गुरुवार, अगस्त 12, 2010

मेरा अपना संचय

चंद ख्वाहिशें, कुछ अधूरे सपने
कितनी अनकही, अनसुलझी बातें
कुछ अपने से पराए लोग
कितनी यादें भूली बिसरी
थोड़ी आहें, थोड़ी सिसकियां
इतना सा गम थोड़ी सी खुशी
बस यही है मेरे पास मेरा अपना संचय

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आंखों की चमक होठों की हंसी
ना जाने क्यों धुंधला सी गई
ना रो ही सकी ना कह पाई
बस गुमसुम पथरा सी गई
क्यों दर्द मिला हर बार मुझे
क्यों आंसू की सौगात मिली
जीवन के हर मोड़ पर
मिली तो खाली हाथ मिली।
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निगाहों में अनगिनत ख्वाब लिए
अधरों पर बेजुबान सवाल लिए
बाहों में यादों की महफिल लिए
पांव तले अजनबी सी मंजिल लिए
तेरे दर पर खड़ी हूं ऐ ज़िन्दगी
बगैर धड़कन का एक दिल लिए।

2 टिप्‍पणियां:

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

सुंदरता से लिखे हैं एहसास

शारदा अरोरा ने कहा…

बढ़िया... वो कितनी अनकही ...कलम हाथ में आ गई है ..सब लिखवा लेगी ।