बुधवार, फ़रवरी 13, 2013

मासूमियत का दौर स्याह अंधेरों में गुम न हो जाए


मासूमियत का दौर स्याह अंधेरों में गुम न हो जाएं
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बच्चों को यौन शोषण और हिंसा बचाव के लिए चुप्पी तोड़े
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दिल्ली एनसीआर के बच्चे हो रहे यौन शोषण का शिकार 
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लड़कियों और लड़कों में यौन शोषण का बराबर है स्तर 

बचपन का मासूम दौर कच्ची मिट्टी सरीखा होता है, इस कच्ची मिट्टी में जरा सी ठेस लग जाएं तो ताउम्र उसकी टीस सालती रहती है। बचपन में यौन हिंसा और शोषण के शिकार हुए बच्चों के लिए ये दर्द उनकी जिंदगी में नासूर की तरह चुभता है। 40 वर्ष की मनु की आंखों में किशोरवय का वह दौर आज भी आंसू और दहशत ला देता है, उस घिनौने स्पर्श का अहसास उन्हें चैन नहीं लेने देता। मनु जैसे जाने कितने ही बच्चे होते हैं जो बचपन में यौन हिंसा का शिकार होते हैं और ताउम्र उसका दर्द झेलने को मजबूर। दिल्ली -एनसीआर में काम कर रहे एक एनजीओ और चाइल्ड लाइन के  आंकड़े चौकाने वाले है। इस क्षेत्र में आर्थिक रूप से कमजोर और शोषित वर्ग में बच्चों का यौन शोषण बड़ी समस्या है। मासूमियत का ये दौर यौन हिंसा और शोषण से जिंदगी का स्याह दौर न बने इस दिशा में जागरूकता बेहद जरूरी है।
हमने-तुमने भी कहीं न कहीं झेला है वह अनचाहा स्पर्श: शर्म हया और समाज का डर समाज को जीने लायक बनाता है, लेकिन कुछ मामलों में यहीं चीजें इंसान की जिंदगी में कड़वा जहर घोल डालती है। उच्च वर्गीय सेक्टर- 15 निवासी 40 वर्षीय मनु और 42 वर्षीय मीना के लिए अधेड़ उम्र में पहुंच कर भी उनके बचपन में हुए यौन शोषण का दौर भयानक स्वप्न बन लौट-लौट आता है। मनु बताती हैं कि उन्हें ट्यूशन पढ़ाने आने वाला ट्यूटर उन्हें गलत तरीके से छूता था। उनके परिवार में उस ट्यूटर का इतना आदर था कि वह कुछ कह नहीं पाई। आज भी उनके घर में वह उसी आदर से आता जाता है। मीना के चाचा बचपन में उससे ओरल सेक्स करते रहें और वह मर-मर के जीती रही। उनका कहना है कि दिल्ली सामूहिक दुष्कर्म कांड के बाद उनमें हिम्मत बंधी और उन्होंने इस बात को अपनी सहेली से साझा किया। वह आज 33 वर्ष के है,लेकिन पढ़ाई के लिए रिश्तेदार के यहां रहते हुए यौन शोषण का दौर याद कर उनकी रूह कांप उठती है। ये लोग ही क्यों ऐसे कई लोग है, जो बचपन में ये सब झेलते है और जवानी से लेकर बुढ़ापे तक इस सदमे को सहते हैं।
रूला डालेगी इन बच्चों की दास्तां :
चुप्पी तोड़ो एनजीओ के दिल्ली -एनसीआर के स्लम इलाकों और गांवों में बाल यौन शोषण और हिंसा के खिलाफ चलाए गए अभियान के तहत बच्चों के मुंह से कई चौकाने वाले तथ्य सामने आए। नोएडा में सेक्टर-41 और 135 के इलाकों में आर्थिक रूप से कमजोर और शोषित वर्ग के बच्चों ने आपबीती सुनकर कोई भी संवेदनशील इंसान आहत हुए बिना नहीं रहेगा। पहचान गुप्त रखने के लिए बच्चों के नाम बदल दिए गए हैं। 11 वर्ष के राम की आपबीती ' वह मुझे बेल्ट से मारता था और पेंट उतारने को कहता और उसके बाद गंदी हरकत करता, मुझे काफी तकलीफ होती थी।Ó
नौ वर्ष की सीता ने बताया कि वह घर में नहीं रहना चाहती। एनजीओ के सदस्यों के प्यार से पूछने पर उसने बताया कि उसका शराबी पिता यौन शोषण करता है। 11 वर्ष की रेशमा ने बताया कि उसके घर में उसके भाई का दोस्त रहने आया था। रात में छत पर सोते वक्त उसने रेशमा के मुंह में कपड़ा ठूंसा और उसके साथ दुष्कर्म किया। सुबह वह चला गया, लेकिन डर के मारे रेशमा ने किसी से कुछ नहीं कहा। 10 वर्ष की गौरी के पड़ोस में रहने वाले अंकल उसके छत पर अकेले होने पर फांद कर वहां आ गए और उसे गंदी हरकतें करने लगे। गौरी ने बताया कि इससे वह खुद से ही शर्मिंदा हो गई। मासूमियत के खिलाफ हैवानियत का खेल की बानगी भर है। चुप्पी तोड़ो के संस्थापक संजय सिंह का बताते हैं कि बच्चों को सेफ और अनसेफ टच समझाने, लैंगिक संवेदनशीलता और बाल यौन शोषण के लिए फिल्म दिखाने के साथ ही उन्हें चुप न रहो मां से कहने के लिए प्रेरित किया गया। बच्चों को प्रश्नावली के जरिए चाइल्ड लाइन सहित अन्य कई बाते जानने को दी गईं। उन्होंने बताया कि सर्वे से पता चला कि 92 फीसद स्कूली छात्र सेफ और अनसेफ के बारे में समझते हैं। चाइल्ड हेल्प लाइन नंबर 1098 की रिकॉल वैल्यू 99 फीसद आंकी गई। उधर साईं कृपा अनाथालय की संचालिका अंजना राजगोपाल बताती है कि उनके अनाथआश्रम में एक लड़की का ऐसा ही केस है। उसका पिता ही उसके साथ दुराचार करता था। इससे वह घर से भाग आई थी। उन्होंने उसका केस लड़ा और बाद में उसे उसकी मां के पास भेजा।
बाल यौन शोषण पर के कुछ तथ्य : यूनिसेफ और दिल्ली के एनजीओ सेव दि चिल्ड्रन के सहयोग से महिला और बाल विकास मंत्रालय द्वारा 2007 की स्टडी
- देश में सामान्यत: बाल यौन शोषण (सीएसए) से पीडि़त प्रतिशत 53
-बच्चों के यौन शोषण में 50 फीसद विश्वासपात्र और परिचित ही होते हैं।
-लड़कों और लड़कियों में बाल शोषण का स्तर बराबर है।
-नेपाल, बिहार, बंगाल, ओडिसा, आंध्र प्रदेश और उत्तर-पूर्वी भारत से दिल्ली -एनसीआर में विस्थापित (माइग्र्रेट) में सीएसए का फीसद 40.1 से 67.44 तक है। इन राज्यों में बच्चों पर यौन हमलों का प्रतिशत भी अन्य राज्यों से अधिक है।
- दिल्ली में 65.64 फीसद लड़के यौन हिंसा और शोषण के शिकार। दिल्ली बाल शोषण में अव्वल है।
- 53.22 फीसद बच्चे कई तरह के बाल शोषण झेलते हैं।
- 21.90 फीसद बच्चे गंभीर 50.76 अन्य तरह के यौन शोषण का सामना करते हैं
- 5.69 फीसद बच्चों पर यौन हमले होते हैं।
- कामकाजी, स्ट्रीट चिल्ड्रेन और इंस्टीट्यूशनल केयर में यौन शोषण का का सामना करते हैं।
मासूमियत रहे सुरक्षित, जवाबदेही, सर्तकता जरूरी :
- बच्चे को लोगों के गलत हाव-भाव, गलत इशारों और व्यवहार के बारे में बताएं, ताकि ऐसा होने पर वह तुरंत बता सकें। घर का और परिचित का फोन नंबर बच्चे को याद कराएं, ताकि वह दूसरे को बता कर तुरंत घर संपर्क कर सकें।
- कोशिश करें कि बच्चे को संकोची न बनाएं। उसकी शिक्षकों से समय-समय पर जानकारी लेते रहें।
- बच्चे के लगातार गुमसुम रहने और असामान्य व्यवहार को नजरअंदाज न करें। इस तरह की अनहोनी होने पर बच्चों को सहज करने के पूरे प्रयास करें हो सकें तो काउंसलर के पास ले जाएं।
-बच्चों को यौन शिक्षा देने की खासी जरूरत है, लेकिन उसमें इतना सलीका और सरलता होनी चाहिए, जिससे वह इसे आसानी से समझ सकें और भ्रमित न हो। बच्चों को खेल में ही ऐसी जानकारी दी जाएं तो उन्हें इस संवेदनशील विषय को समझने में आसानी होगी।
महिला और बाल विकास मंत्रालय ने बाल अपराधों के खिलाफ ड्राफ्ट और बाल अधिकारों के प्रोटेक्शन के लिए नेशनल और स्टेट कमीशन के गठन को लेकर अच्छे कदम उठाए, लेकिन इसे प्रभावी बनाने के लिए सरकार के साथ सिविल सोसायटी, कम्युनिटी सभी को एक मंच पर आकर कार्य करना होगा।
बच्चों के खिलाफ यौन हिंसा सचेत होना जरूरी :
बीते वर्ष 11 साल की खुशबू का एक हैवान ने यौन शोषण करने के साथ ही उसे अमानवीय शारीरिक यातनाएं दी, उसका सदमा से वह अब भी उबर नहीं पाईं।
 सितंबर 2012 में गाजियाबाद के स्कूल की  एक छह वर्षीय बच्ची बस चालक और क्लीनर की यौन हिंसा की शिकार हुई।
वर्ष 2012 में दिल्ली में तीन साल के एक मासूम बच्चे के साथ कैब चालक ने दुष्कर्म किया।
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