रविवार, मार्च 21, 2010

यथार्थ


नन्ही सी एक कली खिली
देख दुनिया की रंगीनियां
कली मुस्काई शरमाई 
सोचकर यही की बन जायेगी 
वो भी एक दिन सुन्दर फूल
मिलेंगे उसे भी नाज़ुक हांथों
के स्पर्श, मन ही मन नन्ही कली सकुचाई 
कली थी अनजान की बसंत के साथ पतझड़ भी आता है
जब -जब सारे पते झड़ जाते है और तब बगीचा ...बगीचा नहीं उजाड़ नज़र आता है
कली यथार्थ के धरातल से टकराई ...फूल बनंने से पहले ही नन्ही कली मुरझाई




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