो खींचना ही पड़ेगी ...आज जो वहां है कल भी होगा ये तो निश्चित नही है ना,ये मोड़ हर महिला पत्रकार की जिन्दगी मैं आता है ...तुम एक स्वाभिमानी पत्रकार की हेसियत से आगे काम करो बहुत से ऑप्शन हैं ...तहलका से जुड़ जाओ....और मेरे साथ, नेटवर्क ऑफ़ वूमेन इन मीडिया ,इंडिया ....से भी सभी महिलायें एक सी नही होती.हम लोग देश भर और बाहर भी काम कर रहें हैं ...यूरोप जैसी कंट्री मैं भी ...ये सब लगातार हो रहा है ...जिनके खिलाफ आवाजें आरही हैं ..संगठन लाम बढ़ होकर काम कर रहें हैं...हमारे साथ तुम्हे अच्छा लगेगा ,,यहाँ कोई अध्यक्ष नही, जो जहाँ है महत्वपूर्ण है

बेनामी ने कहा…

Hindustan Lucknow mein 3 varsh kaam karne ka avasar mila.
Wahan bhi Mrinalji ke relative Naveen Joshi all powerfull hein. Raat Aur Din kaam karne wale aadmi ka khoon chuuse kar bahar kar diya jata he.
Sunil

बेनामी ने कहा…

Udane ko Pankh Chahiye
Rahne ko Zamin chahiye
Rone ko ashk chahiye
Likhne ko Kalam chahiye
Magar
Apni Zamin Apna Aasman ko
Rachna chahiye

Hum sab ka maksad kisi ke samman ko tthes pahuchana nahi hai, balki us vichardhara ka purjoor tarike se virodh karna hai jo humare samaj ko dishahin bana raha hai.

Rachna ji, aap imandari se apna kaam karte jaiye, qki aap janti hi hain ki ugate suraj ko sabhi naman karte hain. Waqt ki mar se koi nahi bach pata hai.Bhagwan par bharosa rakhen.

Vikas

बेनामी ने कहा…

यह केवल हिन्दुस्तान अखबार की बात नहीं। कुछ अंग्रेजी अखबार और पत्रिकाओं को छोड़ दे तो लगभग सभी हिन्दी अखबारों में यही स्थिति है। इस बात में कोई दो मत नहीं कि इस पुरूष प्रधान वाले क्षेत्र में प्रगति करती महिलाओं को आसानी से पचा पाना बहुत मुश्किल है। महिला होने के साथ-साथ यदि पिता भाई या कोई ऱिश्तेदार मीडिया क्षेत्र में हो तो फिर योग्यता कोई मायने नहीं रखती। फिर चाहे आप दर्जी का काम करती हो, कपड़े बेचती हो, एक वाक्य सही सही लिखने की काबिलियत भी नहीं रखती हो लेकिन आपके लिए आगे बढ़ना कोई बड़ी बात नहीं। जैसा कि हिन्दुस्तान अखबार के रांची, पटना और अन्य कार्यालयों में होता रहता है। इन जगहों में तो स्थिति यह है कि एक महिला पत्रकार पिछले चार-पांच साल से काम कर रही है लेकिन उसका वेतन 1500 से शुरू होकर पांच साल बाद भी 2000 तक नहीं पहुंचा है। लेकिन जिनको पत्रकारिता का प भी मालूम नहीं वो हिन्दुस्तान अखबार में स्टाफर बनकर पत्रकारिता जगत की सेवा न कर उसकी सेवा लेने का काम कर रही है। वैसे महिलाओं के नाम पर अपना बाजार चलाने वाले मृणाल पांडे सरीखे लोगों की इस देश में कोई कमी नहीं। इसलिए उनके इस रवैय्ये को देखकर जो आपके साथ हुआ मुझे कोई हैरानी नहीं होती। लेकिन एक बात यह भी है कि मीडिया जगत के लोग अपनी पुरुषवादी मानसिकता के अभिभूत होकर चाहे कितनी ही महिलाओं को दबा लें लेकिन दर्जी को पत्रकार नहीं बना सकते और न ही उनके सामने अपनी कामयाबी का परचम लहरा सकते है क्योंकि तब तो स्थिति वहीं होगी जो अंधों में काने राजा की होती है।

बेनामी ने कहा…

is himmat ke liye badhai lekin kuchch namm gol kyon kar diye

Naveen ने कहा…

Really admire you.

arjun sharma ने कहा…

Rachna ji.
Apne bebaki se apni baat kahi hai, acha laga. mera manna hai ki jo mitti hal se apna seena rounde jane se ghabrati ho vo kabhi annaj paida nahi kar sakti. jo pathar cheiny-hathodhe ki chot se darta ho wo kabhi moorat nahi ban sakta. Jeewan ka anubhaw her sheter main sangharsh ke bina nahi aata. aap jaisi jeewat wali ladki ne compromise nahin kiya to aapko apne mahila hone ke karan hui preshani ka anubhaw hua hai. jabki compromise karne wali ladkian kitne talented ladkon ke raste main deewar ban jati hain, aisi udahrnon ka bhi itihaas hai. Asal main yeh ladayi mahila ya purush ki nahi hai. haqiqat yeh hai ki har profeesion main kude-kabarh ka dabdaba hai. is mahoul main unka tanter talented ko tikne nahi deta. yeh nalaykon ke jhund se akele pade layak admi ki vyatha hai jise ultimetly vyavstha se harna padhta hai
Arjun Sharma

Vinod Varshney, Former Chief of News Bureau, Hindustan ने कहा…

I congratulate Rachna for showing courage to expose the true character of Mrinal Pande. I keep on hearing such things from so many, but putting them in black and white demand character and courage both. I wish you succeed in your social work and writing.