- बचपन को स्याह बनाने वालों के खिलाफ मिलकर चलाएं मुहिम
- स्कूल के साथ अभिभावक भी रहें सचेत और जागरूक
- बचपन की अल्हड़ हंसी कायम रहे, इसके लिए बच्चे को भी दे जानकारी
रचना वर्मा,नोएडा: ''मेरी मासूमियत से तुम क्यों खेलते हो, मेरे बचपन का अल्हड़पन स्याह अंधेरों में क्योंकर धकेलते हो, बचपन के इस मासूम दौर से क्या तुम नहीं गुजरे, जो अब उस पर ही बुरी नीयत रखते हो, बचपन का ये अल्हड़पन समाज में मौजूद कुछ हैवानों की वजह से ताउम्र का सदमा झेलने को बेबस हो जाता है। स्कूली बसों में बच्चों के साथ यौनाचार के मामले सोचने पर मजबूर करते हैं कि घर से बाहर ये नन्ही सी जानें कितनी महफूज है। शुक्रवार को गाजियाबाद में स्कूल बस के चालक और क्लीनर की करतूत से महज 6 साल की नन्हीं बच्ची का बचपन खौफ बन गया वहीं दिल्ली में तीन साल के एक मासूम बच्चे का बचपन स्कूल कैब के चालक की हैवानियत की भेंट चढ़ गया। सुरक्षित रहे आपके और हमारे बच्चे इस दिशा में आपको और हमको मिलकर सार्थक प्रयास करने होंगे।
सुरक्षा का माहौल खुद ही पैदा करना होगा: घर परिवार के अंदर भी बच्चों के साथ यौनाचार के मामले नए नहीं है, घर से बाहर बच्चों के साथ इस तरह के हादसों से इंकार नहीं किया जा सकता। यूनिसेफ और दिल्ली के एनजीओ सेव दि चिल्ड्रन के सहयोग से महिला और बाल विकास मंत्रालय द्वारा करवाई गई स्टडी इसका प्रमाण है। स्टडी बताती है कि केवल लड़कियां ही नहीं लड़के भी चाइल्ड एब्यूज के बराबर पीडि़त होते हैं। बच्चों के सेक्सुएल एब्यूजर्स में 50 फीसद विश्वासपात्र और परिचित ही होते हैं। अधिकांश बच्चे इस बात की शिकायत नहीं कर पाते हैं। 53.22 फीसद बच्चे कई तरह के सेक्सुएल एब्यूज झेलते हैं। इनमें 21.90 फीसद बच्चे गंभीर 50.76 अन्य तरह के सेक्सुएल एब्यूज के शिकार बनते हैं। 5.69 फीसद बच्चों पर सेक्सुएल हमले होते हैं। आंध्र प्रदेश, असम, बिहार और दिल्ली में बच्चों को सेक्सुएल एब्यूज के मामलों का प्रतिशत सबसे अधिक और इन प्रदेशों में बच्चों पर सेक्सुएल हमले का प्रतिशत भी अन्य राज्यों से अधिक है। इनमें कामकाजी, स्ट्रीट चिल्ड्रेन के और इंस्टीट्यूशनल केयर में सेक्सुएल एब्यूज का सामना करते हैं। मंत्रालय ने बाल अपराधों के खिलाफ ड्राफ्ट और बाल अधिकारों के प्रोटेक्शन के लिए नेशनल और स्टेट कमीशन के गठन को लेकर अच्छे कदम उठाए, लेकिन इसे प्रभावी बनाने के लिए सरकार के साथ सिविल सोसायटी, कम्युनिटी सबको एक मंच पर आकर काम करना होगा।
सुरक्षित तो कोई जगह नहीं, जवाबदेही,सर्तकता जरूरी :बच्चों के साथ यौनाचार के बढ़ते मामलों को देखा जाए तो कोई भी जगह सुरक्षित नहीं है, चाहे फिर सड़क हो या बस, लेकिन जागरूकता से मासूमों के साथ हो रही इस खिलवाड़ को रोका जा सकता है। स्कूल बसों में बच्चों के साथ बस में बैठे अंतिम बच्चे के उतरने तक स्कूल के शिक्षक या जवाबदेह स्टाफ का होना जरूरी है। उधर सड़कों पर दौडऩे वाली स्कूली वैन में बच्चों के साथ ऐसा कोई जवाबदेह शख्स हो ये कम ही होता है। ऐसे में स्कूल की जिम्मेदारी बनती है कि परखे हुए पुरूष या महिला स्टाफ को ही स्कूल बस ड्यूटी में शामिल करें। वैन में बच्चों को स्कूल भेजने वाले अभिभावकों को भी वैन चालकों के आचार, व्यवहार और विचार का गहन अध्ययन और जांच- पड़ताल के बाद ही इसे लगाना चाहिए।
वरिष्ठ छात्रों को शामिल करें मॉनिटरिंग में: समरविल स्कूल की प्रधानाचार्य एन अरूल राज कहती हैं कि उनका पूरा प्रयास रहता है कि स्कूल बस के प्रत्येक छात्र की सुरक्षा सुनिश्चित करें। इसके लिए एक शिक्षक हमेशा ड्यूटी पर रहता है, इसमें कोशिश होती है कि महिला शिक्षिका ही हो। उन्होंने स्कूल के सीनियर छात्रों को भी ऐसा प्रशिक्षण दे रखा है कि वह बस में अलर्ट रहें और अपना और जूनियर का ध्यान रखें। नेहरू इंटरनेशनल स्कूल की प्रधानाचार्य अलीना दयाल कहती हैं कि हमारे यहां स्कूल बस में शिक्षक शुरू से लेकर अंत तक रहती है। उनका मानना है कि स्कूलों को बाहर से बस हायर ही नहीं करनी चाहिए,जरूरत पडऩे पर हायर करनी भी पड़े तो कंडक्टर और ड्राइवर का पूरा वेरिफिकेशन करें। स्कूल के साथ ही अभिभावक भी सुनिश्चित करें कि उनका बच्चा अकेला न उतरे, विशेषकर छोटे बच्चे। ऐसा होने पर तुरंत स्कूल को सूचित करें। इसके साथ ही ड्राइवर और क्लीनर के हाव-भाव पर संदेह होने पर भी स्कूल में बताएं।
सकते और डर के साए में अभिभावक: सेक्टर-19 निवासी हरिता का कहना है कि इस तरह के हादसे सदमे में डालने वाले हैं। स्कूल और अभिभावकों को सचेत रहना चाहिए। स्कूल के साथ ही अभिभावकों को भी बच्चों को हैंडल करने वाले स्टाफ पर पैनी नजर रखनी चाहिए। सावधानी और सर्तकता ही नन्हे बच्चों के बचाव का रास्ता है। उनका कहना है कि असावधानी स्कूलों व अभिभावकों दोनों से हो सकती हैं। कई बार शिक्षक तो कई बार अभिभावकों की लापरवाही से इस तरह की घटनाएं होती हैं।
स्कूलों से अपील ध्यान से करें स्टाफ का चुनाव: एसएसपी प्रïवीण कुमार का कहना है कि इस तरह की घटनाएं न हो, इसके लिए वह जिले के स्कूलों से अपील करते हैं कि स्कूल स्टाफ का चुनाव ध्यान से करें। स्कूली बस में चलने वाले स्टाफ पर लगातार नजर रखें। इसके साथ ही बस के ड्राइवर और कंडक्टर की जानकारी लोकल पुलिस स्टेशन में जरूर दे।
ताकि हंसता-मुस्कुराता रहे बचपन:
- स्कूलों को छात्रों को लाने ले जाने वाली वैन प्रतिबंधित करनी चाहिए, क्योंकि इनकी जवाबदेही स्कूल नहीं लेता। इसमें छात्रों की सुरक्षा के लिए कोई व्यवस्था नहीं होती।
- अभिभावकों को बच्चे का दाखिला कम दूरी के स्कूल में कराना चाहिए। जहां से वह स्वंय जाकर बच्चों को ला सकें। स्कूल दूर होने पर सुनिश्चित करें बच्चे के लिए स्कूली बस लें हायर वैन या बस नहीं।
- बच्चे को लोगों के गलत हाव-भाव, गलत इशारों और व्यवहार के बारे में बताएं, ताकि ऐसा होने पर वह तुरंत बता सकें। घर का और परिचित का फोन नंबर बच्चे को याद कराएं, ताकि वह दूसरे को बता कर तुरंत घर संपर्क कर सकें।
- समय-समय पर बच्चे की स्कूल बस में जाकर स्टाफ पर नजर रखें, आपत्तिजनक व्यवहार होने पर स्कूल को सूचित करें।
- कोशिश करें कि बच्चे को संकोची न बनाएं। उसकी शिक्षकों से समय-समय पर जानकारी लेते रहें।
- बच्चे के लगातार गुमसुम रहने और असामान्य व्यवहार को नजरअंदाज न करें। इस तरह की अनहोनी होने पर बच्चों को सहज करने के पूरे प्रयास करें हो सकें तो काउंसलर के पास ले जाएं।
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रचना वर्मा
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