- वैलेंटाइन पर यादें फिर मुस्कुराई
- प्रेम अजर, अमर है कोई दीवार कोई परिस्थिति उसे नहीं तोड़ पाई
- एक तरफा नहीं दो तरफा होता है ये अहसास
' नर्म अहसासों की जुबां पढ़ लेती है खामोश आंखों में इश्क का अफसाना, दिलों के मुल्क में बस इश्क का मजहब चलता है.. कुछ इस तरह इश्क करने वाले दुनियावी बातों से दूर दिल की बस्ती बसाने के लिए हर हद से गुजर जाते हैं। हर सदी में हर दौर में इनके फसाने अमर हो जाते हैं,उनका इश्क वैलेंटाइन डे का मोहताज नहीं होता, पर इस विशेष दिन में उनकी यादें जरूर ताजा कर देता है। शहर में भी कुछ ऐसे ही इश्क के इबादतगार है, जिनकी जिंदगी के इस खूबसूरत लम्हे को इस समय याद करना लाजिमी हो जाता है।
इश्क केवल और केवल इश्क समझता है: गुडिय़ा और सोनू की खुशहाल विवाहित जिंदगी को देख भले ही लोग मिसाल देते हो, लेकिन इश्क की इस शमां को जलाए रखने के लिए दोनों ने तूफानों के दौर भी झेले हैं। गुडिय़ा मुस्लिम और सोनू हिंदू परिवार से ताल्लुक रखते हैं। जुलाई 2002 में नोएडा के डिग्र्री कॉलेज की सीढिय़ों पर फॉर्म भर रही गुडिय़ा को सोनू ने फॉर्म भरना सिखाया, लेकिन दोनों की नहीं पता था कि ये फॉर्म ही उनकी जिंदगी का इश्क के स्कूल में दाखिला करा देगा। इसके बाद कोई मुलाकात नहीं और बात नहीं, लेकिन नवंबर में कॉलेज परिसर में दोनों एक बार फिर मिलते हैं, औपचारिक अभिवादन के बाद दोनों फिर अपने रास्ते चल दिए, लेकिन कहते है न कि इश्क का अहसास जब दोनों तरफ से हो तो कायनात भी दो प्रेमियों को मिलाने के सारे बंदोबस्त कर देती हैं। सोनू बताते है कि गुडिय़ा ने उन्हें लैंड लाइन फोन पर शाम 5.30 बजे प्रपोज किया था। दोनों ने अपनी चाहत को अंजाम तक पहुंचाना चाहा, लेकिन वहीं मजहब की दीवार आगे खड़ी थी। सोनू के परिवार ने उनकी शादी का पुरजोर विरोध किया, लेकिन उन्होंने गुडिय़ा से वादा किया था कि एक सप्ताह के अंदर वह उससे विवाह करेंगे। सोनू ने अपना घर छोड़ दिया और गुडिय़ा को लेकर किराए के एक मकान में आ गए। वर्ष 2008 में दोनों ने शादी कर ली। उनके घर में खुशी यानी उनकी बेटी आने वाली थी। अंतत: सोनू के परिवार ने भी उन्हें अपना लिया। सोनू और गुडिय़ा का मानना है कि चाहत एक तरफा होती है, लेकिन प्यार दो तरफा होता है और जब ये होता है तो कोई दीवार इसके आगे नहीं टिकती।
जिंदगी की तूफानों में रहती है इश्क की लौ रोशन: सेक्टर-40 निवासी इस दंपत्ति को भले ही लोग सहानुभूति की निगाहों से देखते हो, लेकिन कोई इनसे पूछे कि कैसे कठिन परिस्थितियों में भी अपने इश्क लौ जगाए हुए हैं। आज से पांच वर्ष पहले टैडी डे पर निशा को राजीव का दिया पिंक कलर का टैडी उनके कमरे में प्यार के अहसास को जगाए रखता है। दोनों के विवाह को 12 वर्ष हो गए हैं, लेकिन शादी को तीन वर्षों बाद ही निशा लकवाग्र्रस्त हो गईं। प्रेम के बंधन से विवाह में बंधे राजीव को कई लोगों ने दूसरे विवाह की सलाह दे डाली, लेकिन राजीव की सांसों में निशा का प्यार ही धड़कता है। वह इस खतरनाक बीमारी में भी निशा को छोटेच्बच्चे की तरह संभालते हैं। राजीव कहते है कि प्रेम परिस्थितियों के साथ नहीं बदलता, वह तो होता है और अजर अमर रहता है।
----------------------
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें