शुक्रवार, अगस्त 13, 2010

मैले हो जाते है रिश्ते भी लिबासों की तरह

मेरी व्यक्तिगत डायरी में मैंने कभी ऐसी रचनाएं भी सहेज कर रखी थी जो मुझे उपलब्ध हो गई और जो मुझे बेहद पसंद आई थी। ऐसी ही रचनाओं को यहां उल्लेखित करके मुझे संतोष हो रहा है, शायद पढ़ने के बाद आपको भी हो..

मैले हो जाते है रिश्ते भी लिबासों की तरह
दोस्ती हर दिन की मेहनत है चलो यूं ही सही
भूल थी फरिश्ता आदमी में ढूंढना, आदमी की आदमियत चलो यूं ही सही।
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ज़िन्दगी नियम नहीं मानती

ज़िन्दगी  नियम नही मानती, फिर भी रूढ़ियों से बंध जाती, पाखंड को पुचकारती
त्याग और तपस्या का ओढ़रामनामी, अहंकार को गले लगाती
बैठ स्वर्ण सिंहासन पर त्याग के प्रवचन सुनाती
जय-जय कार करवाती, प्रशस्ति पत्र बंटवाती और
आध्यात्म का लगाकर मुखौटा, स्वंय को धन्य मानती
ब्रह्मचर्य का संकल्प ले, स्वप्न वासना के दिखाती, अंहकार को तृप्त  कर, सत्य को झुठलाती, रीते बादलों की तरह आसमान से गरजती और बिन बरसे बिखर जाती...पर जब पर्वतों से टकराती, रोती कलपती पर... अपना स्वभाव नहीं बदलती..
भजन और कीर्तन से, पूजन और अर्चन से स्वंय को बहलाती,और फिर सपनों में खो जाती..
ज़िन्दगी नियम नहीं मानती।
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आदमी-आदमी से डरता है
हरकोई- हर किसी से डरता है
चांद अपना है रात का पंछी, सुबह की रोशनी से डरता है
जाने क्या मांग लेंगे, बदले में, देवता आरती से डरता है
सांप रस्सी को डस गया शायद, अब तो वो दोस्ती से डरता है
कहने की सुनने की उसको फिक्र नहीं, अनकही, अनसुनी से डरता है।
जीने वाला हर घड़ी मरता है, फिर भी उम्र भर मौत से डरता है।
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3 टिप्‍पणियां:

समय चक्र ने कहा…

कहने की सुनने की उसको फिक्र नहीं, अनकही, अनसुनी से डरता है ।
जीने वाला हर घड़ी मरता है, फिर भी उम्र भर मौत से डरता है ।

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...

समय चक्र ने कहा…

बहुत सुन्दर...

vandana gupta ने कहा…

बेहद खूबसूरत और उम्दा प्रस्तुति……………विचार करने योग्य……………बेहतरीन्।