बुधवार, अगस्त 25, 2010

यादों के झरोखों में

यादों के झरोखों में क्यूं पुरवाई चली आई, दिल की उदासी हाय क्यों चेहरे पर झलक आई।
तकदीर बनने से पहले ही हाथों की रेखाएं सिमट आई, अंदाज से पहले ही क्यों फितरत चली आई।
मुलाकातों से पहले ही  क्यूं तन्हाई चली आई, मुव्वल से पहले ही हाय रूसवाई चली आई।
बयां होने से पहले ही लवों पे सिलवटें उमड़ आई,वफा के पहले ही क्यूं बेवफाई चली आई।
बहार से   पहले ही क्यूं फिज़ा चली आई, खुशी के पहले ही हाय अश्क छलक आए।
साए के साथ देने से पहले ही क्यूं अंधेरा चला आया, मिलन से पहले ही हाय जुदाई चली आई।
यादों के झरोखों में क्यूं पुरवाई चली आई।

1 टिप्पणी:

vichaar ने कहा…

aap bahut badhiya shayri karti hai....keep it up.