रचनात्मकता नियमों में बंधी है क्या
रचनात्मकता किसी समय और लेखनी के नियम नहीं मानती... वो तो जब -तब खुद ही कागज पर आकर शब्दों की शक्ल ले लेती है. मेरी इन दो पंक्तियों के साथ भी ऐसा ही कुछ है..मेरे लाख चाहने के बाद भी मैं इन्हें छंद और लय में आगे बढ़ने मैं खुद को असमर्थ पा रही हूँ ...फिर भी आगे बढ़ने की कोशिश की है...
किस मोड़ पर लाकर छोड़ा है। जीवन एक बिछोड़ा है।
पल-पल ऐसा तोड़ा है, हंसी को जैसे जोड़ा है।
अल्हड स्वपन सलोने मन के आने से भी है अब कतराते ..
आंसू दर्द से होड़ लगाते ..हम फिर भी है सह जाते
2 टिप्पणियां:
matla to badiya hai... ghazal poori kab aa rahi hai
bahut badhiya..aage badhaayeeye...
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